माले/ नई दिल्ली। मालदीव में 23 सितंबर को चुनाव के लिए मतदान होनेवाले हैं। भारत के लिए मालदीव की अब्दुल्ला यामीन सरकार अगर फिर से चुनी जाती है तो यह बड़ी चुनौती हो सकती है। भारत को ऐसे भी संकेत मिले हैं कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष तरीके से नहीं होगी और यामीन सरकार मतदान को प्रभावित कर सकती है। भारत की फिक्र बेवजह नहीं है क्योंकि चुनाव में चीन की एक कंपनी भी प्रशासनिक काम कर रही है। साथ ही चुनाव आयोग के प्रमुख पूर्व में यामीन सरकार के खुले समर्थक और सहयोगी रहे हैं।
Abdullah Yameen’s government resumes in Malviiv, then challenge can be for India
चीन की इस कंपनी ने इससे पहले जिम्बॉब्वे और मालावी में भी चुनाव प्रक्रिया में शामिल रह चुकी है। कंपनी का काम मालदीव के डिपार्टमेंट आॅफ नैशनल रजिस्ट्रेशन का काम संभालना है। डिपार्टमेंट आॅफ नैशनल रजिस्ट्रेशन ही मतदाताओं को पहचान पत्र देने का काम करती है। चीन का यामीन सरकार पर बहुत अधिक प्रभाव है और इस कारण विरोधी पार्टियां चुनाव को लेकर बिल्कुल भी आश्वस्त नहीं हैं। विपक्ष का आरोप है कि कंपनी का उद्देश्य चुनाव में यामीन सरकार की ही मदद करना है।
वॉल स्ट्रीट जनरल ने रविवार को इस चुनाव को चीन और विश्व की दूसरी बड़ी लोकतांत्रिक देशों के बीच बड़ी चुनौती करार दिया है। भारत मालदीव के चुनावों पर पूरी नजर बनाए हुए है। मालदीव चुनाव पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि मालदीव में चुनाव इस बार पूरी तरह से निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से होंगे।
बता दें कि इस वक्त मालदीव के चुनाव आयोग के प्रमुख इस वक्त अहमद शरीफ हैं। शरीफ चुनाव आयोग प्रमुख बनने से पहले तक देश की सत्ताधारी सरकार के सदस्य थे और मार्च में उनकी चुनाव आयोग में नियुक्ति हुई। फरवरी में उन्होंने ट्वीट किया था, ‘विपक्ष यामीन सरकार के आर्थिक सुधारों के अजेंडा के सामने कहीं नहीं टिकती है।
यामीन सरकार सदियों से चल रही आर्थिक गुलामी से देश को मुक्त करने के लिए काम कर रहे हैं।’ शरीफ को चुनाव आयोग की जिम्मेदारी मिलने के कारण भी विपक्षी दल मालदीव में चिंतित हैं। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया ने नई दिल्ली में मालदीव के प्रतिनिधियों से बातचीत की और सबने शरीफ की नियुक्ति और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को लेकर चिंता जताई।