जब अटल बिहारी वाजपेयी ने कविता से दिया ‘हिंदू मेरा परिचय’

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नई दिल्ली। देश के लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है। पूरा देश उन्हें अपने-अपने तरीके से श्रद्धांजलि दे रहा है। एक प्रखर वक्ता, कवि, पत्रकार, राजनेता, देश में अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों को साथ लेकर चलनेवाले अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुआयामी था।
When Atal Bihari Vajpayee gave the poem ‘Hindu mine introduction’
यह उनके बोलने का अंदाज और सारगर्भित भाषण की कला का जादू था कि उनकी अपनी पार्टी के लोग ही नहीं विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। वह अक्सर अपने दिल की बातों को कविताओं के जरिए जाहिर करते थे। ऐसी ही एक कविता के जरिए उन्होंने खुद के हिंदू होने का परिचय दिया था। उनकी मशहूर कविता ‘हिंदू तन-मन’ कुछ इस प्रकार है-

हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रगझ्ररग हिंदू मेरा परिचय!
मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार।
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं, जिसमें नचता भीषण संहार।
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास।
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधार।
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती में आग लगा दूं मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड़ चेतन तो कैसा विस्मय?
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय!

मैं अखिल विश्व का गुरु महान, देता विद्या का अमरदान।
मैंने दिखलाया मुक्तिमार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर्णभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सोराभ्मय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय!

मैंने छाती का लहू पिला, पाले विदेश के क्षुधित लाल।
मुझको मानव में भेद नहीं, मेरा अन्तस्थल वर विशाल।
जग से ठुकराए लोगों को लो मेरे घर का खुला द्वार।
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट।
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय!

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किया?
कब दुनिया को हिंदू करने घर-घर में नरसंहार किया?
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय!

मैं एक बिंदु परिपूर्ण सिंधु है यह मेरा हिंदू समाज।
मेरा इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।
इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण।
मैं तो समाज की थाति हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय!