किसान सावधान… आर्मी वर्म का हमला,चौपट हो जाएंगी फसलें…

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राघवेनदर

साल दर साल सूखे से पिट रहा किसान अभी आसमान तरफ टकटकी लगाए देख रहा है तभी उसके खेतों में विदेशी कीट आर्मी वर्म उसके खेतों पर डेरा डाल रहा है। कनाडा,अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में मक्के की फसल तबाह करने के बाद इस कीड़े के हमले से किसानों का भविष्य खतरे मे है। इस कीड़े की मक्खी भारत कैसे आई ये भले ही रा और मोदी सरकार के लिए ज्यादा चिंता का विषय न लगता हो लेकिन आत्महत्या कर रहा किसान अगर इस आर्मी के हमले से फसलों को नहीं बचा पाया तो देश के कई किसान खेती से बाहर हो जाएंगे। यह खतरा अभी आया है और इससे बचने के लिए किसान और सरकार नहीं जागी तो कृषि चौपट होने की कगार पर आ जाएगी। मक्का की फसल इस कीड़े की पहली पसंद है। इसके बाद यह करीब अस्सी किस्म के अनाजों को अपना निशाना बनाता है। ये सब्जियों में गोभी और बैगन को ज्यादा पसंद करता है।
आर्मी वर्म नाम का यह कीड़ा भारत कैसे आया इस पर कई बातें हो सकती हैं। मसलन समुद्री जहाज के जरिए उनमें रखे सामानों में,कंटेनर में या कोई साजिश के कारण। दरअसल हजारों लाखों की तादाद में आर्मी वर्म की मक्खी हर दस दिन में अंडे देती है। इसे मारने के लिए करीब 16 हजार रुपए का कीटनाशक इस्तेमाल होता है। इसे हर दिन में फसलों पर स्प्रे करना पड़ता है। बाद में इसके असली नकली बिक्री पर भी सवाल होंगे। हो सकता है कीटनाशक बेचने के लिए इस कीड़े को साजिश के तहत भारत भेजा गया हो। जो भी है अब यह कीड़ा भारत में दस्तक दे चुका है औऱ इसने दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के बाद मध्यप्रदेश को निशाना बनाना शुरू किया है।

मप्र के छिंदवाड़ा जिले में मक्के की फसल बड़ी मात्रा में बोई जाती है। इसे राज्य का कार्न सेन्टर भी कहते हैं। छिंदवाड़ा कार्न सिटी के नाम से भी जाना जाता है। चिंता भरी इस खबर में अच्छी बात ये है कि ये छिंदवाड़ा मुख्यमंत्री कमलनाथ का गृह क्षेत्र है। इस वजह से आर्मी वर्म कीट के हमले से रोकथाम के लिए सरकार और किसान संगठन सक्रिय हो गए हैं। पहले साल यह मक्खी के अंडों से इल्ली नुमा कीड़ा फसलों को कम याने 25-30 प्रतिशत ही नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन हर साल इसकी मारक क्षमता बढ़ती जाएगी। इस मामले में किसान नेता केदार शंकर सिरोही तीन चार दिन छिंदवाड़ा भी रुके और वहां मक्के की फसल को इस कीड़े से बचाने के लिए सरकारी तंत्र के साथ किसानों को जागरुक करने में लगे रहे। सिरोही के मुताबिक अभी तक जो अनुमान है इस साल लगभग 25 फीसदी ही कृषि को नुकसान होगा। इस गणित के हिसाब से लगभग 5 हजार करोड़ की फसल बचा ली जाएगी। यह सब किसानों के साथ सरकारी अमले की सजगता से होगा।

लेकिन अगले साल क्या स्थिति बनेगी या खरीफ के बाद रबी की फसल जैसे गेहुं चने और अरहर पर यह कीट कितना अटैक करेगा अभी कुछ नहीं कह सकते। जानकारी मिली है कि मक्के के साथ धान और सब्जियों पर भी इस कीट का हमला हो सकता है। मध्यप्रदेश में धान की खेती बड़े रकबे में की जाती है। इसलिए किसानों को अभी से सजग होना पड़ेगा। थोड़ी सी चूके उनकी फसलों को तबाह कर सकती है। किसान और उनके संगठन,कृषि विस्तार अधिकारी के साथ जनप्रतिनिधियों मसलन विधायक, सांसद के संपर्क में रहें। आर्मी वर्म पर छिड़काव के लिए जो दवाएं बताई गई हैं उनमें ईस्पिनोडोर, क्लोरोपाईरीफोस, साईपरमेथ्रीन, एमाबेक्टिन, लेमड़ासायलोथ्रीन, बवेरिया बेसीना, ट्राईकोग्रामा मुख्य नाम हैं। सिरोही ने छिंदवाड़ा के अलावा सिवनी,बैतूल,हरदा,होशंगाबाद और मालवा क्षेत्र के इंदौर उज्जैन सहित मक्का बोए जाने वाले इलाकों का दौरा किया है। बताया जाता है कि पूरे प्रदेश में करीब 70 लाख टन मक्का की पैदावार होती है। लगभग 14 हजार करोड़ के मक्के का कारोबार किया जाता है। यह फसल समूचे प्रदेश में लगभग 9 लाख हैक्टेयर रकबे में बोई जाती है। इसमें करीब 3 लाख हैक्टेयर रकबा छिंदवाड़ा और उसके आसपास के इलाकों का है। इसलिए छिंदवाड़ा मक्का शहर के नाम से भी जाना जाता है। भारत का मक्का विदेशों में भी जाता है खासतौर से यूरोपीय देशों में इसका निर्यात किया जाता है। लेकिन इस साल करीब चार लाख टन मक्का आयात करने के लिए संकेत मिले हैं। मक्के से स्ट्रार्च बनाने के साथ खाद्य सामग्री भी तैयार की जाती है। गुजरात इसके उपयोग का बड़ा केन्द्र है। यहां लगे प्लांट इससे बनी सामग्रियों को विदेशों में निर्यात करते हैं। मध्यप्रदेश के बदनावर में भी मक्के से जुड़े कश्यप स्वीटनर में भी स्ट्रार्च तैयार किया जाता है। कुलमिलाकर आर्मी वर्म कीट के हमले के बहाने सरकार के जगने और किसानों को जगाने की कोशिश है।

कर्नाटक में कांग्रेस को कमल से बचाएंगे कमल
कैसा अजीब संयोग है कि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को भाजपा का हर छोटे से बड़ा लीडर आए दिन गिराने की धमकी देता है। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी सरकार बचाने के साथ कर्नाटक में भी कांग्रेस समर्थित कुमार स्वामी सरकार को बचाने के लिए मोर्चा संभालेंगे। आखिर इस काम के लिए कमलनाथ ही क्यों चुने गए। इसके पीछे कमलनाथ का प्रबंधन तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही उनके अंबानी अडानी जैसे व्यवसायिक घरानों से निकट के संबंध भी बड़ी वजह बताए जा रहे हैं। दरअसल इन दोनों घरानों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी नजदीकियां हैं। अब कमलनाथ अपने संपर्कों का कितना उपयोग कर्नाटक बचाने के लिए करते हैं और भविष्य में कितना उपयोग मध्यप्रदेश में खुद को बचाने के लिए करेंगे। राजनैतिक गलियारों में यह बात पंख लगाए उड़ रही है कि कर्नाटक और गोवा के बाद भाजपा के निशाने पर मध्यप्रदेश की कमल सरकार रहेगी। देखते हैं कौन बचता है और कौन बचाता है। अभी तो कमल के खिलाफ कमल है।
लेखकIND24 के प्रबंध संपादक हैं