सरकारी वादों में उलझ गए ग्रामीण: प्रशासन ने तोड़ दिए 120 परिवारों के आशियाने

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नरसिंहपुर। नरसिंहपुर के डूडबारा गांव में करीब 120 परिवार अपने घरों को तोड़कर विस्थापितों की तरह जिंदगी जीने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि इनके पास घर नहीं है, इनके अपने घर थे, लेकिन कुछ वक्त ने और कुछ प्रशासन ने इनके साथ ऐसा खेल खेला कि इन्होंने अपने हाथ से ही अपने आशियाने तोड़ दिये।

जिला मुख्यालय से महज एक किलोमीटर दूर बसा है डूडबारा गांव, जहां रहने वाले गरीब ग्रामीण अपने छोटे-छोटे घरों में भी सुकून की जिंदगी जी रहे थे। इन्हें शानोशौकत की ख्वाहिश नहीं थी, छोटी-छोटी खुशियां ही इनके लिए जिÞंदगी की सबसे बड़ी नियामत थीं और ये इनमें खुश थे।

लेकिन, इनकी छोटी खुशियों को किसी कि नजर लग गई या यूं कहें कि प्रशासन की नजर लग गई। इनसे वादा किया गया था कि जहां वे रहते हैं, वहां से सड़क निकलनी है इसलिए उस जगह को छोड़ दें, इसके बदले में उन्हें नया पक्का घर बनाकर दिया जाएगा। छोटी-छोटी चीजों में खुशियां ढूंढने वाले इन बेचारों को सरकारी कार्यप्रणाली का एहसास नहीं था। प्रशासन का एक वादा ही इन्हें दुनिया की आखिरी हकीकत जैसा लगा।

इस वादे के जाल में फंसकर नये मकानों की चाह में ग्रामीणों ने अपने बसे-बसाये घरौंदे उजाड़ दिये। अब इनके पास न घर है न पीने का पानी, अपनी जमीन होते हुए भी ये खनाबदोश जीवन जीने को मजबूर हैं। तब से अब तक छह महीने गुजर चुके हैं ग्रामीण आज भी हसरत भरी निगाहों से उन अधिकारियों की ओर देख रहे हैं जिन्होंने उनसे पक्के मकानों का वादा किया था।

जिला जब सौ फीसदी खुले में शौचमुक्त है उस वक्त इनकी सुबह खुले मैदानों में हाथ में लोटा लेकर जाते हुए होती है। पीने का साफ पानी इन्हें नसीब नहीं है। अधिकारियों से जब इस बारे में बात की जाती है तो वे कहते हैं कि जांच की जाएगी कहां चूक हुई। स्थानीय विधायक कहते हैं कि मुख्यमंत्री जी ने वादा किया है कि जिनके पास आवास नहीं है उन्हें आवास दिया जाएगा।

लेकिन, इन बेचारों के तो खुद के आवास थे जिन्हें आवास विहीन कर दिया गया। इनका दोष बस इतना है कि प्रशासन के विकास के वादे को इन्होंने जुमला नहीं, हकीकत समझा और अपने आशियाने उजाड़ दिये। इनके पास नेताओं की तरह ऐसा कोई मीटर भी नहीं जिससे जांच सकें कि उनसे किया गया वादा, वादा है या जुमला?