अमेरिका : एक माह की लापरवाही ने बढ़ाई महामारी, जांच में बरती गई कोताही

0
271

वर्ल्ड डेस्क

अमेरिका में बेकाबू कोरोना ने प्रशासन और व्यवस्था की पोल खोल दी है। अमेरिकी प्रशासन की सबसे ज्यादा आलोचना लोगों की समय रहते जांच न कर पाने को लेकर हो रही है। बताया जा रहा है कि जब चीन से अमेरिका में संक्रमण फैलने के संकेत मिले थे तब व्हाइट हाउस में आयोजित हुई एक बैठक में कोरोना वायरस टास्क फोर्स ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया।

टास्क फोर्स के सदस्यों ने अमेरिका में टेस्टिंग समेत अन्य उपायों पर 10 मिनट से ज्यादा चर्चा तक नहीं की। इस बैठक में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के पदाधिकारियों ने वहां मौजूद सदस्यों को बताया कि उसने एक जांच मॉडल विकसित कर लिया है और जल्द ही इसका उपयोग किया जाने लगेगा। लेकिन जनवरी अंत से लेकर मार्च की शुरुआत तक अमेरिकी में संक्रमण बहुत तेजी से फैला। सोमवार को यहां कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या डेढ़ लाख के पार पहुंच गई है और तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

सीडीसी के पूर्व निदेशक डॉ थॉमस फ्रीडमैन का कहना है कि लोगों की स्क्रीनिंग शुरू होने से पहले सरकार की घोर नाकामी उजागर हुई है। विशेषज्ञ जैनिफर नज्जो के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने कोरोना के संभावित प्रभावों को काफी हल्के में लिया।

महाभियोग के कारण बंटा हुआ था राष्ट्रपति ट्रंप का ध्यान : जब अमेरिकी सरकार को कोरोना से बचाव के उपाय करने तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ध्यान महाभियोग को लेकर बंटा हुआ था। इसके बाद ट्रंप ने दावा किया कि यह वायरस अमेरिका में टिकने वाला नहीं है। यह गायब हो जाएगा। मार्च की शुरुआत में जब राज्यों के अधिकारियों ने आखिरकार लोगों की जांचें बढ़ाने का निर्णय लिया, तब तक काफी देर हो चुकी थी।

सबसे प्रशिक्षित वैज्ञानिक और डॉक्टरों का नहीं उठाया लाभ:  अमेरिका के 50 से ज्यादा पूर्व और वर्तमान स्वास्थ्य अधिकारियों, वरिष्ठ वैज्ञानिकों और उच्च पदाधिकारियों ने इस विफलता के पीछे बड़ी वजह तकनीकी खामियां, नौकरशाहों के लचर रवैये समेत राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया है। नतीजतन एक महीना गंवा दिया। वक्त पर जांच शुरू हो जाती तो बड़ी आबादी को संक्रमण से बचाया जा सकता था। सबसे प्रशिक्षित वैज्ञानिक और विशेषज्ञों की मौजूदगी के बावजूद अमेरिका नाकामयाब रहा। असल में एक बड़े खतरे के मुहाने पर लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।

कोरोना का इलाज एचआईवी नहीं मलेरियारोधी दवाओं से, केंद्र ने दी नई गाइडलाइन

कोरोना वायरस के इलाज के दौरान आईसीयू में पहुंचे संक्रमितों को मलेरियारोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को एजीथ्रोमाइसिन के साथ देने की सिफारिश केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने की है। वायरस के प्रबंधन के लिए मंगलवार को जारी अपडेट गाइडलाइन में यह भी कहा कि यह दवा 12 साल से छोटे बच्चेों व गर्भवती महिलाओं व प्रसूताओं के लिए नहीं है।

पूर्व में की गई एंटी-एचआईवी दवाओं के उपयोग की सिफारिश को मंत्रालय ने हटा लिया है। मंत्रालय ने कहा कि फिलहाल कोई पक्की दवा इलाज के लिए बनी नहीं है, लेकिन कुछ दवाएं असर कर रही हैं। एंटी एचआईवी दवाओं के कॉम्बिनेशन लोपिनाविर और रिटोनाविर को इससे पहले सुझाया गया था, जिन्हें अब हटा लिया गया है। इन्हें इलाज में उपयुक्त नहीं पाया गया।

 

WHO की एशिया और प्रशांत क्षेत्रों को चेतावनी, कहा- वायरस से लंबी है लड़ाई

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 को लेकर पूरा ध्यान जहां पश्चिमी यूरोप और उत्तर अमेरिका के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों की ओर चला गया है वहीं एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यह महामारी अभी समाप्त होने से बहुत दूर है।

एशिया और प्रशांत क्षेत्र के सभी स्तर पर सरकारों से वायरस से लड़ने के प्रयासों में लगे रहने का अनुरोध करते हुए डब्ल्यूएचओ के पश्चिम प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ ताकेशी कासाई ने कहा, ‘यह लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है और हम अपनी चौकसी में ढिलाई नहीं ला सकते। प्रत्येक नागरिक को उनके स्थानीय हालात के हिसाब से निपटना होगा।’ उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ को लगता है कि इससे निपटने के लिए सभी के लिए एक समान तरीका नहीं है लेकिन कुछ समान उपाय जरूर हैं। ताकेशी ने कहा, ‘इनमें लोगों का पता लगाना, उन्हें अलग करना और जल्द से जांच कराना, पता लगने के बाद अन्य संपर्कों को जल्द अलग करना तथा संक्रमण की रफ्तार कम करने और उसे रोकने के लिए लोगों के बीच दूरी सुनिश्चित करने के लिए अनेक सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय करना शामिल है।’

उन्होंने इस बात के लिए भी आगाह किया कि देशों को बड़े स्तर पर सामुदायिक संक्रमण के लिए तैयार रहना होगा। ताकेशी ने कहा, ‘हमें यह बात साफ तौर पर समझनी होगी कि इन उपायों के साथ भी खतरा तब तक नहीं टलेगा जब तक यह महामारी रहती है।’