2019 चुनाव: भाजपा को हिन्दी भाषी राज्यों में सीटें कम होने का सता डर, पार्टी दक्षिण राज्यों से करेगी भरपाई!

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नई दिल्ली। साल 2014 में भाजपा जिस प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयी थी, उसमें हिंदी बेल्ट में पार्टी को मिली जबरदस्त सफलता का बड़ा हाथ था। लेकिन साल 2014 से लेकर अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है और हालात ये हैं कि भाजपा को हिंदी बेल्ट में कई सीटों का नुकसान हो सकता है। यह बात पार्टी आलाकमान भी समझता है।
2019 elections: BJP will be afraid of seats in Hindi-speaking states, fear of losing party, party will compensate them from the southern states!
यही वजह है कि आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति में भाजपा दक्षिण भारत के राज्यों पर खास ध्यान दे रही है। एक तरह से कह सकते हैं कि भाजपा हिंदी बेल्ट में हुए नुकसान की भरपाई दक्षिण के राज्यों में करना चाहती है। हालांकि पार्टी की इस रणनीति में राज्य इकाइयां राह का रोड़ा बनी हुई हैं। दरअसल दक्षिण भारत के राज्यों में पार्टी इकाइयों में जारी गुटबाजी और श्रेष्ठता की जंग भाजपा के लिए सिरदर्द बनी हुई है।

केन्द्रीय नेतृत्व ने इस बात को समझते हुए तेलंगाना और कर्नाटक पार्टी इकाइयों को हर रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस ना करने की हिदायत दी गई है। सूत्रों के अनुसार, इन दोनों राज्यों में गुटबाजी के कारण दोनों गुट हर रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। पार्टी नेताओं का भी मानना है कि इन रोज-रोज होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ना अब जनता की रुचि है और ना ही इनमें ज्यादा मीडिया के लोग आते हैं।

बता दें कि दक्षिण भारत के राज्यों में पकड़ बनाने के लिए भाजपा को हमेशा ही संघर्ष करना पड़ा है। सिर्फ कर्नाटक को छोड़कर भाजपा का अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में कोई खास जनाधार भी नहीं है। हालांकि इन दिनों दक्षिण भारतीय राज्यों में जिस तरह का राजनैतिक माहौल है, उसमें भाजपा को अपने लिए काफी संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।

तमिलनाडु में एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के निधन के बाद किसी करिश्माई नेता की बेहद कमी महसूस की जा रही है। वहीं कर्नाटक में भले ही कांग्रेस जेडीएस की गठबंधन सरकार है, लेकिन वहां पर सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ही है। आंध्र प्रदेश की बात करें तो सीएम चंद्रबाबू नायडू के भाजपा से अलग होने के बाद उनकी आगे की राह काफी मुश्किल दिखाई दे रही है।

तेलंगाना में भी टीआरएस की सरकार ने वक्त से पहले चुनाव कराने का फैसला कर बड़ा झटका दिया है, लेकिन भाजपा को इस राज्य में जनाधार बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि पार्टी अपनी रणनीति के सहारे दक्षिण के किले में घुसपैठ कर पाएगी, या फिर पार्टी की गुटबाजी उसकी उम्मीदों पर पानी फेरती है।