पंकज शुक्ला
मध्य प्रदेश के श्रम मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया ने 25 नवंबर को प्रशासन अकादमी में राज्य-स्तरीय मध्यप्रदेश बाल श्रम उन्मूलन कार्यशाला में कहा है कि जून 2020 तक प्रदेश को बाल श्रम और बंधक श्रम की कुरीतियों से मुक्त करवा दिया जाएगा। अधिकारियों को निर्देश दिए कि इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कार्य-योजना बनाएं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में हाल ही में 211 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया है। आगामी 6 माह में 5 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त कराने का लक्ष्य निर्धारित है। यहां यह बता देना जरूरी है कि जनगणना आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 7 लाख से अधिक बाल श्रमिक हैं। मंत्री सिसोदिया ने छह माह में 5 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त करवाने का लक्ष्य दिया है। तब 7 लाख बाल श्रमिकों को काम से मुक्त करवाने में कितना वक्त लगेगा इस रफ्तार से जून 2020 तक मप्र बाल श्रम से मुक्त होगा
यही है सरकार के काम करने का तरीका
एक्शन प्लान, कार्यशाला, निर्देश, बैठक और मैदान में परिणाम शून्य। यदि स्टार विशेषण वाली होटलों में योजना बनाई जाएगी तो ऐसे ही आपत्तियां उठेंगी। ऐसे अव्यवहारिक लक्ष्य होंगे तो मखौल ही उड़ेगा। सरकार आंख बंद कर कह सकती है कि मप्र में बाल श्रमिक है ही नहीं। तब तो कुपोषण भी नहीं दिखेगा। बच्चे अपने वास्तविक कद से बौने हो रहे हैं यह भी नहीं दिखेगा। हमें पता ही नहीं चलेगा कि मप्र में 38.9 किशोर लड़के और 25.4 प्रतिशत किशोर बालिकाएं कुपोषित हैं। (अब तक बालिकाओं के कुपोषण पर ही जोर हुआ करता था।) मगर आंखें खोल कर हकीकत देखना चाहेंगे आंखें फटी रह जाएगी। जैसे खुद महिला एवं बाल विकास विभाग ने आंकड़े दिए थे कि प्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच करीब 57 हजार बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया। 2019 में इस स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया है। केवल इतना परिवर्तन हुआ है कि प्रदेश में कम वजनी बच्चों का प्रतिशत 60 से घट कर 38.7 रह गया है मगर 31 लाख से अधिक बच्चे अभी भी बौने हैं यानि उनका पर्याप्त विकास और वृद्धि नहीं हो रही। करीब 5 लाख बच्चे गंभीर रूप से कमजोर की श्रेणी के हैं। (सीएनएनएस डाटा)।
तब क्या हमारी आने वाली पीढ़ी कुपोषित, कमजोर, कम वजनी और अपर्याप्त वृद्धि वाली होगी
जब यह सवाल पूछा जाता है तो महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी मीडिया को जवाब देती है कि ‘अपनी मेहनत से वे 6-7 महीने में कुपोषण का कलंक दूर कर देंगी। मैं खुद गरीब वर्ग से आई हूं गरीब बच्चों के हाल जानती हूं, छोटे छोटे लोग मेहनत मजदूरी को जाते हैं। बच्चियों की जल्दी शादी कर देते हैं। वे खुद ही तंदरुस्त नहीं होंगे तो बच्चा कैसे तंदरुस्त होगा। मैं पूरी मेहनत से काम करूंगी दिखा दूंगी 6-7 महीने में।”
मंत्री की भावना अच्छी है मगर यह कोई गड्ढा खोदना थोड़े ही है कि वे अकेली मेहनत कर कुपोषण का कलंक मिटा देगी। मंत्री ऐसे बयान देते हैं और अफसर एक्शन में आकर प्लान बनाते रहते हैं। मैदान में वही होता है जो बरसों से चला आ रहा। जबकि शिशु मृत्य दर की बात की जाती है तो किशोरी बालिकाओं, गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों के मुद्दे को एक साथ देख चाहिए। जब बाल श्रम खत्म करने की बात करते हैं तो बाल श्रम के खत्म होने के बाद बच्चों के स्कूल जाने, उनकी आजीविका की भी फिक्र करनी चाहिए। वरना, वे अगले दिन काम पर लौट आएंगे। हर मुद्दे को समग्रता में देखे बिना टुकड़े-टुकड़े में देख कर योजना बनाएंगे रोडमैप बन जाएगा, पैसा फूंका जाएगा, परिणाम के नाम पर हाथ खाली ही होंगे। मुख्यमंत्री कमलनाथ का सपना मप्र को बच्चों के अनुकूल बनाना है तो सोचने का तरीकों बदलना होगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है