नई दिल्ली। सेना अपने फार्म पर खर्च घटाने के लिए ज्यादा दूध देने वाली गायों को टोकन अमाउंट पर बेचेगी। आर्मी ने हाल ही में इन गायों की नीलामी की कोशिश की थी। इसमें असफल होने के बाद उसने गायों को सरकारी डेयरी सहकारी समितियों और दूसरे सरकारी विभागों देने का फैसला किया है। इन खास गायों में से हरेक की कीमत 1 लाख रुपये ज्यादा आंकी गई है। इसलिए ऐसे खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जो इतनी बड़ी रकम का भुगतान करने को तैयार हों। इस वजह से रक्षा मंत्रालय के ऊपर प्रति जानवर 1,000 रुपये के ‘यूनिफार्म नॉमिनल प्राइस’ पर मवेशियों के हस्तांतरण को विशेष मंजूरी देने के लिए दबाव डाला गया।
Auction of costly cows to reduce the cost of army’s own farm
मिलिटरी फार्म के मवेशियों को टोकन अमाउंट के एवज में केंद्र और राज्य सरकार के विभागों या डेयरी को-आॅपरेटिव के पास भेजने का आदेश जून के आखिर में दिया था। इसमें ट्रांसपॉर्टेशन कॉस्ट का वहन वह संस्था करेगी, जिसके पास मवेशी जाएंगे। इस फैसले के साथ ही 39 मिलिटरी फार्मों को बंद करने का रास्ता भी साफ हो गया है, जो करीब एक साल से इस वजह से अटका हुआ था।
रक्षा मंत्रालय के एक पैनल ने पूरे देश में मिलिटरी फार्म को बंद करने की सिफारिश की थी, जिन्हें 1889 में सैन्य टुकड़ियों को ताजा खाना मुहैया कराने की खातिर बनाया गया था। यह 57,000 से ज्यादा सैनिकों को व्यस्त रखने का भी सबसे अच्छा उपाय था, जिन्हें लड़ाई के मोर्चे पर नहीं भेजा गया था। फार्मों को बंद करने का आॅर्डर पिछले साल अगस्त में ही दे दिया गया था और इसके लिए तीन महीने की समयसीमा तय की गई थी।
हालांकि, कई कोशिशों के बावजूद लिविंग असेट्स की वजह इन्हें बंद नहीं किया जा सका था। इसमें मिलिटरी फार्म में ज्यादा दूध देने वाली गायें सबसे बड़ी समस्या थीं। इन गायों को डच-होलेस्टियन और शुद्ध साहीवाल की क्रॉस ब्रीडिंग के जरिए डिवेलप किया गया था, जो देश की औसत दूध देने वाली गायों की तुलना में दोगुना दूध देती हैं।
इन गायों को पालने के लिए रोजाना काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। इस वजह से सेना को आशंका थी कि अगर इन गायों किसानों या निजी डेयरियों को दिया गया, तो वे बूचड़खाने में भी पहुंच सकती हैं। हालांकि, अब इस मसले को सुलझाने के साथ ही सेना मेरठ, अंबाला, श्रीनगर, झांसी और लखनऊ जैसी जगहों पर मिलिटरी फार्मों को बंद करने के लिए आगे कदम बढ़ा चुकी है।
उसके 39 फार्म 20,000 एकड़ में फैले हुए हैं, लेकिन इनसे सैनिकों की सालाना दूध की केवल 14 पर्सेंट जरूरत ही पूरी होती थी। पिछले साल अगस्त में कैबिनेट ने फार्मों पर होने वाले खर्च को बचाने के लिए (पिछले बजट में इसके 334 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे) इन्हें बंद करने का फैसला किया था। अब खाली जमीन का सेना के दूसरे कामों के लिए उपयोग किया जाएगा। कम से कम सात फार्म पहले ही बंद किए जा चुके हैं और बाकी को बंद किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।