राकेश अचल
भारत में मुगलिया सल्तनत का सूरज डूबे युग बीत गए लेकिन 75 साल के आजाद भारत में एक सूबे के सदर के वालिद को पुलिस ने गिरफ्तार कर हवालत भेजा तो अदालत ने जेल का रास्ता दिखा दिया .ये सब अजूबा हुआ छत्तीसगढ़ में जहां कांग्रेस की सत्ता है पार्टी के भीतर ही तरह-तरह की सियासत चल रही है .छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल की गिरफ्तारी के पीछे आप सियासत देखने के लिए आजाद हैं लेकिन मुझे लगता है कि ये लोकलाज की सियासत है ,और इसकी सराहना की जाना चाहिए .
आजाद भारत में बेटे की सल्तनत में बाप की गिरफ्तारी का ये बिरला मामला है .मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार पटेल 86 साल के हैं और उन्होंने दुनिया देखी है. ब्राम्हणों के खिलाफ उनकी टिप्पणी कोई बचकानी हरकत नहीं बल्कि एक परिपक्व टिप्पणी है ,लेकिन उनकी टिप्पणी से समाज में कलुष फ़ैल जाएगा ये सोचकर पुलिस द्वारा उनके खिलाफ पहले मामला दर्ज किया जाना और फिर आगरा जाकर उनकी गिरफ्तारी करना बड़ा नाटकीय लगता है .नन्द कुमार पटेल का अपनी रिहाई के लिए जमानत न देना और जेल जाना इस नाटकीय प्रसंग का अगला अध्याय है .
इस मामले को देखकर आप कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में पुलिस का इकबाल दूसरे सूबों के मुकाबले ज्यादा बुलंद है क्योंकि पुलिस एक मुख्यमंत्री के पिता के खिलाफ पुलिस न केवल मामला दर्ज का सकती है बल्कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भिजवा सकती है .किसी को भी यकीन नहीं होगा कि ये सब मुख्यमंत्री के संज्ञान में नहीं होगा,बल्कि मै तो कहता हूँ कि इसके लिए बाकायदा मुख्यमंत्री से इजाजत ली गयी होगी .हाँ बड़ी बात ये है कि मुंख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पिता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की इजाजत कितने भारी मन से दी होगी .
नन्द कुमार पटेल सियासी आदमी नहीं हैं,हालाँकि उन्होंने 1980 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा का चुनाव लड़ा था और हार गए थे,बाद में उन्होंने सियासत अपने बेटे के लिए छोड़ दी और खुद एक प्रगतिशील किसान बन गए .बघेल साहब नेब्ब बुद्ध धर्म अपना रखा है और वे शुरू से ही जातिवाद को लेकर आक्रामक रहे हैं .अलवत्ता उनके खिलाफ जाप्ता फौजदारी की धारा 153 ए के तहत प्रकरण पहली बार दर्ज किया है. नन्द कुमार बघेल ने कहा था की ‘वोट हमारा और राज तुम्हारा नहीं चलेगा ‘.उन्होंने कहा था कि-‘ हम ब्राम्हणों को गंगा से खदेड़ कर वोल्गा में छोड़ आएंगे .’
हमारे यहां ऐसे ऊल-जलूल बयान देने और फिर इन्हें लेकर बयान देने वाले का पुतला जलाने के लिए लोग फुरसत में रहते हैं .रायपुर के लोगों ने भी नन्द कुमार बघेल के बयान के बाद उनका पुतला जलाया,थाने पर प्रदर्शन किया और प्रकरण दर्ज करने के बाद ही शांत हुए. नन्द कुमार बघेल का विवादों से पुराना नाता रहा है. 2001 में उन्होंने ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो नामक पुस्तक लिखी थी। पुस्तक ने दशहरा समारोह के हिस्से के रूप में राम द्वारा मारे गए राक्षस राजा रावण के पुतलों को जलाने को समाप्त करने का आह्वान किया था।इस पुस्तक ने छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक आक्रोश पैदा किया और अजीत जोगी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राज्य सरकार को इसे प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. नन्द कुमार ने छग हाईकोर्ट में प्रतिबंध हटाने की लड़ाई 17 साल तक लड़ी लेकिन हार गए .
