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भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट और सीमा विवाद के बीच चीन के प्रॉपगैंडा अखबार ग्लोबल टाइम्स ने तंज कसा है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि मायनस 24 फ़ीसदी जीडीपी होने के साथ भारत सरहद पर तनाव नहीं झेल पाएगा। ग्लोबल टाइम्स के लेख में लिखा गया है, भारत की अर्थव्यवस्था डूब रही है और ऐसा लगता है कि मोदी सरकार इसे ठीक करने के बजाए इसे और गर्त में ले जा रही है। संकट की इस घड़ी में सरकार अर्थव्यवस्था सुधारने के बजाए हथियार खरीद पर जोर दे रही है। हथियार खरीदने का संबंध जियोपॉलिटिकल हो सकता है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के लिहाज से सही साबित नहीं होता है। भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था से लगता है कि देश सरहद पर तनाव लंबे समय तक नहीं झेल सकता है।
लेख में कहा गया है कि एलएसी पर अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती का समर्थन करना महंगा है। इससे रसद के साथ भारत की वित्तीय क्षमता पर भी असर पड़ेगा। रोजाना के काफी पैसे खर्च होंगे। जैसे-जैसे सर्दी करीब आ रही है, आवश्यक सैन्य आपूर्ति के लिए सैन्य खर्च और भी अधिक बढ़ जाएगा। भारत के सेनाध्यक्ष जैसे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने पहले ही दावा किया था कि सेना कठोर सर्दियों में तैनाती के लिए तैयार थी, इस तरह के कट्टरपंथी और सख्त स्वर सैन्य आपूर्ति के भारी दबाव के तहत नाजुक और कमजोर लग सकते हैं।
लेख में एक बार फिर से चीन ने गलत आरोप लगाते हुए कहा कि भारतीय सैनिक चीनी क्षेत्र में घुस आए। लेख में कहा गया है कि भारतीय सरकार भले ही सीमा पर नया विवाद पैदा करना चाहती हो लेकिन इससे लगता है कि सरकार कोरोना वायरस महामारी और अर्थव्यवस्था पर काबू पाने की असमर्थता को सीमा पर विवाद के जरिए छिपा रही है। भारत को वास्तविक आर्थिक नतीजों को पहचानने की जरूरत है, क्योंकि सर्दियों की तैनाती के लिए महंगा सैन्य रसद और आपूर्ति से उसकी अस्थिर घरेलू अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।