आया मौसम चुनावी चकल्लस का…

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ब्रजेश राजपूत की ग्राउंड रिपोर्ट

मध्यप्रदेश में अब विधानसभा चुनाव होने में चार महीने ही बचे हैं। नबंवर के आखिरी में चुनाव और दिसंबर के पहले हफ्ते में ही नयी सरकार। नयी सरकार लिखने का अर्थ आप कोई दूसरी पार्टी की सरकार बनाने का नहीं निकालियेगा अभी चल रही सरकार भी यदि चुनाव जीतने के बाद फिर सत्ता में आती है तो नयी ही कहलायेगी। और हां जो दल सत्ता में नहीं है उसकी सरकार आ गयी तो वो नयी तो होगी ही। दरअसल अगला चुनाव जीतने के लिये बीजेपी ओर कांग्रेस के बीच जो तनातनी शुरू हुयी है उसे लेकर जबरदस्त किस्से कहानी चुटकुले और चटपटी चर्चायें गली मोहल्लों में चल रही हैं। सोचा क्यों ना इस बार ग्राउंड रिपोर्ट में आपको यही चुनावी चकल्लस ही सुना दूं।
Aya Season’s Election Chuckles …
दृश्य एक, भोपाल के किसी वरिष्ट पत्रकार के घर क्षेत्रीय चैनल में न्यूज चल रही है और अचानक स्क्रीन पर उभरता है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो सुरेंद्र चौधरी उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं। ये बयान कांग्रेस की बैठक में प्रभारी दीपक बावरिया के हवाले से दिया गया। तकरीबन चौंकते हुये वो पत्रकार कहते हैं लो चुनाव हुआ नहीं और कांग्रेस में मंत्रालय भी बंटने लगे। समझ नहीं आता ये इतनी जल्दबाजी क्यों करते हैं। वहीं बैठे दूसरे पत्रकार कह उठते हैं यही तो ताकत है इन कांग्रेसियों की कि ये कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। कांग्रेस दफ्तर के गलियारों में इन दिनों ये नारा चल पडा है एक बावरिया काफी है बर्बाद गुलिस्ता करने को, सब मुस्कुरा कर रह जाते हैं।

दृश्य दो, भोपाल में कांग्रेस दफ्तर के पास चाय की गुमटी। दफतर से दुखी होकर निकले एक कार्यकर्ता कहते हैं भाईसाहब इस बार प्रदेश की जनता कांग्रेस की सरकार बनाती दिख रही है मगर हम कांग्रेसियों में ही होड लगी है कि अपनी हरकतों से हर दिन कितनी सीट कम करें। आज चुनाव हो जाये तो हम पक्का जीतेंगे मगर चार पांच महीने बाद ठन ठन गोपाल है। दूसरे ने कहा सच कह रहे हो भैया मेरा दावा है बीजेपी इस बार पक्का हार रही है मगर हमारी पार्टी जीतते हुये नहीं दिख रहीं। तीसरे ने कहा सच बात तो ये है कि हमारी कांग्रेस में कोई बीजेपी जैसा सोचने वाला नहीं है। जो पूरे नफे नुकसान की सोचे। ये अजीब सी बातें सुन हैरान नहीं होईयेगा यही चुनावी चकल्लस है जो इशारों इशारों में ही बडे संदेश देती हैं।

दृश्य तीन, भोपाल में ही दीनदयाल परिसर यानिकी बीजेपी का दफतर। नये अध्यक्ष के कमरे में मिलने जुलने वालों की भीड है। जो लोग अंदर छोटे कमरे में नहीं जा पा रहे वो बाहर कसमसा रहे हैं उन्हीं में से एक सफेद कडक कुर्ता पायजामा पहने और हाथ में गुलदस्ता रखे सज्जन कहते हैं भैया इस बार जमीन पर पार्टी का कार्यकर्ता बहुत नाराज है, चुनाव में बहुत मुश्तोकिल होगी, वहीं खडे पत्रकार खुश होकर कहते हैं तो फिर क्या वो वोट कांग्रेस को देगा। अब संभलने की बारी पहले वाले की थी अरे ऐसा तो मैंने कब कहा वोट तो बीजेपी का बीजेपी मे ही जायेगा। वहां खडे पत्रकार फिर हैरान होकर पूछते हैं कि फिर ऐसी खाली पीली नाराजगी का क्या मतलब। जबरन निगेटिव माहौल बना रहे हो।

माहौल तो साहब अब कांग्रेस दफतर में भी बना दिखता है जब पार्टी अध्यक्ष कमलनाथ भोपाल में होते हैं। मगर माहौल बनने और नेता से मिलने में बडा फर्क हैं। अध्यक्ष जी से मिलने से पहले बाहर बने एक और कमरे में जब एक दिन कांग्रेस के नये नवेले उत्साही नेता पहुंचे और कमलनाथ जी से मिलने की जिद करने लगे तो वहां मौजूद बुजुर्ग नेता ने समझाया कि देखो भाई इस दफतर में पद और पार्टी की टिकट की बात नहीं होती और ना ऐसी बातें अध्यक्ष जी सुनते हैं कुछ और बात है तो बताओ। अब हैरान होने की बारी नेताजी की थी जो अपने समर्थकों के सामने ये जबाव सुन शर्मिदा हो उठे थे उनने भी आव देखा ना ताव सुना दिया कि तो क्या पालिटिकल पार्टी के दफतर में पद और चुनाव के टिकट की बात छोड सीमेंट की एजेंसी की बात करें ।

हैरान सिर्फ कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं वो पत्रकार भी हैं जो सोचते थे कि नये अध्यक्ष जी उनको तवज्जो देंगे और पत्रकारों से सलाह लेने की पुरानी परंपरा को जारी रखेंगे मगर दिल्ली की राजनीति करते आये कमलनाथ का वास्ता भोपाल के पत्रकारों से कम मालिकों से ज्यादा रहा है। इसलिये कांग्रेस बीट कवर करने वाले खबरनवीसों में भी कार्यकर्ताओं समान छटपटाहट दिखती है कि नये अध्यक्ष जी मिलते क्यों नहीं।

उधर बीजेपी में भी चुनाव लडने के लिये अध्यक्ष भले ही नये रख लिये गये हों मगर तेरह साल के अनुभवी मुख्यमंत्री ने टीम अपनी वहीं पुरानी चुनी है जो ठीक चुनावों के वक्त ही उनकी मदद को जहां कहीं भी रहे आ जाती है। इस टीम में अखबारों में खबर और विज्ञापन प्रबंधन से लेकर हर बात पर तेज तेज चिल्लाकर बयान देने वाले नेता भी हैं जो दिल्ली और इंदौर से भोपाल में आकर डेरा डाल लेते हैं। शिवराज इस टीम को लेकर कहते भी हैं मुझे मालुम हैं चुनाव प्रबंधन की इस टीम में कुछ मेरी पसंद के नहीं हैं मगर ये जीतने वाली टीम है फिर इसे क्यों बदलें।

जैसे चुनाव जीतने की आदत हो जाती है वैसे ही चुनाव हारना भी आदत में शुमार हो जाता है। भरोसा ना हो तो एआईसीसी के एक पदाधिकारी के टविटर हैंडल पर ये लिखा देखिये कि दिल्ली के पत्रकार दोस्त ने मुझसे कहा कि इस बार एमपी में चुनाव हारने के लिये कांग्रेस को बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पडेगी। कुछ समझ आया। नहीं। अरे यही तो चुनावी चकल्लस है जो अभी चलेगी चार महीने और,,,

एबीपी न्यूज के संवाददाता हैं