अनमनी, अलसाई, अपरिपक्व और सत्ता पर मेहरबान सी कांग्रेसन

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TIO राघवेंद्र सिंह

मध्यप्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के लिए कांग्रेस सबसे मुफीद साबित हो रही है। जो गति 2003 से 2018 तक कांग्रेस की थी कमोबेश अब भी वैसी ही है। बिना अलाप लिए सुर को सप्तम तक खीचने के बाद किरकिरी कराने के दर्जनों किस्से हैं। लेकिन हम हाल के दो मामलों को हांडी के चावल के रूप में समझने की कोशिश करते हैं। आसमान छूते डीजल – पेट्रोल के दामों को लेकर अचानक मध्यप्रदेश बंद का ऐलान और फिर उसके कमजोर प्रदर्शन होने पर जग हंसाई। किसान आंदोलन में भी संगठन के कमजोर प्रबन्धन ने निराश किया। आंदोलन, गिरफ्तारी और बन्द के पहले ब्लॉक से संभाग और प्रदेश स्तर के न तो धरना-आंदोलन और न ही सांकेतिक हड़ताल। सीधे बंद, नतीजा फ्लॉप शो। फिलहाल कांग्रेस कार्यकर्ताओं और जनता की नब्ज पकड़ने के प्रयास इतने अनाड़ीपन से कर रही है कि मुद्दों के बाबजूद लगता है अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश। कांग्रेसजनों को बुरा लग सकता है लेकिन फिलवक्त तो यही हालात हैं। देश की आज़ादी के आंदोलन की मुखिया रही कांग्रेस दिल्ली से भोपाल तक सत्ता से लेकर संगठन शास्त्र में असफल साबित हो रही है। पहले कांग्रेस कहती थी कि देश भर से नाता है और सरकार चलाना आता है। मप्र में कांग्रेस सरकार दो साल भी नही चल सकी, पन्द्रह महीने में ही गिर गई। कोई भी दल संगठन की शक्ति के बूते ही सरकार में आता है।

प्रदेश में कांग्रेस संगठन की हालत बहुत दयनीय है। कांग्रेस की अकर्मण्यता की हद ये है कि 2003 के बाद इंदौर में कांग्रेस का सम्भागीय सम्मेलन 2021 में हुआ। इंदौर राज्य का सबसे बड़ा और सर्वाधिक महत्वपूर्ण शहर है। पूरे मालवा की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले इंदौर कांग्रेस के ये हाल हैं। इक्कीस फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के संभागीय कार्यक्रम में शिरकत करते हैं। वे यह नही पूछते कि आज के पहले संभागीय या जिला सम्मेलन कब हुआ था? श्री नाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। ये उन महत्वपूर्ण और भाग्यशाली नेताओं में हैं जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के साथ मुख्यमंत्री बनने के बाद भी इसी पद पर रहते हैं और सरकार के गिरने के बाद भी अध्यक्ष के साथ नेताप्रतिपक्ष के पद पर जमे रहने में अब तक कामयाब रहते हैं। भाजपा के सामने जिस मैदानी सक्रियता, समन्वय और संघर्षशील नेतृत्व की दरकार है उस लिहाज से अभी तक कोई स्पार्क नजर नही आ रहा है।

बल्कि एक के बाद एक फ्लॉप शो कांग्रेस को कमजोर और भाजपा को राहत देते दिख रहे हैं। बॉक्सभोपाल के ‘निर्भया कांड’ पर चूक गई कांग्रेस…जनता से जुड़े मुद्दों को पकड़ने और उसे लेकर जनता के बीच जाने में कांग्रेस की नासमझी भाजपा के लिए मुफीद साबित हो रही है। राजधानी के एक थाने में 16 जनवरी को एक लड़की को आरोपी छेड़छाड़ करते हुए गहरे गड्ढे में धकेल देता है। उसके बाद सिर पर पत्थर से कई जानलेवा वार करता है। पूरे मामले में रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद लड़की गुहार लगाती है मुझे जान से मत मारो भले ही रेप कर लो। इसके बाद हफ़्तों गुजर जाते हैं लेकिन आरोपी पर मामूली छेड़छाड का मामला ही दर्ज होता है। गृह विभाग तो सो ही रहा है लेकिन उसकी नींद के पीछे कांग्रेस की अकर्मण्यता भी बड़ी वजह है। दिल्ली के निर्भया कांड की तर्ज पर हुई इस घटना पर कांग्रेस और समाजसेवी संगठन भी सो रहे हैं। पकड़े गए आरोपी की शिनाख्त पीड़ित से नही कराई गई है। इस संगीन मुद्दे पर कोई धरना- प्रदर्शन नही। मुख्यमंत्री- गृह मंत्री में से रस्मी तौर पर भी किसी के इस्तीफे की मांग नही। जनता क्या समझेगी इसे..? इसके बाद जनता में अनचाहे ही एक सन्देश जा रहा कि दोनों दलों में नूराकुश्ती चल रही है। सत्ता का विरोध रस्मी तौर पर तो भाजपा सरकार भी कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में नरमी अपना रही है। कुछ लोग कहते हैं सब मिले हैं जी। इसमें मीडिया भी शामिल है। ऐसा है तो लोकतंत्र के लिए यह सबसे खतरनाक है।