#प्राचीन_परंपराएं

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भारत मे आज भी कुछ प्राचीन परंपराएं रिवायत मे है उन्हीं में एक रायसेन के प्राचीन दुर्ग से चलायी जाने वाले तोप भी है जो रमज़ान माह मे इस्तेमाल होती है। ऐसा कहा जाता है कि 18वी सदी मे रायसेन रियायत की बेगम ने इस पंरपंरा की नींव रखी जो आज भी लगभग 200 सालों से रिवायत मे है, साथ ही पूरे भारत मे सिर्फ़ यायसेन ही एक ऐसा अनूठा शहर है जहां रमज़ान के दौरान इफ्तार करने का वक्त तोप से मुकर्रर होता है व वहां के रहवासी इस बात पर आज भी फ्रख महसूस करते है।
रमज़ान माह मे चांद दिखने के बाद रायसेन के प्राचीन किले से इस तोप को कई बार दागा जाता है जो इस मुबारक महिने के शूरूआत का सन्देश देते है फिर यह सिलसिला अगले तीस दिन तक रिवायत मे रहता है जिसमे सुबह सेहरी खत्म होने व ढलती हुई शाम के दौरान इफ्तार करने के संदेश को तोप चलाकर दिया जाता है और यह 200 साल से चली आ रही प्राचीन परंपरा उसी रंग मे आज भी रंगी हुई है।
वैसे उस समय इस्तेमाल मे लायी जाने वाली तोप आज के मौजूदा समय मे छोटी इस्तेमाल होने लगी है इसे सिप्पा तोप कहा जाता है क्योंकि तोप की धमक से किले को कोई नुकसान ना हो परन्तु तोप की गर्जना आज भी वही है जो लगभग रायसेन के 30 किलोमीटर तक अपनी बुलंद आवाज़ की दस्तक देती है।
इस तोप के इस्तेमाल के लिए बकायदा एक माह का अस्थायी लाइसेंस डीएम (कलेक्टर) द्वारा मुस्लिम त्योहार कमेटी को दिया जाता है व लगातार 1 माह तक सुबह-शाम तोप चलने में लगभग 50 हजार रुपए खर्च होते है जिसमें नगरपालिका द्वारा 7000, शहर काजी द्वारा 5000 और बाकी चंदे के रूप में जमा किया जाता है तथा इस तोप को चलाने की ज़िम्मेदारी किशवर उर्फ़ पप्पू को दे जाती है जिनकी तीन पीढ़ियाँ इस काम को हर रमजान में पूरी शिद्दत के साथ अपना यह दायित्व निभा रही है।
पप्पू वक्त से करीब आधे घंटे पहले नियत स्थान पर पहुंच जाते हैं और मस्‍जिद से इशारा मिलते ही तोप दाग दी जाती है
पप्पू बताते हैं कि एक बार गोला दागने में करीब 500 ग्राम बारूद लगता है। तोप चलने के साथ-साथ यहां सहरी से पूर्व बाजे बजाने की परंपरा आज भी जारी है जिसमें सुबह सहरी के समय से दो घंटे पहले से किले से बाजे बजाने का काम बंशकार परिवार के लोग करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बाजे की आवाज से रोजेदार उठकर बाजे बंद होने तक सेहरी की तैयारी कर लें। रोजेदार शाम को तोप की गूंज के बाद इफ्तारी करते हैं। और ईद का चांद दिखने पर इस तोप को माह मे अंतिम बार दागकर अगले रमज़ान के तक इस प्राचीन परंपरा का रायसेन वासी इंतजार करते है