बाखबर
राघवेंद्र सिंह
सियासत जो कराए जो कम है। भारतीय राजनीति खासकर भाजपा में अपने नेताओं के साथ मौकापरस्ती कुछ गले नहीं उतरती। कल तक जिन जननायक अटल बिहारी वाजपेयी के फोटो तक से भाजपा चुनाव में किनारा करती थी अब उनकी मृत्यु के बाद उनके चित्र माथे पर सजाने के साथ कलेजे से लगाए घूमती दिख रही है।
Atalji’s expiry: BJP on behalf of Vototsav with deadly festival …
अटल के पीछे पीछे अब जीते जी शायद लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी के दिन भी फिरने वाले है। वैसे आडवाणी और अटलजी जैसे आदमकद नेताओं के लिए दिन फिरने जैसे शब्दों और भाषा का उपयोग उचित नहीं लगता। दरअसल ये वो नाम है जिनसे पार्टी के दिन फिरे। इनके नामों ने सड़क के नेताओं को सिंहासन पर बैठा दिया। अब अटल जी दुनिया से विदा होने के बाद भी वोट पाने का बड़ा आधार बन रहे हैं। इसीलिए पहले उनका मृत्योत्सव और फिर चुनाव के समय स्वत: ही यह वोटोत्सव में तब्दील हो जाएगा।
अटल जी का मृत्योत्सव आज की भाजपा के काईयां और घुटे हुए नेता मन से कम मजबूरी में ज्यादा मना रहे है। भाजपा अब पारिवारिक पार्टी के बजाए प्रोफेशनल और कारपोरेट कल्चरल को ओढऩे बिछाने लगी है। इसीलिए उन्हें लगा कि कल तक जो महानायक थे उनका ग्र्राफ जितने जल्दी चढ़ा था उतनी ही तेजी से उतार पर है। इसलिए जीते जी जिन नेताओं ने पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया अब उन्हें एक बार फिर पार्टी के लिए मरने के बाद भी होर्डिंग्स और मंचों पर जिंदा रखने की कोशिश हो रही है।
यह सब एक दिन में नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार साल पहले भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह तेजी से आए और छा गए थे। उस समय भाजपा की बैठक, सभा, मंच और भाषण में भी अटल, आडवाणी के नाम लेना लगभग बंद हो गए थे। पार्टी पंडित दीनदयाल उपाध्याय को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के बराबर खड़ा करके विचारधारा को स्थापित करना चाह रही थी। मगर इसमें सफलता कम ही मिल पा रही थी।
इसी बीच लगभग दस साल से गुमनामी में जी रहे अटल बिहारी वाजपेयी के निधन ने भाजपा के भाग्य विधाताओं को चौंका दिया। दरअसल खबरों और टीवी स्क्रीन से गायब भूले बिसरे नेता मान लिए गए अटल जी को अंतिम विदाई देने दिल्ली की सड़कें उनके प्रशंसकों से पट गईं तब मोदी शाह टीम की आंख खुली। हमने पहले भी उल्लेख किया कि पार्टी के रणनीतिकारों ने अटल जी का नाम फिर से भुनाने की लाइन तय कर ली थी। इसके चलते मोदी-शाह की जोड़ी के साथ उनके मंत्रीगण अटल जी को अंतिम विदाई देने के लिए पसीना-पसीना करते मौसम में सड़कों पर पैदल चले। इस कवायद के दो संदेश और संकेत साफ मिलते हैं। एक तो यह कि गुजरात के मोदी का प्रधानमंत्री बनने के बाद जो लोकप्रियता का जो उफान था वह तेजी से गिरा। घर-घर मोदी वाले प्रधानमंत्री अब पार्टी के लिए विजय का पर्याय नहीं बन पा रहे हैं। नहीं तो कोई कारण नजर नहीं आता कि जिनके फोटो से परहेज था उनके लिए भाजपा के लगभग प्रतिबंधित हुए मंच अब फिर पलक पांवड़े बिछाए हुए हैं। इस पूरे मामले में एक बात तो तय हो गई है कि जिस रफ्तार से मोदी भारतीय राजनीति में छाए थे उसी गति से वे फिसलन पर भी हैं। यही वजह है कि भारत रत्न देकर अटल जी को भूली भाजपा अब फिर उनके चरणों में है ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
