स्थानीय निकायों पर कब्जे के कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए सजग हो गई भाजपा

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इंदौर से कीर्ति राणा की रिपोर्ट

प्रदेश की अधिकांश नगर पंचायतों, पालिकाओं में पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद नगर निगम विधान मुताबिक तो कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही चुनाव हो जाने थे लेकिन सरकार ने अधिकांश पालिकाओं, नगर निगमों में प्रशासकों की नियुक्ति कर दी है। जबकि इंदौर जैसी बड़ी नगर निगम में अभी तक तो वार्ड परिसीमन की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है। स्थानीय निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति से भाजपा भी सतर्क हो गई है। उसे लग रहा है कि प्रशासकों से वह अपने मन मुताबिक परिसीमन, वार्ड आरक्षण आदि करा सकेगी। स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा पिछड़े नहीं इसलिए वह कानूनी रास्ते पर चलने का मन बना रही है। उसकी इस इच्छा को पूर्व उप महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने मुख्य सचिव को लिखे पत्र से आसान भी कर दिया है।

यदि संविधान के अनुच्छेद 243 (प), नगर निगम अधिनियम 1956 और नगर पालिका अधिनियम 1961 के प्रावधानों के तहत तो नगर निगमों-पालिकाओं के 5 वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पहले ही स्थानीय निकाय चुनाव सम्पन्न करा लिए जाने थे। यदि ऐसा होता तो जाहिर है कांग्रेस का सभी 16 निगमों सहित पालिकाओं में अपने दल वाले बोर्ड के गठन का सपना शायद ही पूरा हो पाता। इसीलिए अन्यान्य कारणों के चलते स्थानीय निकायों में प्रशासक या समिति बैठाने की प्रक्रिया चल रही है। इंदौर सहित प्रदेश की बड़ी नगर निगमों का कार्यकाल फरवरी के दूसरे सप्ताह में पूर्ण होने पर यहां भी प्रशासक बैठा दिए जाएंगे।

पूर्व उप महाधिवक्ता ने सीएस को पत्र लिखा
पूर्व उप महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने सरकार के इस निर्णय को गैर संवैधानिक मानते हुए तो मुख्य सचिव को शासन के इस गैर संवैधानिक काम को लेकर आगाह भी कर दिया है कि कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व स्थानीय निकायों के चुनाव सम्पन्न हो जाने चाहिए।ऐसा न करना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।मप्र सरकारऔर मप्र चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कराने जैसे कोई कदम नहीं उठाते हुए अवैधानिक रूप से प्रशासकों की नियुक्ति की जा रही है।जबकि समय पर निकाय चुनाव करवाने हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए।

मनमानी के खिलाफ कोर्ट जाएंगे-मोघे
भाजपा द्वारा गठित नगरीय निकाय चुनाव-परिसीमन कमेटी गठित कर रखी है। इस कमेटी में विवेक शेजवलकर, उमाशंकर गुप्ता, शमशेर सिंह उप्पल सदस्य और अध्यक्ष हैं पूर्व सांसद-पूर्व महापौर कृष्ण मुरारी मोघे। उन्होंने कहा संविधान में उल्लेख है कि पुरानी परिषद का कार्यकाल पूर्ण होने से पहले चुनाव करा लिए जाए। प्रशासक नियुक्त करने का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार ने मनमानी जारी रखी तो हम कोर्ट जाएंगे। इंदौर नगर निगम के वार्डों का मनमाने तरीके से परिसीमन करने की प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट पहले ही रोक लगा चुकी है। भोपाल नगर निगम को दो हिस्सों में बांटने की प्रक्रिया के विरुद्ध भी कोर्ट के आदेश पर यह प्रक्रिया रुक गई।

प्रशासक बैठाना सरकार की विफलता: उप्पल
भोपाल नगर निगम में आयुक्त, इंदौर और ग्वालियर नगर निगम में प्रशासक के साथ ही आयुक्त सहकारिता रहे एसएस उप्पल कहते हैं समय पर चुनाव नहीं कराना, प्रशासक बैठाना तो सरकार की विफलता ही है। इसी तरह महापौर का चुनाव सीधे मतदाताओं की अपेक्षा पार्षदों के बीच से कराना भी गलत है। ऐसी स्थिति में पार्षदों की ब्लेकमेलिंग-अनैतिक दबाव के चलते शहर हित के काम प्रभावित होंगे। सरकार द्वारा स्थानीय निकायों में प्रशासक बैठाने का सीधा मतलब है कि सरकार की इच्छा मुताबिक वार्डों का परिसीमन, वार्डों का निर्धारण हो जाए। इंदौर भोपाल नगर निगमों में यदि समय पर चुनाव को लेकर अड़चनें हैं तो बाकी नगर निकायों में तो चुनाव कराए जा सकते हैं।

दो विधानसभा में उपचुनाव के साथ ही निकाय चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कराना दोनों दलों के लिए अग्निपरीक्षा
करीब सवा साल पहले सत्ता में आई कांग्रेस सरकार झाबुआ विधानसभा उपचुनाव में भारी मतों से जीत दर्ज करा चुकी है।इस जीत अब उसे अगले छह माह में दो उप चुनाव जौरा (मुरैना) विधायक बनवाकी लाल शर्मा और आगर विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन से रिक्त हुई सीटों पर उपचुनाव का सामना करना है। आगर से विपिन वानखेड़े का नाम लगभग तय माना जा रहा है। जौरा में नाम सिंधिया की सहमति से तय होगा।

इन दो उपचुनावों के साथ ही इसी अवधि में स्थानीय निकाय चुनाव भी होना है। इन चुनावों में कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक जीत दर्ज कराना चुनौती इसलिए है कि प्रदेश की 16 नगर निगमों सहित नगर पालिकाओं में शिवराज सिंह की सरकार रहते हुए चुनाव में सभी जगह भाजपा का बोर्ड बना था।