जिन पहाड़ियों में गूंजती थी मओवादियों के गोलियों की आवाज, वहां जवानों ने बना लिया ट्रेनिंग सेंटर

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नई दिल्ली। जवाधु हिल्स इलाके के लिए गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज कोई नई बात नहीं है। तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई और वेल्लोर जिले में फैली इन पहाड़ियों पर कभी माओवादियों ने शरण ले रखी थी और यहां से अपने कुख्यात इरादों को अंजाम देते थे। गोलियां यहां अब भी चलती हैं, लेकिन अब माओवादी नहीं बल्कि सीआरपीएफ के जवानों के लिए यह ट्रेनिंग ग्राउंड बन गया है। जंगलों से घिरी ये पहाड़ियां छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों सरीखी हैं, यही वजह है कि सीआरपीएफ ने यहां अपना ट्रेनिंग ग्राउंड स्थापित कर लिया है।
The noise of gunfire in the hills which resonated, the soldiers made the training center
यहां बड़ा जंगल और कठिन परिस्थितियां होने के चलते दुनिया की सबसे बड़ी पैरा मिलिट्री फोर्स को माओवादियों से निपटने की पूरी तैयारी करने का मौका मिल रहा है। खासतौर पर जंगलों के बीच नक्सलियों से निपटने का यहां अनुभव लिया जा सकता है। यहां से प्रशिक्षित 60 पर्सेंट से ज्यादा सीआरपीएफ कर्मियों को माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में तैनात किया गया है। सीआरपीएफ के डेप्युटी आईजी और सेंटर के प्रिंसिपल परवीन सी. घाग ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया को यह जानकारी दी।

6 अप्रैल, 2010 को दंतेवाड़ा में 75 सीआरपीएफ कर्मियों के मारे जाने के बाद अथॉरिटीज को यह महसूस हुआ था कि जवानों का स्पेशल प्रशिक्षण होना चाहिए ताकि जंगलों में अभियान छिड़ने की स्थिति में नक्सलियों को मात दी जा सके। 2010 के अंत में तमिलनाडु काडर आईपीएस अधिकारी विजय कुमार ने सीआरपीएफ के डीजी के तौर पर कमान संभाली थी और वामपंथी अतिवादी समूहों की सक्रियता वाले इलाकों जैसे माहौल में ट्रेनिंग का फैसला लिया।

सीआरपीएफ के डेप्युटी कमांडेंट आर. अरुमुगम ने कहा, ‘इसी मकसद से उन्होंने जवाधु हिल्स का दौरा किया और वहां कुछ ऐसे पॉकेट्स की पहचान की, जो माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ के इलाकों जैसे थे। 2011-12 से ही हम नई भर्ती पाने वाले लोगों को 29 दिनों की ट्रेनिंग के लिए जवाधु हिल्स लेकर आते हैं।’ यहां सीआरपीएफ के दो कैंप हैं।

कभी माओवादियों का गढ़ था यह इलाका
तमिलनाडु पुलिस के रिटायर्ड एसपी एम. अशोक कुमार बताते हैं कि 4 दशक पहले आॅपरेशन अजंथा के तहत यहां से माओवाद का सफाया किया गया था। तब सूबे में एमजी रामचंद्रन की सरकार थी। उस दौर में जवाधु और येलागिरी हिल्स माओवादियों के गढ़ के तौर पर कुख्यात थे। हिंसा के साथ ही अपने अजेंडे को फैलाने वाले माओवादियों के लिए उस दौर में यह सुरक्षित पनाहगाह थी, लेकिन अब यहां सीआरपीएफ का बसेरा है।