क्या झारखंड में ईसाई संगठनों के खिलाफ भाजपा की सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दमनकारी और पक्षपात पूर्ण रवैया अपना रही है. क्या वाकई में ईसाईयों को उनकी आस्था को लेकर निशाने पर लिया जा रहा है. रीजनल बिशप काउंसिल और रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों ने हाल ही में ये सवाल उठाए हैं.
Jharkhand government’s attitude towards Christian organizations repressive, Arch Bishop raises questions
पिछले छह अगस्त को फेलिक्स टोप्पो ने रांची के चौथे आर्चबिशप का पदभार संभाला है. फेलिक्स टोप्पो झारखंड और अंडमान रिजनल बिशप्स काउंसिल (झान) के अध्यक्ष भी हैं. इसी पद से उन्होंने बयान जारी करते हुए और कई सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि झारखंड में ईसाई संगठनों के प्रति सरकार का रवैया राजनीति से प्रेरित और दमनकारी है. आर्च बिशप के इन बयानों के मायने निकाले जाने लगे हैं.
जानकार बताते हैं कि रांची स्थित संत मारिया गिरिजाघर में प्रेम, शांति और न्याय का संदेश लेकर उत्साह-उमंग, शुभकामनाओं का दौर और प्रार्थना गीतों की गूंज के बीच जब फेलिक्स टोप्पो आर्चबिशप की हैसियत संभाल रहे थे, तब इसे नहीं भांपा जा सका था कि उत्पन्न हालात पर उनकी नजरें हैं और वे जल्दी ही सवालों और सफाई के साथ सामने आएंगे.
दरअसल राज्य में सीआइडी पुलिस इन दिनों विदेशी मुद्रा नियंत्रण कानून (एफसीआरए) के तहत आवंटित फंड और उससे जरिये किए गए काम को लेकर ईसाईयों से जुड़ी गैर सरकारी संस्थाओं की जांच कर रही है. इसी सिलसिले में पिछले नौ अगस्त को एक साथ 37 संस्थाओं पर छापे मारे गए थे. इन्ही कार्रवाई के मद्देनजर आर्च बिशप ने और भी कई सवाल उठाए हैं.
वैसे रीजनल बिशप्स काउंसिल की प्रतिक्रिया आने से ठीक पहले रोमन कैथोलिक चर्च के बिशपों ने भी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलकर अपनी चिंता जाहिर की थी. बिशपों ने राज्यपाल से कहा है कि झारखंड में ईसाईयों को उनकी आस्था को लेकर निशाने पर लिया जा रहा है. तब ये पूछा जा सकता है कि आखिर ये परिस्थितियां कैसे उभरी.
इसके केंद्र में तीन घटनाओं को देखा जा सकता है. इन घटनाओं ने ईसाई संस्थाओं और चर्च के धर्मगुरुओं को सकते में डाला है, तो भाजपा तथा आरएसएस-विहिप के नेता-पदाधिकारी खुलकर निशाने साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. साथ ही भाजपा इस मांग पर भी जोर दे रही है कि जो आदिवासी धर्म बदलकर ईसाई बने उन्हें मिलने वाले अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को खत्म किया जाए. लिहाजा इस मांग पर अलग ही बहस छिड़ी है. तब विपक्षी दलों के नेता और ईसाईयों के कई संगठन ये आरोप लगाते रहे हैं कि इन मांगों तथा घटनाओं के बरक्स भाजपा तथा उसकी सरकार चुनावी आहट के साथ अपना पॉलिटिकल एजेंडा तय कर रही है.