चंडीगढ़। ‘थ्रोइंग इन दी टाव्ल’ एक ऐसा वाक्य है जिससे लगभग सारे बॉक्सर्स परिचित हैं। इस वाक्य का मतलब होता है हार को स्वीकार कर लेना लेकिन अमित पंघल के लिए इन शब्दों के कोई मायने नहीं है। हार न मानने वाले अमित ने शनिवार को एशियाई खेलों में गोल्ड जीतकर यह साबित भी कर दिया। गोल्ड जीतने के बाद अमित के भाई अजय पंघल उनके संघर्ष को याद करते हुए बताते हैं कि जब इस किसान परिवार के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे, तब अमित बिना बॉक्सिंग ग्लव्स के ही अपनी ट्रेनिंग किया करते थे।
Amit did not have the financial condition of winning gold medal
हरियाणा के रोहतक जिले के मैना गांव में रहने वाले अमित के पिता, विजेंदर सिंह एक साधारण किसान हैं, जो अपनी एक एकड़ की जमीन पर गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं। परिवार की आर्थिक हालत कभी बहुत अच्छी नहीं रही। इसके चलते अमित के बड़े भाई अजय पंघल ने बॉक्सिंग छोड़ दी थी। अमित के बड़े भाई अजय आज सेना में है।
अजय अपना पुराना वक्त याद करते हुए बताते हैं, ‘बॉक्सिंग के लिए अमित का जूनून ऐसा था कि उन्होंने बिना बॉक्सिंग ग्लव्स के 6 महीने तक ट्रेनिंग की थी। उनके बॉक्सिंग ग्लव्स जगह-जगह से तार-तार हो गए थे और नए ग्लव्स खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। एक समय ऐसा भी था जब अमित के पास बॉक्सिंग ग्लव्स खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और उन्होंने 6 महीने से भी ज्यादा समय तक बिना ग्लव्स के ट्रेनिंग की। लेकिन उसने हार नहीं मानी। एक बॉक्सर के लिए सही डाइट बहुत जरूरी होती है अजय को यह भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हुई।’
इन सभी चुनौतियों के बावजूद अमित ने अपनी जी-तोड़ मेहनत और बुलंद हौंसले के दम पर बड़े-बड़े बॉक्सर को मात देकर गोल्ड हासिल किया। कई बार तो अमित ने खाली पेट भी ट्रेनिंग की है और जीत हासिल की है। अमित भारतीय सेना में जेसीओ हैं और नायब सूबेदार के पद पर तैनात हैं। उन्होंने 2006 में बॉक्सिंग करना शुरू किया था। अमित के पिता विजेन्दर सिंह ने कहा, ‘हमारे परिवार ने ओलिंपिक मेडल के लिए काफी त्याग किया है। आज जो मेडल उसने पाया है उससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा लेकिन हम सभी का सपना है कि वह ओलिंपिक में गोल्ड हासिल कर देश का नाम ऊंचा करे।’