शह-मात का खेल जारी, कोरोना-शराब ठेकेदार पड़ रहे भारी

0
278

कौशल किशोर चतुर्वेदी, भोपाल

मध्यप्रदेश में अलग-अलग मोर्चों पर सरकार के साथ शह-मात का खेल जारी है। सबसे बड़ा मोर्चा कोरोना ने संभाल रखा है जो हर रोज दोगुनी ऊर्जा के साथ शहर, बाजार और गलियों में अपना लोहा मनवाने की हरसंभव कोशिश करता है और सफल होता भी दिखता है। दूसरी तरफ प्रदेश में शराब कारोबारियों और सरकार के बीच भी शीत युद्ध जारी है। हाईकोर्ट जबलपुर ने अंतरिम आदेश दिया है जो सरकार के प्रतिकूल जाता दिख रहा है पर अभी भी बहुत कुछ है जो सरकार को सवा सेर साबित होने के लिए काफी है।

फिलहाल पहले हम बात करें कोरोना की। कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ रहा है। कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। साथ में कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। यह पहली बीमारी है, जिसने मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य होकर सरकार और प्रजा की नाक में दम कर रखा है। इसके बाद भी सरकार खुशी जता रही है और बार-बार विक्ट्री साइन दिखा रही है कि आल इज वेल। यह भी कहा जा रहा है कि अभी बीमारी अपने शीर्ष पर नहीं पहुंची है और आने वाला समय भयावह हो सकता है। सरकार स्वीकार भी कर रही है और मान रही है कि इलाज के लिए सरकार ने तैयारियां कर ली हैं

पर सफलता पर खुशी भी है कि एक्टिव केस की तुलना में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या ज्यादा है। यह भी मान रही है कि हर मौत दुखद होती है यानि कि सार्वभौम सत्य और कोरोना से मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर ब्रेक भी नहीं लगा पा रही है। यानि कि सरकार और कोरोना के बीच शह-मात का खेल जारी है। एक्टिव केस की तुलना में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या को उपलब्धि बताकर जहां सरकार कोरोना को आइना दिखाने की कोशिश करती है तो कोरोना हर रोज मौत के आंकड़ों और नए मरीजों की संख्या में इजाफा कर सरकार को पटखनी देने और मात देने की मुद्रा में खुद को तरोताजा कर लेता है। कोरोना से मौत का आंकड़ा तेज गति से 400 का आंकड़ा छूने को बेताब है तो कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या भी 10 हजारी होने की तरफ लगातार तेज गति से बढ़ती जा रही है। ऐसे में सरकार के पास खुश होने के लिए यही है कि 75 फीसदी मरीज ठीक, या 80 फीसदी मरीज ठीक या और भी ज्यादा आंकड़े खुश होने के लिए तो काफी हैं लेकिन मौतों के रूप में जो खोना पड़ रहा है, वह उपलब्धियों पर भारी पड़ेगा।

अब हम बात करें दूसरे शह-मात के खेल की जो शराब ठेकेदारों और सरकार के बीच चल रहा है। कोरोना लॉकडाउन में ही सरकार ने शराब की दुकानें खोलने का फैसला लिया था। और शराब कारोबार के इतिहास में पहली बार ठेकेदारों ने सरकार के सामने ताल ठोकते हुए दुकानें नहीं खोलकर यह जता दिया कि सरकार की मनमानी के सामने नहीं झुकेंगे। सरकार ने जब तानाशाही करने की कोशिश की तो शराब कारोबारी हाईकोर्ट के शरणागत हो गए और हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद स्थिति साफ हो गई है कि अब दुकानें सरेंडर करने का अधिकार उन सभी शराब ठेकेदारों को है, जिन्हें सरकार की नीति मंजूर नहीं है। सरकार ने शराब कारोबारियों को हाईकोर्ट के निर्देशानुसार ही दो विकल्प दिए थे कि ठेकेदार चाहें तो अप्रैल-मई के दो महीने दुकानें नहीं खोली गईं, उसके बदले ठेकेदार अगले साल मई तक ठेके चलाने की शर्त मंजूर कर सकते हैं। तो दूसरा विकल्प था कि जो दुकानदार मार्च तक ही दुकान चलाना चाहते हैं उन्हें सरकार कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा देने को तैयार है। इसमें केवल वही ठेकेदार सहमत थे जिनकी जिलों में मोनोपॉली थी और उन्हें मालूम था कि दोनों स्थितियों में उन्हें भरपाई करने का मौका मिलेगा। पर केवल 28 फीसदी ठेकेदारों ने ही दुकानें चलाने की अनुमति दी थी और 72 फीसदी ठेकेदार सरकार के दोनों विकल्प को नकारकर दुकानें छोडऩे का ऐलान कर चुके थे।

अब जब हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर यह साफ कर दिया है कि जो ठेकेदार सरकार से सहमत नहीं वह दुकानें सरेंडर कर सकते हैं। सरकार उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करेगी। यानि कि जो सरकार का ब्रह्मा उन शराब ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट कर सकता था, वह सरकार से छिन चुका है। अब ठेकेदारों ने दुकानों को सरेंडर करने की सूचना सरकार को देना शुरू कर दिया है। ऐसे में रेड जोन रहे तीन जिले भोपाल, इंदौर और उज्जैन में लगभग सभी ठेकेदार दुकानों को सरेंडर कर देंगे। और बाकी जिलों में भी स्थितियां ज्यादातर सरकार के प्रतिकूल ही हैं। गुना, अशोकनगर, सीहोर, रायसेन जैसे कुछ छोटे जिले हैं जहां पर ठेकेदारों की मोनोपॉली थी, वही सरकार के साथ खड़े दिखाई देंगे। ऐसे में सरकार को जो साढ़े तेरह हजार करोड़ का राजस्व मिलने की उम्मीद है, उसमें खासा नुकसान हो सकता है। तीन दिन में साफ हो जाएगा कि 70 फीसदी, 72 फीसदी या 75 फीसदी ठेकेदार दुकान छोड़ते हैं या 70 फीसदी से कम। पर यह साफ है कि सरेंडर हुई दुकानों का फिर से आक्शन करने में भी सरकार को हजारों करोड़ का नुकसान उठाना ही पड़ेगा। अगर इसका कुछ हिस्सा ही सरकार राहत के तौर पर वर्तमान ठेकेदारों को देकर शह-मात के खेल में न उलझती तो हो सकता था कि सरकार फायदे में ही रहती।

खैर एक तो कोरोना, दूसरा कोरोना प्रभावित शराब कारोबार दोनों ने ही सरकार को खासा नुकसान दिया है। कोरोना के चलते लॉकडाउन रहा, उससे राजस्व नुकसान की सीमा कितनी पहुंचेगी, इसका आकलन तो फिलहाल सरकार कर भी नहीं पा रही है। वहीं शराब जिसकी जय-जयकार करने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी, उसने ही सरकार के सीने पर जो वार किया है, उसे भी सरकार नहीं भुला पाएगी। माना जाए तो कोरोना के मामले में भी सरकार हर्ष की मुद्रा में बैकफुट पर ही है और आबकारी की मारी सरकार भी राजस्व के मामले में बैकफुट पर ही है।