राजनीति में साहस, सदमे और सबक का माहौल

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राघवेनदर

वैसे तो हर पल सबक मिलते है लेकिन पिछले दिनों भारतीय राजनीति में जो कुछ हुआ उसमें मिला जुला मामला नज़र आया।भारतीय सियासत में धर्म मजहब के साथ सूफियाना रंग भी घुला हुआ है।इसलिए कहा जाता है जो चाहा वह हो जाये तो अच्छा और जैसा सोचो वैसा नहीं हो तो और भी अच्छा।पिछले हफ्ते धारा 370 के संसद में हटाने का धमाका हुआ और राजनीति को छोड़ दे तो आलोचना करने वाले दलों के नेता और कार्यकर्ता भी मोदी सरकार के साहस की प्रशंसा कर रहे हैं।विरोध करने वालों के नफे नुकसान के गणित पर हम नहीं जाते ।लेकिन इतना तय है कि मुल्क में ज्यादातर लोग खुश हैं।विरोध करने वालों का सियासी गणित इस बार गलत बैठेगा।

जिस तरह कांग्रेस धारा 370 लगाकर कश्मीर मुद्दे पर आलोचना का शिकार हुई थी उसी तरह 70 साल बाद ही सही मोदी सरकार इस धारा को हटाकर देशभर में तारीफ लूट रही है कह सकते हैं अभी मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की छवि हीरो की तरह है सियासी पंडितों के मुताबिक भाजपा ने दो चुनाव जीतने का आधार पक्का कर लिया है । सरकार के इस फैसले की गूंज अभी कुछ महीनों देशभर में सुनाई देने वाली है लोक प्रतीक्षा कर रहे हैं ईद के बाद श्रीनगर में और कश्मीर घाटी से धारा 144 के हटने की क्योंकि उसके बाद सही अंदाज लग पाएगा कि कश्मीर में महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला के समर्थकों ने लगने का कितना मन बनाया है।

[ ] हमने शुरुआत में कहा था 86 शब्दों के बारे में दिल्ली के तीन पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सुषमा स्वराज और मदन लाल खुराना की मृत्यु से उनके समर्थक और पार्टियां सदमे में हैं।

शीला जी और सुषमा जी जनता से जुड़ी होने के साथ-साथ सियासत में सुशील सभ्य और सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी थी उनकी मौत ने कांग्रेस भाजपा के साथ उनके कार्यकर्ता और जनता को भी जरूर दुखी किया है।

शनिवार को मैं आंध्र प्रदेश के बेल्लारी संसदीय सीट से गुजर रहा था श्रीशैलम में महा देव मल्लिकार्जुन के दर्शन का मुझे हैरानी हुई कि यहां सड़क के बीचो-बीच सुषमा स्वराज जी की फोटो लगी थी और उसमें तेलुगु भाषा में उनके प्रति संवेदना और दुख जताया गया था कई बरस पहले सुषमा जी ने यहां लोकसभा का चुनाव लड़ा था हालांकि वे चुनाव हार गई थी लेकिन उनकी मृत्यु पर दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश में कोई उन्हें याद करते हैं तो यह उनकी लोकप्रियता और सात्विक राजनीति का प्रतीक ही माना जाएगा मैं अपने ऊपर से ही उदाहरण लेता हूं शीला दीक्षित जी से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई मगर उनके निधन से मुझे लगा जैसे कोई मेरे परिवार का ही बुजुर्ग हमसे दूर चला गया हो। इन दोनों नेताओं की मृत्यु से यह सबक तो मिलता है की धन और प्रतिष्ठा कमाने के साथ अगर आपने दिलों में जगह नहीं बनाई तो जनकल्याण की राजनीति व्यर्थ है।

जो लोग पद और धन कमा रहे हैं उनके लिए शीला जी और सुषमा स्वराज की मृत्यु मैं शोक मनाने वाले शायद उतने ना मिले जितने इन दोनों नेताओं को उनकी अपनी पार्टी से ज्यादा आंसू बहाने वाले मिले। एक बार मैंने पहले भी जब मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता केंद्रीय मंत्री अनिल माधव दवे की मृत्यु पर भी कहा था कि कुछ दिनों से उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा चल रही थी और अचानक उनकी मृत्यु हो गई कुल मिला कर जिंदगी में किसी का कुछ भरोसा नहीं ईश्वर की कृपा से प्रशासन और सत्ता में अगर कोई महत्वपूर्ण पद मिले तो ईमानदारी से जनता का भला करना चाहिए और देश की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ानी चाहिए लेकिन बदलते दौर में बदलते दौर में एक शेर बड़ा मौजूद है कि उसने नमक का हिसाब भी खूब चुकाया जख्मों पर नमक लगाकर जमाने में लोग जनता का एहसान तो चुका रहे हैं भला कम करते हैं और जख्मों पर नमक ज्यादा लगाते हैं।

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं