हैदराबाद। तेलंगाना सरकार के विधानसभा भंग करने के प्रस्ताव को राज्यपाल ईएसएल नरसिंहन ने मंजूरी दे दी है। यानी अब राज्य में समय से पहले विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो गया है जो अभी तक लोकसभा चुनाव के साथ ही होने थे। इससे पहले कैबिनेट मीटिंग के दौरान तेलंगाना विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव पास हो गया था। फिलहाल चुनाव तक के चंद्रशेखर राव कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। टीआरएस की इस मीटिंग के लिए बुधवार से ही अटकलें लगाई जा रही थीं।
Before the dissolution of assembly in Telangana, KCR will remain caretaker chief minister
इस बैठक के लिए सभी मंत्रियों को हैदराबाद में मौजूद रहने के लिए कहा गया है। दरअसल तेलंगाना सरकार के राज्य में विधानसभा चुनाव पहले कराने की तीन वजहें मानी जा रही है। पहली वजह- लोकसभा में अविश्वास मत और राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में टीडीपी और कांग्रेस एक कैंप में थे। टीआरएस को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव के वक्त इन दोनों में एसपी-बीएसपी जैसा अलायंस हो सकता है।
दूसरी वजह- केसीआर लोकसभा के बजाय राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ चुनाव कराना पसंद करेंगे। उन्हें डर है कि अगर इन उत्तरी राज्यों में से एक या दो में कांग्रेस को जीत मिलती है तो इससे सुस्त पड़ी तेलंगाना कांग्रेस में जान लौट सकती है और वह लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देने की हालत में होगी।
तीसरी वजह- लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव नहीं होने पर असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष गठबंधन के जरिए टीआरएस राज्य के 12 पर्सेंट अल्पसंख्यक वोटरों को लुभाने में सफल रह सकती है। वहीं, अगर चुनाव साथ होते हैं तो केसीआर के केंद्र के साथ करीबी रिश्ते का इस वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
कांग्रेस-टीडीपी करेंगी गठबंधन?
दूसरी ओर सूत्रों के अनुसार, यह खबर भी सामने आ रही है कि कांग्रेस और टीडीपी मिलकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एकसाथ उतर सकती है। इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के बीच चुनावी प्रक्रिया को लेकर आपसी समझ बन चुकी है। भले ही आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद चंद्रबाबू नायडू हैदराबाद से शिफ्ट हो गए हों लेकिन तेलंगाना के कई विधानसभा क्षेत्रों खासकर ग्रेटर हैदराबाद में टीडीपी की पकड़ अभी भी मजबूत है। 2014 चुनावों में टीडीपी-बीजेपी के गठबंधन ने 24 विधानसभा सीटों में से 14 सीटें जीती थीं।