नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जघन्य अपराधों के आरोपियों को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने पर फैसला देना संसद के क्षेत्राधिकार में घुसने जैसा होगा। कोर्ट ने कहा कि वह ‘लक्ष्मण रेखा’ पार नहीं करना चाहता। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से पूछा कि क्या ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव में पार्टी के चिह्न से वंचित किया जा सकता है?
Supreme Court verdict imposing ban on leaders of heinous crime
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा और जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की बेंच ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के लिए कानून बनाने का अधिकार संसद का है। हमारा रुख साफ है कि यह एक विधायी मामला है।’ मुख्य न्यायधीश मिश्रा और जस्टिस नरीमन ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा, ‘क्या हम चुनाव आयोग को सिंबल्स आॅर्डर के तहत एक नियम बनाने का निर्देश नहीं दे सकते, जो अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग द्वारा एक प्रशासनिक फैसला होगा।
जिसके जरिए राजनीतिक दलों से कहा जाए कि वे अपने हर प्राथमिक सदस्य से उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि (अगर कोई हो) के ब्योरे वाला हलफनामा लें और जिनके खिलाफ जघन्य अपराध के मामले चल रहे हों, उन्हें अगर चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे भी दिया जाता है तो पार्टी के चिह्न से वंचित किया जाए।’ इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2003 के फैसले के हिसाब से सभी उम्मीदवार एक हलफनामे के जरिए अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि (अगर कोई हो) का ब्योरा देते हैं।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव का विरोध करते हुए न्याय व्यवस्था के उस सिद्धांत का हवाला दिया, जिसके तहत किसी को तब तक दोषी नहीं माना जा सकता, जब तक कोर्ट उसे दोषी करार न दे। उन्होंने कहा, ‘क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को बिना दोष साबित हुए किसी को दोषी मानने का निर्देश देना चाहिए? इस तरह सुप्रीम कोर्ट अप्रत्यक्ष रूप से न सिर्फ उम्मीदवार के खिलाफ, बल्कि एक राजनीतिक दल के खिलाफ प्रतिबंध लगा देगा।’
अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट को राजनीति की जमीनी हकीकत और जिस तरह से इसे किया जाता है, उसे स्वीकार करना चाहिए।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘यह कहना निरर्थक होगा कि जिनके खिलाफ आरोप हैं, उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना होगा। अगर ऐसा हुआ तो (राजनीतिक) दल चुनावी मैदान के साथ-साथ कोर्ट में भी लड़ेंगे।’