बजट-2019: मोदी सरकार मध्यवर्ग का दिल जीतकर चुनावी चुनौती को बनाएग आसान, टैक्स में दे सकती है राहत

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नई दिल्ली। अंतरिम बजट में कई दिलचस्प घोषणाएं हो सकती हैं। इनमें संभवत: कृषि क्षेत्र के संकट को दूर करने के साथ-साथ मध्यवर्ग को टैक्स में राहत देने के प्रयास शामिल होंगे। दरअसल सरकार के सामने अगले आम चुनाव की चुनौती है जिसे किसानों एवं मध्यवर्ग की विशाल आबादी का दिल जीतकर आसान बनाया जा सकता है। टैक्स पर छूट की रूपरेखा क्या होगी, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों ने संकेत दिया है कि 1 फरवरी को पेश होने जा रहे बजट में वित्त वर्ष 2019-20 के पहले कुछ महीनों के दौरान टैक्स छूट का ऐलान संभव है। बजट में यह वादा किया जा सकता है कि अगर मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई तो इस राहत की अवधि बढ़ाई जाएगी।
Budget-2014: Modi government will win the middle class heartily, to create electoral challenge, easy tax can give relief
कौन सा विकल्प अपनाएगी सरकार?
अभी वित्त मंत्रालय का कामकाज देख रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल अपने पहले बजट भाषण के बड़े हिस्से में सरकार की विभिन्न पहलों एवं भविष्य के अजेंडे का बखान कर सकते हैं। अटकलें लग रही हैं कि गोयल टैक्स पर राहत देने के लिए स्लैब में बदलाव करेंगे या फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा 40 हजार रुपये से बढ़ाने का ऐलान होगा। चर्चा इस बात की भी है कि वह मेडिकल इंश्योरेंस लेने पर छूट के ऐलान तक ही सीमित रह सकते हैं।

जेटली का संकेत
बहरहाल, मोदी सरकार से इस बजट में बड़े-बड़े ऐलान की उम्मीद की जा रही है, लेकिन आशंका यह भी है कि अंतरिम बजट की बाध्याताओं के कारण ऐसा संभव नहीं हो। हालांकि, अमेरिका में इलाज करा रहे निवर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में संकेत दिया था कि सरकार अर्थव्यवस्था की तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठा सकती है। इसलिए, उम्मीद की जा रही है कि इस बार के कृषि संकट और इसका अर्थव्यवस्था पर असर जैसे मुद्दे बजट की प्राथमिकता में शामिल रह सकते हैं।

सरकार की मुश्किल
पिछले बजट में भी टैक्स दरों में बदलाव की बड़ी उम्मीद जताई गई थी, लेकिन वित्तीय अनुशासन में बंधे होने के कारण सरकार ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया था। हालांकि, सरकार लगातार कहती रही है कि टैक्सपेयर के पॉकेट में ज्यादा पैसे रहने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है। सरकार के सामने मुश्किल यह है कि आयुष्मान भारत जैसी विशाल योजना को सुचारू तरीके से चलाने के लिए मोटी रकम की जरूरत है जबकि जीएसटी के तहत टैक्स कलेक्शन अब भी लक्ष्य से कम हो रहा है।