ज़िन्दगी जीने के मायने क्या हैं, बता दीजिए
कभी किसी रोते हुए इंसाँ को हसाँ दीजिए।
जो कहते है के हर गलती की एक सज़ा मुकर्रर है,
कभी किसी को माफ किया हो बता दीजिए ।
गुरबत की ज़िंदगी जी रहे हैं बहुत लोग दायरे में,
कभी किसी का सहारा बने हो बता दीजिए ।
नुक्स निकालना तो आसान है हर एक सफे में,
कभी किसी गलती को सुधारा हो, बता दीजिए ।
हैं बहुत सारे ज़माने में आलिम और फ़ाज़िल,
किसी को दानिशमंद बनाया हो बता दीजिए ।
विक्रम मिश्र “अनगढ़” (37)
लेखक लखनऊ में फारमेसी बिजनेस से जुड़े हुए हैं