चुनाव के पहले… हनुमान चालीसा पढ़ती पार्टियां…

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बाखबर
राघवेन्द्र सिंह
जैसे परीक्षाएं आने के पहले विद्यार्थियों को फेल होने का डर सताने लगता है ठीक वैसे ही चुनाव से पहले नेताओं और पार्टियों के आलाकमानों, खैरख्वाहों को हार का डर सताने लगता है। इससे उबरने की तमाम कोशिशों के बाद हालात सुधरते नहीं दिखते तब सियासी गंडे-ताबीज, टोने-टोटके, जोड़-तोड़, साम-दाम, दंड-भेद के नुस्खे अपनाए जाते हैैं। सब असफल हो जाए तो राजनीतिक बियाबान में नाउम्मीद के घटाटोप के चलते हनुमान चालीसा पढ़ते हुए देखा-सुना जा सकता है।
Before elections … Hanuman Chalisa reading parties …
देश और प्रदेश का सियासी सीन कुछ ऐसा ही है कि हार के डर से दावेदार और पार्टी नेतृत्व हनुमान चालीस का पाठ करते हुये नजर आ रहे हैैं। जिन पार्टियों के पास समय नहीं है तो इवेंट टीम जो राजनीतिक कर्मकांडियों का समूह बन गई है उन्हें अक्षत, पुष्प और नर्मदा जल अंजुली में भर सफलता के लिये संकल्प (ठेका) दे रही है। यह सब वैसे ही है जैसे अपशकुन की आशंकाओं वाली अमावस्या की रात में हीरे-जवाहरात, नोटों से लदी-फदी गाड़ी से कोई जंगल पार कर रहा हो और गाड़ी का इंजन बंद हो जाए। यह तब और भी भयावह हो जाता है, जब जंगल में डाकू-लुटेरे सक्रिय हों। उस समय हनुमान चालीसा की यह पंक्तियां, ‘तुम रक्षक काहू को डरना…’ बहुत संबल देती हैं। लोकतंत्र में सत्ता की रस-मलाई खाने वालों पर यह सीन खूब फिट बैठता है।सियासी मुद्दे पर हमने बात शुरू की थी परीक्षा से। दरअसल सालभर स्कूल आने वाले भी अगर होमवर्क पूरा नहीं करते तो वे भी ऐन परीक्षा के समय बुद्धि विनायक गणेश और हनुमान के पास तरह तरह की मिठाई या प्रसाद और दक्षिणा चढ़ाने का लालच देते नजर आते हैैं। अभी भी ऐसे ही नजारे आम हो चले हैैं। वोटर को पोटने के लिये उनकी हर बात मानी जा रही है। रुष्टों को पोटा-पुचकारा जा रहा है। आसमान से तारे मांगने वालों को भी न नहीं कहा जा रहा है। इसके बावजूद परिपक्व होते लोकतंत्र में वोटर भी काइयां हुए नेताओं को अब धोबी-पछाड़ लगाने के मूड में हंै। यदि उसका मन नहीं बदला तो जिनके प्रति उसकी नाराजगी दिख रही है उनका चित्त होना तय है।

मध्यप्रदेश समेत दो अन्य सूबों छत्तीसगढ़, राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस कुछ इसी किस्म के दौर से गुजर रही है। भाजपा से उसका अनुशासित कार्यकर्ता और निष्ठावान मतदाता नाराज है। मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, सांसदों के दौरे और सभाओं में आमजन व कार्यकर्ताओं की नाराजगी देखी जा सकती है। राजनीतिक मौसम के विज्ञानी सैटेलाइट और पंडित ग्रह-दशाओं के आधार पर ऐसे संकेत पहले से ही दे रहे हैैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी पार्टी के भीतर मंत्री, विधायकों को सुधरने की समझाइश देते आ रहे हैैं। मगर अब तक उसका असर कम ही दिखा। भोपाल के कोलार (हुजूर विधानसभा क्षेत्र) से लेकर भोजपुर, जावद, खंडवा, शाजापुर, उज्जैन संभाग, इंदौर संभाग, रीवा, सतना, उदयपुरा, सिवनी मालवा, महाकौशल, बुंलेलखंड में गिनती की जाए तो असंतोष की घटनाओं की लंबी फेहरिस्त बन सकती है।

