आलोक वर्मा की मुसीबतें नहीं हो रही कम, घोटालों के आरोपी नीरव और माल्या का साथ देने का आरोप

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नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा की मुसीबतें फिलहाल कम होती नजर नहीं आ रही हैं, क्योंकि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने उन पर 6 और आरोपों की जांच शुरू कर दी है। इसमें बैंक घोटालों के आरोपी नीरव मोदी, विजय माल्या और एयरसेल के पूर्व प्रमोटर सी शिवशंकरन के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर के आंतरिक ईमेल को लीक करने का आरोप भी शामिल है।
Alok Verma’s troubles are not getting less, allegations against Nirav and Mallya accused of scandal
नए आरोपों के बारे में सीवीसी ने सरकार को सूचित किया है, जिसके बारे में पिछले साल 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के सामने वर्मा की जांच रिपोर्ट दाखिल करने के बाद भ्रष्टाचार निरोधक टीम द्वारा शिकायतें प्राप्त हुई थीं। वर्मा के खिलाफ उनके ही पूर्व नंबर दो विशेष निदेशक राकेश अस्थाना द्वारा लगाए गए 10 आरोपों की जांच के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्मा से पूछताछ की जानी चाहिए।

सीवीसी के एक सूत्र ने कहा कि सीबीआई को 26 दिसंबर को एक पत्र के माध्यम से कहा गया है कि वह इन मामलों से संबंधित सभी दस्तावेज और फाइलें उपलब्ध कराए, ताकि जांच को तार्किक रूप से पूरा किया जा सके। इसके बाद एजेंसी ने बुधवार को माल्या से संबंधित मामलों के सभी दस्तावेजों का उपलब्ध कराया। बता दें कि नीरव मोदी और माल्या फिलहाल फरार हैं।

वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नीरव मोदी मामले में सीबीआई के कुछ आंतरिक ईमेलों के लीक होने पर आरोपी को ढूंढने की बजाय वह मामले को छिपाने की कोशिश करते रहे। जबकि उस वक्त बैंक धोखाधड़ी मामलों में से एक पीएनबी घोटाले की जांच अपने चरम पर थी। गौरतलब है कि एजेंसी ने जून 2018 में तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजीव सिंह (जो नीरव मोदी की जांच कर रहे थे) के कमरे को बंद कर दिया था और यहां तक कि डेटा प्राप्त करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) को भी बुलाया था। हालांकि, एजेंसी के इस कदम की वजह कभी नहीं बताई गई।

अन्य प्रमुख आरोपों की बात करें तो उन पर एयरसेल के पूर्व मालिक सी शिवशंकरन के खिलाफ जारी लुकआउट सर्कुलर को कमजोर करने का आरोप है, जिससे इस 600 करोड़ रुपये के आईडीबीआई बैंक ऋण धोखाधड़ी में प्रमुख आरोपी को भारत छोड़ने की अनुमति मिली। यह जानकारी मिली है कि संयुक्त निदेशक रैंक के अधिकारी ने शिवशंकरन से अपने दफ्तर और पांच सितारा होटेल में मुलाकात की। यह मुलाकात के सेवा नियमों और सीबीआई की आंतरिक प्रक्रियाओं के विपरीत थी। दिलचस्प बात यह है कि शिवशंकरन ने आईपीएस अधिकारी से मिलने के लिए फर्जी पहचान का सहारा लिया। इसके थोड़ी देर बाद उद्यमी के खिलाफ जारी हुए लुकआउट सर्कुलर को कमजोर कर दिया गया।

वर्मा के खिलाफ एक और गंभीर आरोप अक्टूबर, 2015 में जारी पूर्व शराब व्यापारी विजय माल्या के लुकआउट सर्कुलर (एलओसी) को कमजोर करने से संबंधित है। माल्या पर 900 करोड़ रुपये के आईडीबीआई बैंक धोखाधड़ी के आरोप थे, जिसमें हाल ही में ब्रिटेन की एक अदालत ने उनके प्रत्यर्पण का आदेश दिया था। एलओसी जारी होने के एक महीने के भीतर, वर्मा के करीबी माने जाने वाले सीबीआई के संयुक्त निदेशक एके शर्मा ने आव्रजन अधिकारियों को पत्र लिखकर ‘हिरासत’ के बजाय केवल ‘सूचित’ करने की मांग की। इससे माल्या को देश से भागने में मदद मिली।

वर्मा की ईमानदारी पर सवाल उठाते हुए तीन अन्य आरोप सीबीआई की लखनऊ शाखा में तैनात अडिशनल एसपी सुधांशु खरे ने लगाए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्मा ने उत्तर प्रदेश एटीएस के अडिशनल एसपी राजेश साहनी की आत्महत्या की जांच से इनकार कर दिया, जो आॅफिस में गोली लगने से मृत पाए गए थे। खरे ने कहा था कि वर्मा ने यह सब यूपी के कुछ पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए किया। इस मामले में योगी सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की थी, लेकिन एजेंसी ने कभी इस मामले को जांचने में रुचि नहीं दिखाई।