नई दिल्ली। साल भर पहले भारतीय सेना ने पत्थरबाजों से बचने के लिए जिस फारुख अहमद डार नाम के युवक को अपनी जीप के आगे बांधा था, आज वह अपने गांव वालों की वजह से बिल्कुल टूट चुका है। डार के अनुसार उस घटना के एक साल बीत जाने के बाद भी उसके गांव वाले उसके साथ अच्छे से बर्ताव नहीं कर रहे।
उसका कहना है कि उस घटना के बाद अब गांव वाले उसे भारत सरकार का एजेंट मानने लगे हैं। यही वजह है कि डार के गांव वालों ने उसका बहिष्कार कर दिया है। कोई भी उसे गांव में रहने या उससे बात करने को तैयार नहीं है। अपने साथ हो रहे इस तरह के बर्ताव से डार का काफी दुखी है । डार बताते हैं कि जिस दिन उनके साथ यह घटना हुई उस दिन श्रीनगर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में चुनाव का दिन था।
इस दिन अलगाववादी संगठनों के चुनाव के बहिष्कार के आह्वान को न मानते हुए जार वोट डालने जा रहे थे। इलाके में माहौल पहले की तुलना में खराब थे। और उस दिन की गोलीबारी में कुल आठ लोग मारे गए। इस वजह से आम लोगों में सेना के प्रति गुस्सा था। केन्द्रीय एजेंसियों और स्थानीय पुलिस ने जांच में उस दिन की घटना के संबंध में डार की बात को सच माना था और उन्होंने उनके पत्थरबाज होने के सेना के दावों से इंकार किया था।
जांच में पाया गया कि वह मतदान के बाद वह अपनी बहन के यहां जा रहा था और सेना ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद उसकी बेरहमी से पिटाई की गई और बाद में जीप के बोनेट पर बांध दिया गया। घटना के बाद अपने जीवन के बारे में डार ने कहा कि बडगाम जिले में उनके गांव में उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।