इस पूरे घटनाक्रम में एक बाद और नजर आती है अटल जी अपने मित्र लालकृष्ण आडवाणी के लिए भी मुख्यधारा में लाने का एक रास्ता खोल गए हैं। कल तक वे एक मार्गदर्शक मंडल में होने के साथ सिर्फ मार्ग के दर्शक ही बने रह गए थे। अब जो संकेत मिल रहे हैैं। चुनाव में मोदी एंड शाह कंपनी आडवाणी जी का उपयोग करेगी। भाजपा के इस बुजुर्ग नेता का मान घटना खाटी कार्यकर्ता और भाजपा समर्थकों के लिए पीड़ादायक रहा है।
नहीं तो राष्ट्रपति से लेकर उपराष्ट्रपति के चुनाव में कहीं भी पार्टी अपने पीएम इन वेटिंग आडवाणी की ताजपोशी कर सकती थी। इससे आडवाणी का मान भी रह जाता और आम जनता में भी संदेश जाता कि भाजपा अपने बुजुर्ग नेताओं को दूध में मक्खी की तरह निकाल कर नहीं फेंकती। मगर मोदी-शाह द्वारा आडवाणी को हाशिए पर लाने की नीति को राज्यों में भी संगठन और सरकारों ने भी अपनाया। इसके चलते राज्यों के बुजुर्ग नेता जिन्होंने कभी जनसंघ से लेकर भाजपा तक फकीरी के दिनों में अपना तनमन धन लगाया उन्हें सत्ता में आने के बाद अनाथ बनाकर छोड़ दिया।
धर्म और मजहब के हिसाब से भी पूजा-पाठ और इबादत को छोड़ दें तो दुआ और बद्दुआ ये दो ही बातें खास होती हैैं। भाजपा ने अपने बुजुर्ग नेताओं के साथ एहसान फरामोशी कर दुआ कम बद्दुआ ज्यादा हासिल की है। खैर अब चुनाव हैं कल तक जो मोदी मैं जैसे अहंकार के चढ़ाव पर थे अब वह अटल-आडवाणी के नाम का झंडा लेकर फिर से सत्ता में वापसी का रास्ता तैयार कर रहे हैैं।
वैसे मोदी की लोकप्रियता महज चार साल में ही नीचे आएगी ऐसी उम्मीद उनके विरोधी भी नहीं करते थे। कम से कम जिस भरोसे से 2014 में जनता ने जिस भारी बहुमत से उन्हें सत्ता सौंपी थी वह निराशा की तरफ है। दरअसल जो आसमानी सुल्तानी वादे युवाओं से महिलाओं से किसानों से किए थे वह पूरे होते नजर नहीं आ रहे हैैं। पार्टी में एक तरह से घबराहट है वर्ना अटल आडवाणी की शरण में मोदी-शाह एंड कंपनी इतने जल्दी तो नहीं आती।
म.प्र. भाजपा ने कर दिया एलान
मध्यप्रदेश भाजपा के संवाद प्रमुख लोकेंद्र पाराशर ने एक अखबार में साफ कह दिया है कि भाजपा की सभाओं में अटल जी के साथ आडवाणी के फोटो भी होंगे। सभी का याद होगा कि दिल्ली से लेकर बिहार, उत्तरप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अटल आडवाणी के फोटो तो होर्डिंग्स और मंच से गायब थे ही स्थानीय नेताओं में प्रदेश अध्यक्ष जैसे लोगों के भी फोटो गायब थीं। अच्छा है जिनका रथ जमीन से एक फुट उपर चल रहा था उन्हें जमीन पर आने का अटल जी के अवसान ने एक अवसर दे दिया है।
लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं