10 साल बाद फिर आर्थिक मंदी के मुहाने दुनिया, अर्थशास्त्री हो रहे परेशान

0
384

नई दिल्ली। लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने और उसके ठीक बाद वैश्विक आर्थिक मंदी के 10 साल बाद एक बार फिर उसी तरह के संकट की आशंका बढ़ती जा रही है। क्या हम एक और आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़े हैं? कोई भी निश्चित तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कह सकता लेकिन कुछ ऐसे संकेत हैं जो अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रहे हैं।
After 10 years, the world is facing economic downturn, the economist is worried
बाजार में बहुत ज्यादा पैसा
2008 के आर्थिक संकट से निकलने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने बड़े पैमाने पर नोट छापे। इनमें से ज्यादातर मुद्रा वित्तीय बाजार में आ गई। करीब 290 ट्रिलियन डॉलर (करीब 2,09,42,350 लाख करोड़ रुपये) वित्तीय बाजार (शेयर बाजार, बॉन्ड्स और दूसरी वित्तीय संपत्तियां) में आ गए। इसके अतिरिक्त केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को कम रखा और निवेशक हाई रिटर्न के खातिर खराब गुणवत्ता के निवेशों को अंजाम दिया। यह एक बड़ा जोखिम है।

विशाल कर्ज, वह भी डॉलर में
उभरते बाजार अमेरिकी डॉलर को अपनाने के लिए मजबूर हैं और यह दुनिया की अघोषित इकलौती रिजर्व करंसी है। इसका असर यह हुआ कि दुनिया के सभी बाजारों की अमेरिका की मौद्रिक नीति पर निर्भरता बढ़ गई। उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हाई रिटर्न की आस के लिए निवेशकों ने शॉर्ट-टर्म में बहुत ज्यादा पैसे लगाए। उ

भरते बाजारों में कर्ज की मात्रा बहुत बढ़ गई। 2008 के विश्व आर्थिक संकट के बाद से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बाहरी कर्ज बढ़कर 40 ट्रिलियन डॉलर (करीब 28,88,600 लाख करोड़ रुपये) हो चुका है। कर्ज संकट कितना बड़ा है, इसे इंस्टिट्यूट आॅफ इंटरनैशनल फाइनैंस  ) की इस रिपोर्ट से समझ सकते हैं। 26 बड़े और उभरते बाजारों का संयुक्त कर्ज 2008 में उनकी जीडीपी का 148 प्रतिशत था जो सितंबर 2017 में बढ़कर 211 प्रतिशत हो गया।

टुकड़ों-टुकड़ों में नियंत्रण और जटिल निवेश
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लॉ प्रफेसर कैथरीन जज के मुताबिक 2008 के आर्थिक संकट के वक्त रेग्युलेटरी ढांचें में कमियां थीं। यह ढांचा एकीकृत न होकर टुकड़ों-टुकड़ों में था। कैथरीन के मुताबिक ये चुनौतियां अब भी मौजूद हैं जो जल्द ही एक और संकट की तरफ ले जा सकती हैं।

अच्छे निवेश की तादाद कम
ज्यादातर संपत्तियां महंगी हैं और बहुत कम अच्छे निवेश उपलब्ध हैं। इसका मतलब है कि बाजार में सुधारात्मक कदमों को उठाए जाने की जरूरत है। स्थिति इतनी नाजुक है कि कोई छोटी सी घटना भी बड़ा असर डाल सकती है, और यहां तो ब्रेग्जिट और यूएस-चीन ट्रेड वॉर जैसी बड़ी घटनाएं हो रही हैं। क्या पता, ये दोनों घटनाएं ही दुनिया को एक और आर्थिक संकट में झोंक दें।