गजब किया जो तेरे वायदे पर ऐतबार किया….

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ब्रजेश राजपूत

भोपाल के उस साउथ टीटी नगर में जहां चारों तरफ पत्थर भरकर भागते धूल उडाते डंपरो और खड खड कर खुदाई करती जेसीबी का शोर है वहीं पर खडा है मकान नंबर एफ 50/17 वैसे इस मकान तक पहुंचना आसान नहीं है क्योंकि चारों तरफ बडे गडढे खुदे है, उन गढढों को कूदतें फांदते उलांघने पर ही आप पहुंच पाते हैं इस मकान तक। हांलाकि ये मकान बेजान नंबर से ज्यादा एक जानदार शख्सियत के नाम से ज्यादा जाना जाता रहा है।
Went what made you wait for your futures ….
ये अलग बात है कि ये इस बडी शख्सियत का इसी इलाके में बने पुराने मकान का पिछले साल नामोनिशान मिटा दिया गया था और अब उनके नाम पर बना ये संग्रहालय भी कभी भी टूटने और नेस्तनाबूत होने की कगार पर खडा है। हम बात कर रहे हैं साउथ टीटी नगर में बने दुष्यंत कुमार स्मारक और पांडुलिपि संग्रहालय की। जो पिछले तेरह साल से इस छोटे से एफ टाइप सरकारी घर मे चल रहा था।

यहां जाने माने साहित्यकारों के लिखे दस्तावेज, उनकी पांडुलिपियां, उनसे जुडे सामान जैसे टाइपराइटर, घडियां और पेन तो हैं ही ढेर सारी किताबों का भी संग्रह भी सालों से इस चार कमरे के मकान मे सिमटा हुआ है। संग्रहालय की गतिविधियां बढाने के नाम पर यहां की दहलान में एक छोटा सा हाल और वाचनालय भी बना लिया गया था जिसमें छोटे मोटे साहित्यिक कार्यक्रम और कभी कभी नाटक की रिहर्सल भी होती रही है। मगर बेदखली का नोटिस तो पिछले साल आ ही गया था।

क्योंकि इस जगह पर सरकार का स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट विकसित हो रहा है। जिसके लिये स्मार्ट सिटी कंपनी इस पूरी जमीन को अपने कब्जे में लेकर पहले मैदान कर रही है फिर बीच शहर में बने इस मैदान पर तनेंगीं उंची स्काइराइस बिल्डिंगें और आलीशान माल। उस सब में कहां का संग्रहालय वैसे भी बाजार पुरानी चीजों से मोह नहीं करता।


बाजार को हर दम नया और चमकदार ही चाहिये जिसकी कीमत मिले। मगर हैं कुछ सिरफिरे जो गुजरी हुयी पुरानी चीजों में ही जिंदगी तलाशते हैं। बताना चाहते हैं नयी पीढी को कि कैसे रहते थे हमारे साहित्यकार, कैसी उनकी लिखावट थी कैसे उनके हाथ की छाप थी कैसे वो चिटिठयां लिखते थे कैसे थे वो लोग जिन्होंने जो रच गये वो अमर पंक्तियां जो आज भी गायी जातीं हैं।

सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये।। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये।।।

अमर कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों से ही प्रेरणा लेकर फिर इस संग्रहालय को इक्कीस साल पहले अपने घर से ही शुरू करने वाले राजुरकर राज से मिलिये। हाल के दिनों में पेन्क्रियाज के ट्यूमर में सोलह किलो वजन गंवाने के बाद वो इन दिनों सहारे से चलते हैं मगर पूरे वक्त इस पांडुलिपियों और संग्रहालय के सामान की चिंता में और दुबले हुये जा रहे हैं। भोपाल को यूं ही सोलह संग्रहालयों का शहर नहीं कहा जाता। दो दशक पुराना ये संग्रहालय भोपाल को उनकी ही देन है।

पिछले साल सितम्बर में जब हम एबीपी न्यूज के घंटी बजाओ के लिये संग्रहालय की बेदखली पर कहानी करने गये थे तो उसके बाद हुआ ये था कि पहले सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने संग्रहालय का दौरा किया और भरोसा दिलाया था कि संग्रहालय में रखी बेशकीमती धरोहरों को हिफाजत से रखने जगह दी जायेगी। उसके बाद आया हिंदी दिवस तो सबको खुश करने के लिये लगातार घोषणाएं करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मंच से दुष्यंत जी की जानी पहचानी गजल की लाइनें पढीं कि हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये..

मगर कोई गंगा निकली नहीं, इस बीच में तकरीबन एक साल गुजर गया हाल के दिनों में जब राजुरकर राज का फोन आया की संग्रहालय का पीछे का हिस्सा बिना कोई चेतावनी दिया गिरा दिया गया है तो मुझे भी चिंता हुयी. शिवराज जी की घोषणा के बाद अब तक क्या हुआ ये पता किया गया तो देखा सब कुछ कागजों पर ही चल रहा है धरातल पर अब तक कोई मकान अलोट नहीं हुया जिसमें इस धरोहर को सम्हाल कर रखा जा सके. हाँ वायदे जरूर हैं की स्मार्ट सिटी में एक संग्रहालय भी होगा मगर कब सिटी बनेगी और कब उसमें संग्रहालय को जगह मिलेगी कोई नहीं जानता.

फिर एक बार कहानी की गयी आदरनीय मंत्री जी को तजा हालात बताई गयी उन्होंने स्मार्ट सिटी के अफसरों से पूछ कर बताया की जब तक आपको स्मार्ट सिटी में शिफ्ट नहीं किया जाता तब तक आप किराये का मकान ले लें वो भी छह हजार रुपए का इसका खर्चा भी सरकार देगी हमें मंत्री जी के भोलेपन पर दया भी आयी की छह हजार में कहाँ इस सब को रखने की जगह मिलेगी और कितने साल तक वो सब सालों पुरानी सामग्री वहां महफूज रहेगी कहना मुश्किल हे मगर इस बीच में फिर मुझे शिवराज जी अपनी तमाम व्यस्तता के बीच मिले और जब मेनें उनको संग्रहालय की बेकद्री और उनके वायदे की याद दिलाई तो उनके निर्देश पर संग्रहालय को दिए जाने वाले सरकारी मकान की फायल चल पड़ी है. राजुरकर कहते हें सरकारों की प्राथमिकता में अब संग्रहालय नहीं वोट देने वाला समाज आ गया हें. किसी समाज को भवन देने की बात होती तो अब तक मिल गया होता. संग्रहालय से जुडी कवियत्री ममता तिवारी फिर दुश्यंत कुमार याद क्र कहतीं हें.

पक गईं हें आदतें बातों से सर होगीं नहीं..
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं..

भोपाल