डीआरडीओ कांफ्रेस में बोले सेनाध्यक्ष- अगली लड़ाई स्वदेशी तकनीक से लड़ेंगे और जीतेंगे

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नई दिल्ली

नई दिल्ली में मंगलवार को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भवन में डीआरडीओ की 41वीं कांफ्रेंस शुरू हो चुकी है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, वायुसेनाध्यक्ष एयर टीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया, नौसेनाध्यक्ष एडमिकल करमबीर सिंह और डीआरडीओ अध्यक्ष जी सतीश रेड्डी हिस्सा ले रहे हैं।

कांफ्रेस में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा, मेरे पास तीन सुझाव है। पहला हमारे पास आक्रामक वाली आला तकनीक होनी चाहिए। दूसरा हमें अमेरिका के डीएआरपीए जैसे मॉडलों पर करीब से नजर डालनी चाहिए। तीसरा- छोटे आविष्कारों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा, ‘डीआरडीओ ने इस चीज को सुनिश्चित करने की कोशिश की है सेवाओं की आवश्यकताओं को घरेलू समाधानों के माध्यम से पूरा किया जाए। हमें विश्वास है कि हम स्वदेशी हथियार प्रणालियों और उपकरणों के जरिए अगला युद्ध लड़ेंगे और जीतेंगे। हम भविष्य के युद्ध के लिए प्रणालियों को देख रहे हैं। हमें साइबर, स्पेस, लेजर, इलेक्ट्रॉनिक, रोबोटिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास को देखना शुरू करना होगा।’

कांफ्रेस में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा, ‘आला तकनीकें कुछ ऐसी हैं जो भारत को अधिक सुरक्षा प्रदान करती हैं। हमें अपनी रक्षा सेवाओं और खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर एक आकलन करना होगा कि हमारी जरूरतें क्या हैं जो हमें हमारी प्रतिकूलताओं पर बढ़त दिलाएंगी। सेना जो पूरी तरह से सुसज्जित होती है उन्हें शॉट्स कहा जाता है। वह हमेशा मानवता की किस्मत का फैसला करती हैं। उनके पास हमेशा उच्च प्रौद्योगिकी होती है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसपर भारत का अपना ऐतिहासिक अनुभव दुखद रहा है। हन रनर-अप हैं। रनर-अप के लिए कोई ट्रॉफी नहीं होती है। या तो आप अपने विरोधी से बेहतर हो सकते हैं या आप कहीं नहीं होते। आधुनिक दुनिया में तकनीक और पैसा दो ऐसी चीजें हैं जो जियोपॉलिटिक्स को प्रभावित करती हैं। कौन जीतेगा यह इसपर निर्भर करता है कि उसका अपने विरोधी के खिलाफ इन दो चीजों को लेकर क्या पूर्वाग्रह हैं। इन दोनों में से तकनीक ज्यादा महत्वपूर्ण है।’

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘मैं एपीजे अब्दुल कलाम के 88वें जन्मदिन पर उन्हें धन्यवाद देता हूं। वह एक स्वीकृत वैज्ञानिक थे। अनुसंधान और मिसाइल विकास में उनके योगदान ने भारत को अपनी स्वदेशी क्षमताओं के लिए जानी जाने वाले देशों की सूची में ला दिया।’