दिमाग की बात
सुधीर निगम
‘जमूरे खेल दिखाएगा’, ‘हाँ, उस्ताद दिखाएगा’, ‘लोगों को हंसाएगा’, ‘हाँ, हंसाएगा’, ‘तो शुरू हो जा’। डम, डम डम और शुरू हुआ मदारी और जमूरे का खेल। आजकल की पीढ़ी ने शायद ये खेल न देखा हो, लेकिन कुछ समय पहले तक इसे देखने के लिए काफी मजमा जमा होता था। हालाँकि मदारी और जमूरे का खेल खत्म नहीं हुआ है, वह अब भी चल रहा है, बस देखने के लिए पारखी आँखें चाहिए।
Madari and Jamuri Games
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मदारी हैं। वो भी गर्व से मानते हैं कि वे मदारी हैं। एक नेगेटिव सेंस में कहते हैं, तो दूसरे पॉजिटिव सेंस में। कोई कुछ भी कहे , किसी भी सेंस में, लेकिन जनता जानती है यहाँ तो सब एक से बढ़कर एक मदारी हैं और तरह तरह के खेल जमूरे के साथ खेलते हैं।
मदारी के कहने पर जमूरा उझलता, कूदता, छलांग लगाता था और दर्शक ताली बजाकर पैसे फेंकते थे। अब मदारी (वो कोई भी हो) नई नई योजनाएं फेंकता है और जमूरा ताली बजाता है। इन योजनाओं का लाभ पाने के लिए लिए जब वो सरकारी कार्यालय पहुँचता है, तब उसे अहसास होता है कि वो तो वाकई जमूरा है, उस्ताद तो खेल दिखाकर निकल लिया।
पहले के मदारी अपने जमूरे का बहुत खयाल रखते थे, क्योंकि उससे ही उन्हें रोटी मिलती थी और परिवार का गुजारा होता था। हर समय उन्हें उसकी चिंता रहती थी। पर आजकल के मदारी जमूरे को एक बार ही याद करते हैं, पांच साल में। एक बार जमूरा फंसा जाल में, उसके बाद मदारी का असली खेल शुरू होता है, जिसमें जमूरे का कोई रोल नहीं होता।
एक बार ये खेल खत्म हुआ, तब जमूरे को पता चलता है कि उसके साथ ही ‘खेल’ हो गया। उसके बाद सारी उझल कूद मदारी ही करता है, तालियों के साथ बहुत कुछ बटोरता है और जमूरा मात्र दर्शक बन कर रह जाता है।
खेल का स्वरूप भले बदल गया हो लेकिन मदारी और जमूरे नहीं बदले। मदारी जमूरे को अपने हिसाब से नचाता है और जमूरा इसमें ही खुश है कि मदारी का खेल अच्छा है। तो देखिए पांच साल में होने वाला खेल चालू हो चुका है। सभी मदारी डमरू लेकर निकल पड़े हैं जमूरे को नचाने। जगह जगह से आवाज आ रही है ‘डम, डम, डम’।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है