महापंचायत का अजीबो गरीब फरमान: 1.60 करोड़ लो और हत्या का केस खत्म करो

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हथीन (पलवल)। सामूहिक हत्याकांड में केस की सुनवाई शुरू ही होने वाली थी कि उससे पहले मेवात में 84 गांवों के पंचों की महापंचायत ने दोनों पक्षों का समझौता करा दिया। बुधवार को महापंचायत में इस फैसले को कराने वाले पूर्व विधायक अजमत खान ने बताया कि फैसला दोनों पक्षों की आपसी रजामंदी के बाद चुने हुए पंचों ने लिया है। समझौते के तहत हत्या के आरोपी पीड़ित पक्ष को एक करोड़ 60 लाख रुपये देंगे।
Awazibo poor decree of the mahapanchayat: Take 1.60 crores and finish the murder case
कोर्ट से बाहर महापंचायत में हुए इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। गांव उटावड़ में 25 मई 2016 को दीनू, रज्जाक, हमीद और वसीम की हत्या हो गई थी। 32 नामजद और अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। 24 मई को केस की सुनवाई है लेकिन उससे पहले महापंचायत में पूर्व विधायक अजमत खान और शमीम प्रधान ने यह फैसला कराया।

पंचायत जैसा चाहेगी वैसा होगा बयान
महापंचायत में फैसला कराने वाले पूर्व विधायक अजमत खान के मुताबिक, एक करोड़ 60 लाख रुपये देने के बाद दोनों तरफ के गवाह पंचायत के आदेश और वकीलों के हिसाब से गवाही देंगे। एक आरोपी को गांव से निकाल दिया गया है, पीड़ित पक्ष चाहे तो उसे गांव में बसा सकता है, पंचायत को ऐतराज नहीं होगा। पुलिस का कहना है कि यह मामला कोर्ट में है और अभी कोई नहीं जानता कि गवाह क्या बयान देंगे।

समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं होगा
कानूनी जानकारों का कहना है कि रेप, मर्डर और डकैती जैसे मामलों में किसी भी तरह से केस रद्द नहीं हो सकता। भारत सरकार के वकील अजय दिग्पाल बताते हैं कि ज्ञान सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी हुई है कि हाई कोर्ट को सीआरपीसी की धारा-482 में गैर समझौता वादी केसों में भी क्रिमिनल केस रद्द करने का अधिकार है लेकिन हत्या, रेप और डकैती में दोनों पक्षों से समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता क्योंकि ये अपराध व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि समाज के खिलाफ किया गया अपराध है। अगर कोई गवाहों को मुकरने आदि के लिए बाध्य करता है तो इसे न्यायिक प्रक्रिया में दखल और अदालत की अवमानना माना जाएगा।