लगता है असंतोष की बाढ़ मर्यादाओं के तटबंध तोड़ सकती है। असंतोष-अहंकार के किस्से इतने हैैं कि उसका पुलिंदा बन जाए। फिर कभी इस पर विस्तार से लिखा जा सकता है। इस हकीकत से राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लंबे समय बाद सक्रिय हुए प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत वाकिफ हैैं। इसलिये सब हनुमान चालीसा का पाठ कार्यकर्ताओं के सामने करते नजर आ रहे हैैं। बार-बार कह रहे हैैं, ‘तुम रक्षक काहू को डरना…’ चुनाव में हर पार्टी कार्यकर्ताओं को अपना हनुमान बता कर लंका जीतती आई है। इस बार पंद्रह साल की भाजपा सरकार में इन्हीं हनुमानों की उपेक्षा हुई है।

बाल ब्रह्मचारी (ईमानदार कार्यकर्ता) के सामने नेताओं ने सत्ता के साथ खूब भोग-विलास किया है। इसलिए पिछले कुछ चुनाव से ये हनुमान उदासीन हो गए हैैं। वे अब लंका जीतने के लिये समुद्र पार करने वाली छलांग भरने को राजी नहीं हैैं। उसे बल याद दिलाने वाले जामवंत भी उपेक्षा की वजह से नहीं बचे। बढ़ती उम्र का हवाला देकर वे सत्ता संगठन से बाहर कर दिए गए। ज्यादातर मार्गदर्शक मंडल में वानप्रस्थ काट रहे हैैं। भाजपा की तरफ से जीत की उम्मीद में फिर विपक्ष में विभीषणों और त्रिजटाओं की तलाश की जाएगी। अमित शाह ऐलान कर ही चुके हैैं… जीत हर हालात में। चाहे कुछ भी करना पड़े।

कांग्रेस में प्रबंधन का गणित
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ 15 वर्षों से बिखरे और लगभग घर बैठे कांग्रेसजनों को एकजुट करने में लगे हैैं। अभी उनके पास देने के लिये संगठन में पदों के अलावा कुछ नहीं है। इसलिए प्रदेश में सह अध्यक्ष बनाने के साथ हर जिले में संगठन का विस्तार करने में लगे हैैं। अपनी नई कमेटी में सभी गुटों के नए-पुराने कारतूस, बम-पटाखे और लड़ी-फुलझड़ी एकत्र करके चुनावी दीवाली की तैयारी कर रहे हैैं। युवा नेताओं को कम स्थान मिलने के कारण उनकी आलोचना भी हो रही है। मगर अभी नेताओं के मामले में कांग्रेस के पास भाजपा की तुलना में विकल्प कम हैैं। कमजोर नेताओं के लिए जब खजाने खोलकर शक्ति संचार होगा तब उनका प्रभाव दिखेगा। कांग्रेस में अगर हनुमान चालीसा का पाठ कर अपने हनुमानरूपी कार्यकर्ताओं को शक्ति का बोध हो गया तो कई जामवंत सक्रिय हो जाएंगे। भाजपा में 2003 के पहले के कार्यकर्ताओं का असंतोष और जनता में एंटी इंकम्बेंसी का लाभ कांग्रेस को मिला तो अबकी बार वह सत्ता की लंका जीतने के ज्यादा करीब दिखेगी। उसे भी अपने भीतर हनुमान, जामवंत और विरोध पक्ष से विभीषणों का सहयोग लेना अनिवार्य और अपरिहार्य होगा।
साइबर युद्ध याने सत्ता का शॉर्टकट
राजनीतिक कार्यकर्ता जनसेवा के जरिए लीडर बनते आए हैैं। मगर नए जमाने में पार्टियों को कार्यकर्ता कम उनके स्थान पर सोशल मीडिया पर सुबह उठते ही संग्राम करने वाले योद्धा चाहिए। इससे आम जनता की समस्या कैसे हल होगी। जमीन पर पार्टी कार्यकर्ता काम नहीं करेंगे तो तहसीलों में किसानों, नगरपालिका, नगर निगमों में आम लोगों की दिक्कतें कैसे दूर होंगी। सभी दल जमीनी हकीकत से दूर कार्यकर्ताओं को साइबर युग की बकवास में धकेल रहे हैैं। यह एक किस्म का गुनाह है। भारत और यहां के लोकतंत्र की तासीर अलग है, मगर विलायती तौर-तरीकों के ढंग से चुनाव लड़ने से लाभ कम नुकसान ज्यादा नजर आता है। स्कूल-कॉलेज, ग्राम पंचायत और नगर पालिकाओं में लोगों के काम कर चुनाव जीतने वाले अब सोशल मीडिया पर शिगुफेबाजी कर वोट पाने की जुगाड़ करेंगे। ऐसे में आम जनता की अनदेखी होगी और कार्यकर्ताओं की हैसियत घटेगी।

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं