धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: कहा- दो बालिगों के बीच सहमति से बनाया गया संबंध नहीं है अपराध

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नई दिल्ली। देश में दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं हैं। चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने एक मत से सुनाए गए फैसले में दो बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 के प्रावधान को खत्म कर दिया है।
The Supreme Court’s verdict on Section 377: “There is no connection made between the consent of two adults”
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चॉइस को सम्मान देने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह दिसंबर 2013 को सुनाए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। सीजेआई दीपक मिश्रा, के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरू की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

फैसला सुनाते हुए अपने फैसले में चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया ने कहा कि जजों ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है। जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है। इस अधिकार के बिना बाकी अधिकार औचित्यहीन हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में सेक्शुअल ओरिएंटेशन बायलॉजिकल बताया है। कोर्ट का कहना है कि इस पर किसी भी तरह की रोक संवैधानिक अधिकार का हनन है। किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह एलजीबीटी कम्युनिटी के लोगों को भी उतने ही अधिकार हैं। एक-दूसरे के अधिकारों को सम्मान करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 में दो बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ किया कि धारा 377 के तहत अब बिना सहमति के समलैंगिक संबंध बनाना अपराध होगा, लेकिन सहमति से संबंध अपराध नहीं। कोर्ट ने कहा कि बच्चों और जानवरों से अप्राकृतिक संबंध अब भी अपराध रहेगा।

क्या है धारा 377
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के मुताबिक कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध होगा। इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के मुताबिक अगर दो अडल्ट आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध होगा।

सुनवाई के दौरान क्या रहा था सुप्रीम कोर्ट का रुख

  • – सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों के खिलाफ है तो हम इस बात का इंतजार नहीं कर सकते कि बहुमत की सरकार इसे रद्द करे।
  • – चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि वह साफ करना चाहते हैं कि वह धारा-377 को पूरी तरह से खारिज नहीं करने जा रहे हैं बल्कि वह धारा-377 के उस प्रावधान को देख रहे हैं जिसके तहत प्रावधान है कि दो बालिग अगर समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध है या नहीं।