नई दिल्ली
भारत का मिशन चंद्रयान-2 भले ही सफलता से चांद पर नहीं उतर पाया हो लेकिन इससे निराश होने की जरूरत नहीं है। अंतरिक्ष इतिहास में हार में ही जीत की कहानियां छिपी हुई हैं। अमेरिका और रूस जैसे दिग्गज देश भी कई बार असफल होने के बाद ही चांद को छूने में कामयाब रहे थे। भारत का चंद्रयान-2 मिशन चांद की सतह पर लैंड करने के ठीक पहले रास्ता भटक गया। हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) ने अपने प्रयोग से अंतरिक्ष अभियान में अपनी पहचान और पुख्ता कर ली है।
ऐसा नहीं है कि केवल भारत ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग से चूका हो, अमेरिका और रूस जैसे देशों को भी अपने चांद अभियानों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। शुरुआत में तो चांद पर पहुंचने की सफलता दर बेहद कम थी लेकिन, जैसे-जैसे तकनीक बदलती गई इसमें बदलाव आता गया। अमेरिका अपने कुल चांद मिशन में 26 बार असफल रहा है जबकि रूस को 14 बार नाकामी हाथ लगी थी।
भारत को मिलेगी बड़ी मदद
चांद के साउथ पोल की सतह पर की सॉफ्ट लैंडिंग की असफल कोशिश एक छोटा झटका माना जा रहा है। इस झटके से मिली सीख के बाद इसरो को अपने भविष्य के मिशनों के लिए इस्तेमाल कर सकता है। चंद्रयान-2 मिशन पूरी तरह असफल नहीं रहा है। इसका ऑर्बिटर अभी भी चांद की कक्षा में घूम रहा है। इस मिशन से मिली सीख इसरो को आगे के अभियानों में काम आएंगी।
1950 के दशक में शुरू हुई चांद को छूने की तमन्ना
चांद को छूने की तमन्ना की शुरुआत 1950 के दशक से हुई थी। दुनिया की दो बड़ी ताकतें अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (अभी रूस) ने इस दशक में कुल 14 मिशन चांद पर भेजे थे। अमेरिका ने कुल 7 मिशन चांद पर भेजे लेकिन उसे केवल एक मिशन में ही सफलता हाथ लगी। उधर, रूस ने कुल 4 मिशन चांद पर भेजे जिसमें उसे 3 में सफलता मिली।
अमेरिका-रूस का पहला मिशन रहा था फेल
अमेरिका ने अगस्त 1958 में अपने पहले मून मिशन पायनियर के जरिए चांद की जानकारी जुटाने की कोशिश की। हालांकि, लॉन्चिंग फेज के दौरान ही यह मिशन असफल हो गया। सोवियत संघ ने इसके ठीक एक महीने बाद सितंबर 1958 में मानवरहित लून मिशन शुरू किया। इस मिशन के जरिए सोवियत संघ चांद की सतह के बारे में जानकारी जुटाना चाहता था। हालांकि, यह मिशन भी लॉन्चिंग फेज में ही फेल हो गया।