Badla movie review: अमिताभ ने अपने अभिनय से फिल्म को बांधे रखा है

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शशी कुमार केसवानी
‘बदला हमेशा सही नहीं होता, मगर माफ करना भी हमेशा सही होता’ द्रौपदी ने कहा है। फिल्म के इसी डायलॉग के इर्दगिर्द घूमती है निर्देशक सुजॉय घोष की ‘बदला’। सुजॉय की यह सस्पेंस थ्रिलर स्पेनिश फिल्म ‘द इनविजिबल गेस्ट’ की ऑफिशल रीमेक है। जिन लोगों ने मूल फिल्म नहीं देखी, उन्हें इसका सस्पेंस, थ्रिल और पावर पैक्ड परफॉर्मेंस बांधे रखता है और जिन लोगों ने ओरिजिनल फिल्म देखी है, उन्हें भी यह फिल्म निराश नहीं करती साथ में बाँधे रखतीं हैं।
कहानी है जानी-मानी अवॉर्ड विनर बिज़नस वुमन नैना सेठी “तापसी पन्नू”  की, जिस पर एक मर्डर का इल्जाम है। वह अपने लीगल अडवाइज़र मानव कौल के जरिए प्रतिष्ठित और जाने-माने वकील बादल गुप्ता अमिताभ बच्चन को हायर करती है। बादल गुप्ता सबूतों का पक्का लॉयर है और यही वजह है कि 40 साल के करियर में वह एक भी केस नहीं हारे हैं । नैना को इंवेस्टिगेट करते हुए उसे पता चलता है कि उसका अर्जुन टोनी ल्यूक से अफेयर था, हालांकि नैना उसे एक गलती मानती है और बादल को बताती है कि उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था और कत्ल में प्लानिंग से फंसाया गया। वह सिर्फ अपने पति और बच्ची से प्यार करती है। पूछताछ और बातचीत के दौरान कहानी में रानी “अमृता सिंह” और उसके पति जैसे दूसरे किरदारों की एंट्री होती है और कुछ ऐसे तथ्य सामने आते हैं, जो केस की सूरत को बदल कर रख देनेवाले हैं। क्या बादल अपने हर केस को जीतनेवाले ट्रैक रेकॉर्ड को कायम रख पाएगा? क्या वह नैना को निर्दोष साबित कर उसकी पारिवारिक और व्यावसायिक साख बचा पाएगा? इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
जहां तक निर्देशन की बात है, तो सुजॉय ने सस्पेंस-थ्रिलर के रूप में ‘द इनविजिबल गेस्ट’ के रूप में बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री चुनी, मगर रीमेक करते हुए वह इसे थियॉट्रिकल होने से नहीं बचा पाए। फिल्म का स्क्रीनप्ले और ज्यादा कसा हुआ होना चाहिए था जो कमजोर महसूस हुआ। इसके बावजूद फिल्म का सस्पेंस उत्सुकता बनाए रखती है। फिल्म दो किरदारों अर्थात तापसी और अमिताभ के नजरिए से है तो कई जगहों पर दोहराव नजर आता है, मगर फिल्म बोर नहीं करती। जटिल कहानियां सुजॉय की पसंदीदा रही हैं। यहां भी किरदारों के जरिए जटिलता बनी रहती है और उनकी परतें खुलती जाती हैं, मगर प्रीक्लाइमैक्स में क्लाइमैक्स का अंदाजा हो जाता है, जो स्पैनिश फिल्म में अंत तक नहीं होता।
सिनेमटॉग्रफर अविक मुखोपाध्याय ने विषय के अनुरूप फिल्म के टोन को बनाए रखा है। अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक इसलिए कहा जाता है कि वह न केवल किरदार के मैनरिज्म और मिजाज को समझते हैं बल्कि सामनेवाले अदाकार के महत्व को समझकर ऐक्शन-रिऐक्शन का सिलसिला बनाए रखते हैं। उन्होंने किरदार की बारीकियों को खूब समझा है। तापसी पन्नू अभिनेत्री के रूप में महानायक के सामने ज़रा भी भयभीत नहीं होतीं और वह यह पिंक में भी साबित कर चुकी हैं, जब उन्होंने बच्चन के साथ पहली बार जुगलबंदी की थी। नैना के रूप में उन्होंने चरित्र की मासूमियत और काइयांपन को बखूबी निभाया है। अमृता सिंह को परदे पर दमदार परफॉर्मेंस में देखना अच्छा लगता है। मानव कौल ने यह भूमिका क्यों की, यह समझ से परे है, क्योंकि उनके हिस्से में करने जैसा कुछ नहीं था। साउथ ऐक्टर टोनी ल्यूक अर्जुन के रूप में ठीकठाक रहे, मगर उनका एक्सेंट खलता है। इस तरह की फिल्मों में संगीत की जगह ना के बराबर होती है मगर बैकग्राउंड  स्कोर मजबूत हो सकता था। जो हो न सका फिल्म देख़ने लायक है अमिताभ अपनें अभियान से बांधे रखते हैं।
Rating: 3.5/5