1970 के दशक के उत्तरार्ध में बौद्ध धर्म अपनाने के बाद नंद कुमार का जाति-विरोधी रुख और अधिक स्पष्ट हो गया।मेरी अपनी जानकारी के अनुसार, “हम कह सकते हैं कि जातिवाद और हिंदुत्व के खिलाफ उनके बयान बौद्ध धर्म अपनाने के बाद और अधिक कठोर हो गए।ऐसा माना जाता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने पिता को अवांछित और भड़काऊ बयान देने के लिए मनाने की कोशिश की होगी ,लेकिन वे नहीं माने .मतभेदों के बावजूद पिता-पुत्र के रिश्ते खराब नहीं हैं
मुझे याद आता है कि नंद कुमार बघेल ने विधानसभा चुनाव से पहले 2018 में कांग्रेस नेतृत्व को पत्र लिखा था, और उनसे पार्टी के 85 प्रतिशत टिकट एससी-एसटी-ओबीसी उम्मीदवारों को देने के लिए कहा था, न कि ब्राह्मणों, ठाकुरों और बनियों को।
उनके बेटे भूपेश बघेल उस समय पीसीसी प्रमुख थे और उन्हें यह स्पष्ट करते हुए एक बयान जारी करना पड़ा कि उनके पिता पार्टी के प्राथमिक सदस्य नहीं थे और इसलिए, केंद्रीय नेतृत्व को उनका पत्र अर्थहीन था।
पिता और पुत्र के बीच दरार उनके व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों तक भी फैली हुई है .आपको याद होगा कि 2019 में, जब नंद कुमार बघेल की पत्नी का निधन हो गया, तो वह बौद्ध मानदंडों के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बेटे भूपेश बघेल ने आपत्ति जताई और उनकी मां का अंतिम संस्कार हिंदू मान्यताओं के अनुसार किया मजे की बात ये है कि पिता-पुत्र के बीच बहुत स्पष्ट टकराव के बावजूद, नंद कुमार अपने फेसबुक और ट्विटर प्रोफाइल में खुद को भूपेश बघेल का “गर्वित पिता” कहते हैं।
एक मुख्यमंत्री के पिता की गिरफ्तारी को आप राज्य कांग्रेस में चल रहे अंदरूनी सत्ता संघर्ष से जोड़कर भी देख सकते हैं .पिछले दिनों मुख्यमंत्री विरोधी मुहिम चलने वाले लोगों को कमजोर करने के लिए मुमकिन है कि ये प्रहसन रचा गया हो,किन्तु इस अटकल में दम नहीं लगता .मुझे लगता है कि पूरा मामला लोक-लाज का है. .मुख्यमंत्री ने पुलिस को कार्रवाई की खुली छूट देकर जहाँ क़ानून के हाथ लम्बे और पुलिस का इकबाल बुलंद रखा है वही दूसरी तरफ अपने विरोधियों को भी इंगित कर दिया है कि जो मुख्यमंत्री अपने पिता को जेल की हवा खिला सकता है वो विरोधियों की भी कुगत कर सकता है .
वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ये कृत्य रामचरित मानस में उल्लेखित ‘मुखिया’ शब्द की परिभाषा को सार्थक करता है. मानस में कहा गया है कि-
मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक
छत्तीसगढ़ में जो हुआ है वो एक इतिहास के रूप में तो दर्ज किया जाएगा,क्योंकि दूसरे सूबों के मुखिया भूपेश बघेल जैसे नहीं हैं. मप्र में मुखिया एक जातिभाई गुलाब सिंह को गिरफ्तार नहीं कर पाते तो यूपी के मुखिया एक बलात्कार के आरोपी स्वामी की गिरफ्तारी से हाथ खड़े कर देते हैं .गुजरात के मुखिया की तो बात अलग है .बहरहाल हम सब तेल देखें और तेल की धार देखें ,और देखें कि नंदलाल बघेल जेल से बाहर आने के बाद अपने मुख्यमंत्री बेटे के प्रति किस तरह से पेश आते हैं ?