नई दिल्ली। अयोध्या मामले में मस्जिद में नमाज को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा न माने जाने के फैसले पर पुनर्विचार की याचिका को 7 जजों की बेंच को सौंपे जाने को लेकर शुक्रवार को सुनवाई होगी। 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है। इससे पहले बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने विवाद को हवा देते हुए ‘राम मंदिर’ के लिए संसद का रास्ता अपनाने की बात कही है।
Subramanian Swamy spoke on the Ram temple: said – the Supreme Court refused to choose the path of Parliament
सुब्रमण्यन स्वामी ने ट्वीट किया, ‘अपनी सीट बेल्ट कस लीजिए। मस्जिद में नमाज पढ़ने को इस्लाम का अभिन्न अंग न माने जाने के सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के फैसले को 7 जजों को सौंपने पर फैसला हो सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट इससे इनकार कर देता है तो हम राम मंदिर की राह पर बढ़ रहे हैं और यदि हां होता है तो हम संसद का रास्ता चुनेंगे।’
इस बीच विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि 1993 के इस्माइल फारुकी केस और अयोध्या केस में अंतर है। उस मामले में सिर्फ यह तय किया गया था कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद केंद्र है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘शुक्रवार को होने वाली सुनवाई का अयोध्या केस के मुख्य मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’
एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए आलोक कुमार ने अयोध्या केस को लेकर फैसला न सुनाने पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से निराशा जताई। हालांकि उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए संसद से फैसला लेने की विश्व हिंदू परिषद की मांग से इनकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि वीएचपी की विशेषाधिकार प्राप्त समिति 5 अक्टूबर को अंतिम निर्णय लेगी।
स्वामी के बयान की अल्पसंख्यक संगठनों ने निंदा की है। आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बाबरी मस्जिद कमिटी के जॉइंट कन्वेनर एसक्यूआर इलियास ने कहा कि वह स्वामी के बयान को कोई महत्व नहीं देते हैं।