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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तीसरी बार भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, लेकिन ममता बनर्जी चुनाव हार गईं। नंदीग्राम विधानसभा सीट पर ममता को उनके पुराने साथी और भाजपा प्रत्याशी सुवेंदु अधिकारी ने 1957 वोटों से मात दे दी। बंगाल जीतकर भी खुद हार गईं ममता बनर्जी। आइए बताते हैं कि कैसे नंदीग्राम का संग्राम हारने में भी ममता और बंगाल का फायदा है…
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद और भाजपा की पूरी सेना लगी हुई थी। हालांकि, पीएम समेत भाजपा के तमाम बड़े नेताओं के व्यापक स्तर पर प्रचार करने के बावजूद पश्चिम बंगाल की जनता ने उनके जीतने के इरादों और ख्वाबों को चकनाचूर कर दिया। पश्चिम बंगाल की जनता ने एक बार टीएमसी के हाथों कमान सौंपी है।
‘बंगाली प्राइड’ को बनाया हथियार
जिस तरह नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सीएम रहने के दौरान गुजराती अस्मिता का चुनावी प्रचार में जमकर प्रचार किया। उसी तरह टीएमसी ने बंगाली अस्मिता यानी बंगाली प्राइड को चुनावी हथियार बना लिया। बंगाली प्राइड यानी जाति-धर्म और राज्य की सीमाओं से परे प्रबुद्धता और सांस्कृतिक समृद्धता के सूत्र से जुड़ी आबादी। बंगाल के बड़े शहरों से लेकर कस्बों और गावों तक पसरी इस भावना में न बाहरी-भीतरी का भेद रहा है और न हिंदू-मुस्लिम का फर्क, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में ये ‘बंगाली प्राइड’ भी छिन्नभिन्न हो गया।
बाहरी बनाम भीतरी ने पैदा की दरार
भाजपा और तृणमूल के इस चुनावी मुकाबले में नुकसान बंगाल की संस्कृति को हुआ है। ममता बनर्जी ने भाजपा को निशाना बनाने के लिए बाहरी और भीतरी का मुद्दा उठाया। बाद में उन्होंने सफाई भी दी कि बाहरी का मतलब सिर्फ भाजपा की चुनावी भीड़ है, लेकिन इस मुद्दे ने राज्य में सालों से रह रहे, बंगाली बोलने वाले और यहां की संस्कृति में रमे गैर-बंगालियों और बंगालियों के बीच अजीब सी दरार पैदा कर दी। ऐसे में अगर ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव जीत जातीं, तो पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास सबसे बड़े चेहरे के तौर पर उभर कर सामने आती। इसे लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ममता बनर्जी की बाहरी बनाम भीतर की सोच आने वाले समय में बड़ी चुनौती बन सकती थी।
पार्टी में एकाधिकार से पैदा तनाव में कमी
विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी के कई नेताओं ने ममता पर एकाधिकार और तानाशाही करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। इसके इतर भी कई बार ऐसा देखने को मिला कि ममता बनर्जी पार्टी में किसी और की नहीं चलने देती हैं। इन विधानसभा चुनाव में वित्त मंत्री अमित मित्रा समेत 27 लोगों को टिकट नहीं दिया, जिससे उनके प्रति खासा रोष पैदा हो गया। वहीं अब ममता की हार के बाद पार्टी की जीत को टीएमसी के लोगों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
मुस्लिम वोटों का सीधे ममता के पक्ष में जाना
बीजेपी को उम्मीद थी कि अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट की वजह से मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा ममता के खाते में नहीं रहेगा। हालांकि, इससे उलट अल्पसंख्यक समुदाय ने एकजुट होकर ममता बनर्जी के लिए वोट दिया। बीजेपी के सत्ता में आने का अल्पसंख्यकों में इतना डर था कि उन्होंने इस कदर एक होकर मतदान किया जिससे लेफ्ट-कांग्रेस दोनों का ही बंगाल के राजनीतिक नक्शे से सफाया हो गया। ममता ने सफलतापूर्वक मुस्लिमों का वोट पाया।
यहां तक कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले मालदा और मुर्शीदाबाद (दोनों ही जिले अल्पसंख्यक समुदाय के दबदबे वाले हैं) में भी ममता को ही वोट पड़े। दूसरी तरफ हिंदू वोट तृणमूल और बीजेपी के बीच बंट गए।
बंगाली पहचान
तृणमूल ने अपना चुनावी अभियान बंगाली पहचान के इर्द-गिर्द ही रखा। टीएमसी ने न सिर्फ बीजेपी को ‘बाहरियों की पार्टी’ करार दिया बल्कि ऐसे नारे दिए जिनमें ममता को राज्य की बेटी बताया गया। ममता और टीएमसी दोनों ने ही जनता को विश्वास दिलाया कि वे ‘गैर-बंगालियों’ के खिलाफ नहीं हैं। हालांकि, यह प्रचार जरूर किया गया कि बीजेपी बंगाल की संस्कृति को बर्बाद कर देगी। इसके अलावा कोरोना से निपटने के लिए तृणमूल की ओर से केंद्र पर लगाए भेदभाव के आरोपों ने भी बंगाली लोगों का ममता पर भरोसा बढ़ाया।
ममता ने खुद को बताया पीड़ित
नंदीग्राम में पैर में चोट लगने के बाद ममता बनर्जी ने व्हीलचेयर पर बैठकर रैलियां और रोड शो किए। ये तस्वीरें उनके पक्ष में रहीं और उन्हें लोगों की हमदर्दी भी मिली।
फ्लॉप रहे दलबदलू
बीजेपी को उम्मीद थी की टीएमसी छोड़कर आए नेता ममता बनर्जी और तृणमूल के अन्य नेताओं की कमजोरियों को भुनाने में कामयाब होंगे। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। राजीब बनर्जी, बैशाली डालमिया, रबींद्रनाथ भट्टाचार्य, प्रबीर घोषाल सहित टीएमसी के अन्य कई दिग्गज बीजेपी के लिए बोझ साबित हुए। बीजेपी ने ऐसे कई टीएमसी नेताओं को शामिल कर लिया जिनसे उनके क्षेत्र की जनता पहले से नाराज थी।