स्वच्छता सर्वेक्षण में भोपाल को जबर्दस्त झटका, छोटे शहरों से भी खाई मात

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भोपाल। स्वच्छता रैंकिंग 2019 में भोपाल भले ही देश की सबसे स्वच्छ राजधानी बनी हो, लेकिन ओवरआॅल रैंकिंग भोपाल को जबर्दस्त झटका लगा है। भोपाल पिछले 2 बार से देश में लगातार दूसरा स्थान हासिल कर रहा था, लेकिन इस बार वो ओवरआॅल रैंकिंग में लुढ़ककर 19वें स्थान पर पहुंच गया है। भोपाल ने कुल 5000 अंकों में से 3793.68 अंक हासिल किए हैं। इंदौर ने जहां हैट्रिक लगाई वहीं, भोपाल को उज्जैन, देवास, खरगोन और नागदा जैसे प्रदेश के अन्य छोटे शहरों से भी मात खानी पड़ी। भोपाल स्वच्छ सर्वेक्षण अभियान के नए फॉर्मेट में शामिल शर्तों के आधार पर पिछड़ गया है।
Bhopal toll in cleanliness survey, severe havoc in small towns
सर्वे में पिछड़ने के कारण-
भोपाल के सर्वे में पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण निगम के अधिकारियों का बार-बार तबादला होना माना जा रहा है। तैयारी से लेकर सर्वे के बीच 9 महीनें में निगम के 3 कमिश्रनर बदले गए। वहीं डोर-टू-डोर कलेक्शन का भी जमीनी स्तर पर काम नहीं हो पाया। निगम बार-बार स्थिति के सामान्य होने का दावा करता रहा, लेकिन हकीकत में स्थिति विपरित रही।

गीला-सूखा कचरा अलग अलग डंप नहीं होना-
निगम के कर्मचारियों ने गीला-सूखा कचरा अलग अलग डंप नहीं कराया। साथ ही डस्टबिन फ्री सिटी बनाने में भी निगम फिसड्डी रहा। शहर में डस्टबिन हटाकर लिटर बिन्स लगाए गए, लेकिन उनसे जगह-जगह कचरा फैलता रहा।

वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनाने का दावा खोखला-
निगम का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनाने का दावा भी खोखला साबित हुआ। डेढ़ साल पहले कचरे से बिजली बनाने का ऐलान हुआ था, लेकिन अब तक प्लांट शुरू नहीं हो सका।

कंपोस्टिंग यूनिट का उपयोग नहीं होना-
भोपाल नगर निगम के पिछड़ने का सबसे अहम वजह कंपोस्टिंग यूनिट का उपयोग नहीं होना माना जा रहा है। भोपाल सफाई पर सालाना करीब 180 करोड़ रुप्य खर्च कर रहा है, लेकिन फीकल मैनेजमेंट सिस्टम आज भी नहीं है। भोपाल ने सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट, वेस्ट कलेक्शन ट्रांसपोर्टेशन, पब्लिक कम्युनिटी टॉयलेट, पर्सनल टॉयलेट, खुले में शौच मुक्त और पब्लिक अवेयरनेस पर काम तो किया, लेकिन उसके शत-प्रतिशत रिजल्ट नहीं मिले।
सर्वे के समय शहर में कई स्थानों पर कचरे के ढेर देखे गए। जागरुकता के मामले में भी भोपाल अपने लोगों को स्वप्रेरणा से अभियान में शामिल होने के लिए जागरुक नहीं कर पाया। इसलिए जगभागीदारी के मामले में भोपाल को कम नंबर मिले। इसके अलावा बड़ी बात ये सामने आई कि भोपाल नगर निगम शहर में रोजाना सफाई के लिए सिस्टम विकसित नहीं कर पाया। भोपाल की सड़कों से गारबेज कंटेनर हटाकर उनके स्थान पर डस्टबिन और स्मार्ट बिन लगाए गए। लेकिन स्मार्ट बिन के अलार्म ही खराब हो गए। शहर में 130 जगहों पर ऐसी स्थिति रही