खबर का हुआ असर!
पुष्पेन्द्र वैद्य की खोजी खबर
महू के पास पातालपानी में रेल्वे कर्मचारी के अनाथ बच्चों को आखिरकार 7 सालों के लंबे इंतजार के बाद आज अपना हक मिल गया। मैंने दो दिन पहले ही ह्यखाली पेट नींद नहीं आती साहेब..!ह्ण शीर्षक से फेसबुक पर एक पोस्ट लगाई थी। रतलाम के डीआरएम आरएन सुनकर ने इसे गंभीरता से लेकर इस पोस्ट को आधार बनाते हुए कार्रवाई की और तुरंत पेंशन आदेश जारी कर दिया। आज डीआरएम ने रतलाम से वेलफेयर ऑफिसर को पातालपानी गांव भेजकर अनाथ बच्चों को पेंशन आदेश सौंपा।
Now they will not sleep hungry …!
रतलाम रेल मंडल के महू स्टेशन से 5 किमी दूर पातालपानी के अनाथ हो चुके परिवार के तीन बच्चों की जिंदगी नर्क बन चुकी थी। परिवार का मुखिया रेलवे में खलासी राजू भील अपने भरे -पूरे परिवार के साथ पातालपानी स्टेशन के पास जिंदगी बसर कर रहा था। 25 अप्रैल2009 को उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। मां लीला पर 10-12 साल के तीनों बच्चों को पालने की जिम्मेदारी का बोझ आ गया राजू के बाद लीला की रेलवे में अनुकंपा नौकरी लग गई।
लेकिन चार-पांच महीने बाद नवंबर 2011 में लीला भी किसी बीमारी से चल बसी। तब से अब तक परिवार में तीनों नाबालिग बच्चे घर में बिलखते रहते। बूढी नानी मजदूरी कर बच्चों को रोटी देती। धीरे-धीरे नानी के हाथ भी कांपने लगे। बच्चों को लेकर नानी पेंशनसंघ के अध्यक्ष जीएल जांचपुरे से मिली और अपने हक-हकून की लडाई लडती रही। जांचपुरे ने अनाथ बच्चों के लिए अपने जेब का पैसा खर्च कर कोर्ट- कचहरी से लगाकर डीआरएम दफ्तर तक खूब लडाई लडी।
जांचपुरे के मुताबिक पेंशनर्स के बच्चे जब तक 25 बरस के नहीं हो जाते तब तक उन्हें परिवार पेंशन की पात्रता होती है। नाबालिगों के संरक्षक के लिए कोर्ट ने भी फैसला दिया और नानी को संरक्षक करार दिया। बच्चों के नाम का खाता भी खुलवा दिया फिर भी 7 सालों तक बच्चों को पेंशन नसीब नहीं हुई। बच्चे मजदूरी कर या भीख मांग कर पेट पालने लगे। जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती उस दिन उन्हें भूखे पेट ही सोना पडता था। तीनों बच्चों ने स्कूल जाना भी कई सालों से बंद कर दिया था।
यह दारुण ख़बर पढ़ते ही रतलाम रेल मंडल के डीआरएम आरएन सुनकर ने मामले को संज्ञान में लिया। उन्होंने तुरंत परिवार और पेंशन प्रकरण की मुझसे जानकारी ली तथा गुरूवार को दफ्तर में बरसों से धूल खा रही पेंशन की फाइल को निकाल कर उसे तत्काल प्रभाव से आगे बढाया। डीआरएम सुनकर ने मामले का निपटारा तुरंत करते हुए पीपीओ जारी कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने रतलाम से वेलफेयर इंस्पेक्टर जेपी सिंह को पेंशन आदेश लेकर बच्चों के गांव पातालपानी भेजा और उन्हें अपने हाथों से पेंशन आदेश सौंपा।
अब बच्चों को हर महीने पेंशन की रकम बैंक खाते के जरिए मिलेगी। डीआरएम की कर्तव्यपरायणता एक मिसाल है। उनकी मानवीय सहृदयता से अब कभी भी इन अनाथ बच्चों को भूखा नहीं सोना पडेगा। इस में सोशल मीडिया के लिए भी यह एक बड़ी उपलब्धि है। इस प्लेटफार्म पर आलोचनाएँ तो बहुत होती हैं लेकिन इस तरह एक परिवार की रोटी के लिए इम्पेक्ट बिरला ही है। और उससे भी कहीं ज्यादा सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता का सुकून, एक ऐसे दौर मे जहां पत्रकारिता की कडी आलोचना के साथ मीडिया को बांटने की कोशिश की जा रही हो।