नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधावर को प्रमोशन में आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि एससी-एसटी सबसे पिछड़े समाज के हैं और उन्हें पिछड़ा माना जा सकता है।
Supreme Court’s decision, the rule of the creamy layer will be implemented in the SC-ST reservation
चीफ जस्टिस मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने यह भी कहा कि संवैधानिक कोर्ट के पास सबसे पिछड़े वर्ग में क्रीमीलेयर के लिए किसी भी तरह के आरक्षण को खत्म करने की ताकत है। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का उद्देश्य यह देखना है कि पिछड़े वर्ग के नागरिक आगे बढ़ें ताकि वे भी समान आधार पर भारत के अन्य नागरिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
पीठ ने कहा, ‘यह संभव नहीं होगा अगर उस वर्ग के भीतर सिर्फ क्रीमीलेयर सरकारी क्षेत्र में प्रतिष्ठित नौकरियां हासिल कर ले और अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ले जबकि वर्ग के शेष लोग पिछड़े ही बने रहें, जैसा कि वे हमेशा से थे।’ जस्टिस नरीमन ने 58 पन्नों का सर्वसम्मति से दिया गया फैसला पढ़ा।
फैसले में उन्होंने कहा कि ‘एससी-एसटी सर्वाधिक पिछड़े या समाज के कमजोर तबके में भी सबसे अधिक कमजोर हैं’ और उन्हें पिछड़ा माना जा सकता है। पीठ ने कहा कि पदोन्नति दिये जाने के समय हर बार ‘प्रशासन की दक्षता’ देखनी होगी। पीठ ने कहा कि नागराज मामले में फैसले के उस हिस्से पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये ‘क्रीमीलेयर की कसौटी’ लागू की थी।
कोर्ट ने कहा, ‘यह स्थिति होने के मद्देनजर यह साफ है कि जब अदालत एससी-एसटी पर क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू करती है तो वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 या 342 (एससी-एसटी से संबंधित) के तहत राष्ट्रपति की सूची के साथ किसी भी तरीके से छेड़छाड़ नहीं करती है।’
न्यायालय ने यह भी गौर किया कि इंदिरा साहनी मामले में नौ में से आठ जजों ने क्रीमीलेयर के सिद्धांत को व्यापक समानता सिद्धांत के आयाम के रूप में लागू किया था। कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि, जब क्रीमीलेयर सिद्धांत की बात आती है तो यह गौर करना महत्वपूर्ण है कि यह सिद्धांत अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 (1) को ध्यान में रखता है, क्योंकि उसी वर्ग में असमान लोगों के साथ उस वर्ग के अन्य सदस्यों के साथ समान बर्ताव किया जा रहा है।’
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि वह इस बात में जाना जरूरी नहीं समझती है कि क्या संसद अनुच्छेद 341 और 342 के तहत राष्ट्रपति की सूची से क्रीमीलेयर को बाहर कर सकती है या नहीं। पीठ ने 2006 के संविधान पीठ के एक अन्य फैसले का भी उल्लेख किया जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस के जी बालकृष्णन ने कहा था कि क्रीमीलेयर सिद्धांत एससी-एसटी पर लागू नहीं होता है क्योंकि यह सिद्धांत सिर्फ पिछड़े वर्ग की पहचान करने के लिए है और समानता के सिद्धांत के रूप में लागू नहीं होता है। कोर्ट ने कहा, ‘हम अशोक कुमार ठाकुर मामले में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश बालकृष्णन के बयान से सहमत नहीं हैं कि क्रीमीलेयर सिद्धांत सिर्फ पिछड़े वर्ग की पहचान करने के लिए है और समानता का सिद्धांत नहीं है।’