मिलिंद कुलकर्णी
भोपाल
बेहद तीखे व्यक्तिगत आरोपों के साथ १२ मई को होने जा रहे इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी भोपाल से तय होते ही जहां भाजपा की दिक्कतें बढ़ी हुई हैं, वहीं ‘संघ परिवार’ सकते में है। भाजपा के नेता जिस आसानी से आए दिन दिग्विजय के विरोध में बयान देते रहे हैं, वे आज ‘राजा’ मुकाबले में किसे उतारा जाए, इस सवाल को लेकर परेशान हैं। हालांकि वह इसे अपनी ‘गोपनीय रणनीति’ करार देते हैं, लेकिन हकीम से कभी कोई मर्ज छुपा है ? आधा दर्जन से ज्यादा नामों (जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, नरेंद्रसिंह तोमर, निवृत्तमान सांसद आलोक संजर, बाबूलाल गौर, महापौर आलोक शर्मा, ‘संघ’ की पसंदीदा साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर और वीडी शर्मा आदि शामिल हैं) पर चर्चाओं के दौर चलने के बाद विगत ३० वर्षों से भाजपा की झोली में रही इस सीट के संभावित प्रत्याशियों में अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और सुश्री प्रतिभा आडवानी का नाम भी जुड़ गया है। यानी भोपाल का चुनाव दिलचस्प और चर्चित होना तय है।
विगत १ अप्रैल को भोपाल स्थित संघ के प्रदेश कार्यालय ‘समिधा’ से पुलिस सुरक्षा हटाने के राज्य शासन के निर्णय के बाद दिग्विजय ने इस सुरक्षा को तत्काल बहाल करने की मांग मुख्यमंत्री कमलनाथ से की, तो कुछ भाजपाई भी दबी जुबान ‘राजा’ की सराहना करने लगे। उनकी मांग पर तुरंत अमल भी हो गया। यूं भी दिग्विजय चतुर और जमीनी राजनेता हैं और लगभग दो हफ्ते पहले अपने चुनावी अभियान में जुट कर प्रचार में भाजपा से आगे निकल चुके हैं। उन्होंने कर्मचारियों के बीच एक सभा लेकर अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में हुई हर भूल-चूक के लिए माफी मांग ली है। नर्मदा यात्रा के बाद से प्रदेश की राजनीति के मुख्य प्रवाह में फिर से लौटे दिग्विजय अब चंदन का बड़ा सा त्रिपुंड लगाकर प्रचार में देखे जा सकते हैं। वे उनसे मिलने आए कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं- अपने मतदान केंद्र को मजबूत करो। मुझसे तो मिलते ही रहोगे।
इधर, भाजपा के प्रदेश कार्यालय में कार्यकर्ता ऊपर वालों के आदेश की प्रतीक्षा में बेकाम बैठा है। प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और संगठन महामंत्री सुहास भगत अभी ऐसा कोई संकेत नहीं दे पाए हैं, जिससे लगा हो कि भाजपा, विधानसभा चुनाव की हार से उबर कर फिर ताल ठोंक कर मैदान में खड़ी है। भाजपा प्रत्याशी कैसा हो, यह पूछने पर एक पूर्व भाजपा पार्षद ने कहा- हम कार्यकर्ता सिर्फ दो बातें चाहते हैं। पहला- नेता ऐसा हो, जिनसे हम आसानी से मिल सकें और दूसरी बात- वह हमारी बात को समझ ले। इस वक्तव्य में बड़ी बात यह छुपी है कि भाजपा में आज कार्यकर्ता का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है, उसकी बात या सुझाव पर अमल तो दूर की बात है। राजनीतिक प्रेक्षकों की राय में कुल मिलाकर भाजपा में प्रदेश संगठन गायब है और लग रहा है कि यह चुनाव मोदी-शाह विरूध्द कांग्रेस महागठबंधन हो गया है। दूसरी तरफ कांग्रेस का कार्यकर्ता प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनने के बाद से उत्साहित है और अब दिग्विजय जैसे बड़े नेता की उम्मीदवारी ने उसमें जोश भर दिया है।
ध्यान रहे भोपाल लोकसभा क्षेत्र में भोपाल के सात विधानसभा क्षेत्र और सीहोर विधानसभा क्षेत्र के लगभग २१ लाख ९० हजार मतदाता वोटिंग करेंगे। इनमें करीब ४.५० लाख मुस्लिम, ४ लाख पिछड़ा वर्ग, ३.४० लाख ब्राह्मण, २.७० लाख कायस्थ और ७० हजार ईसाई मतदाता शामिल हैं। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भोपाल की सात सीटों में से तीन जीत कर वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव के मुकाबले में दो की बढ़त के साथ आगे है। देखना यह है कि इस लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है।