राकेश अचल
आने वाले दिनों में देश की राजनीति का रंग क्या होगा,तस्वीर कैसी होगी इसका अंदाजा यदि आपने कल की काशी डुबकी देखकर भी नहीं लगाया तो आपका कल्याण परमात्मा भी नहीं कर सकते। वे सौभाग्यशाली हैं जो काशी में जन्मे ,वे और सौभाग्यशाली हैं जो काशी में गंगा के बुलावे पर अपनी जमीन छोड़कर काशी में बाबा विश्वनाथ की सेवा करने के लिए अहिल्यावतार लेकर काशी पहुंचे हैं। ऐसे लोगों से आप जलिये मत। उनके पीछे-पीछे चलिए ,यही राष्ट्रधर्म है ,यही अघोषित भगवा फतवा है।
काशी में डुबकी लगाने और निहोरे करने से बहुत सी बगड़ी बातें बन जाती है। आप हर साल पाप करिये और फिर एक बार जाकर गंगा में डुबकी लगाकर तरोताजा होकर वापस अपनी राजधानी लौट जाइये,आपको नींद अच्छी आएगी । संसद के हंगामें आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। आपको हंगामें भी डमरू की थाप सुनाई देगी। साल- साल भर चलने वाले आंदोलनों से होने वाला सर दर्द एक त्रिपुण्ड लगाने भर से काफूर हो जाएगा।कृषक आंदोलन में मारे गए किसान आपको क्षमा कर देंगे।
काशी छोड़कर मगहर जाना पुरानी बात है । काशी छोड़ने वाले कबीर होने की कोशिश कभी नहीं करते,वे केवल कबीर का नाम लेते हैं और मोच्छ को प्राप्त हो जाते हैं। फिर कोई काशी छोड़े भी क्यों, सबको तो कबीर नहीं होना ?कबीर को राम से निहोरा करने की जरूरत नहीं थी ,क्योंकि उनके राम उनके मन में बसे थे किन्तु आज राम मन में नहीं मंदिर में बसते है।राम के लिए नया भव्य,दिव्य मंदिर बनाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। हमारी सरकार तो मंदिरों वाली सरकार है । अयोध्या में काम शुरू करा दिया है । काशी में कॉरिडोर बनवा दिया है । मथुरा वेटिंग लिस्ट में है । सोमनाथ वाले गुजरात में काशी कॉरिडोर से भी पहले पटेल साहब की प्रतिमा लगाकर पर्यटन को जीवित कर दिया है । राम पथ बना दिया है । रामायण रेल चला दी है। और क्या सरकार के प्राण लोगे भक्तो ?
आजादी के 75 सालों में भला ऐसी भक्तिभाव वाली कोई सरकार आयी है ? नहीं आयी न ! अब ऐसी भक्तिभाव वाली सरकार के कहने पर आप सूबो में ऐसी ही सरकारें नहीं बनवा सकते ? इससे पहले वाली सरकारें गंगा स्नान करने कम ही आती थीं। आती भी थीं तो किसी को दिखाई नहीं दिखाई देती थी । हम तो सब कुछ लाइव दिखाते है। हम पारदर्शिता में यकीन रखने वाली सरकार हैं। हम काशी में छोटे-छोटे मंदिर तोड़कर बड़ा सा कॉरिडोर बना सकते हैं ,तो देश नहीं बना सकते,समाज नहीं बना सकते ?।
नया बनाने के लिए पुराने को तोड़ना कोई अधर्म नहीं है। इस पर भी यदि कोई समझता है कि सरकार ने पाप किया है तो चलिए हम दिसंबर की सर्दी में भी गंगा में डुबकी लगाकर अपने जाने-अनजाने में हुए तमाम पाप धोये लेते हैं। गंगा का हमारे पाप धोने से क्या बिगड़ने वाला है ? गंगा तो पहले से मैली है लेकिन पाप नाशनी है।गंगा ने तो आपातकाल लगाने वालों के भी पाप धो दिए थे। गंगा तो है ही धुलाई करने के लिए। अब देखिये कि जब से गंगा ने हमें बुलाया है हमने पूरे देश को धो दिया। विपक्ष को धो दिया,किसानों को धो दिया,मुसलमानों को धो दिया और जो बच गए हैं उन्हें हम आने वाले तीन साल में धो डालेंगे।
हमारे राम अयोध्या में बसते हैं इसलिए हमें काशी आकर निहोरे करना पड़ते हैं। हमारे निहोरे को काशी ही नहीं बल्कि पूरा देश सुनता है और हमें बार-बार चुनता है ,फिर भी यदि किसी को आपत्ति है तो बनी रहे। काशी के निहोरे कभी अनसुने नहीं जाते। यदि जाते होते तो हम अजमेर में जाकर निहोरे न कर रहे होते । हमें अजमेर की जरूरत ही नहीं। हमें किसी और की जरूरत ही नही। हमारी काशी और गंगा ही बहुत है।आप कहें तो आने वाले चुनावों में हम चुनावी घोषणा पत्र की जगह गंगाजल उठाकर जारी कर दें। आपको काशी और काशी प्रवासी पर भरोसा करना चाहिए।
काशी सबकी गवाह है । कोरोनाकाल में इसी काशी ने छन्नूलाल मिसुर के आंसू देखे हैं काशी में कॉरिडोर बन रहा था लेकिन आक्सीजन प्लांट नहीं था । मिसुर जी के रिश्तेदार बिना आक्सीजन के चल बसे लेकिन उन्होंने कोई शिकायत की ? काशी के लोग भोले-भाले होते है। इसीलिए मुझे काशी पसंद है । काशीवाले पसंद है। मेरा बश चले तो मै अपना नाम बदलकर काशी राम रख लूँ ,आप हमें यूपी में काम करने का मौक़ा दीजिये ,हम पूरी यूपी में काशीफल की खेती को प्रोत्साहित करेंगे। हम सीतफल की खेती का भी ध्यान रखेंगे। हमें पता ही कि देश का असली विकास मंदिरों के विकास से ही होगा। मंदिर होंगे तो गरीबी कम होगी,रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे ,अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा। हम देश को कृषि प्रधान नहीं मंदिर प्रधान देश बनाना चाहते हैं।
बहरहाल देश बदल रहा है,इसलिए देशवासियों को भी बदलना चाहि। विपक्ष के बहकावे में नहीं आना चाहिए। काशी में किये गए निहोरे को सुनना चाहिए और काशीप्रेमियों को ही चुनना चाहिए। अब निर्णय है आपका ,क्योंकि काशी है आपकी।