नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट, इम्पोर्ट टैरिफ में दोगुनी बढ़ोतरी और कंसाइनमेंट क्लियरंस में देरी के चलते इस साल चाइनीज लाइटिंग और इलेक्ट्रिक आइटमों के बाजार में सन्नाटा है। इम्पोर्टर्स के हाथ खींचने से बाजार में माल की आवक बहुत कम हुई है और कीमतें 35 से 40% तक अधिक बताई जा रही हैं। बहुत से रॉ मैटीरियल पर भी ड्यूटी बढ़ने के चलते घरेलू मैन्युफैक्चरर्स ने भी दाम बढ़ा दिए हैं।
Chinese lights rising up due to import tariffs, market trends silenced
इलेक्ट्रिकल आइटमों के सबसे बड़े बाजार भगीरथ पैलेस में दिल्ली इलेक्ट्रिकल ट्रेडर्स असोसिएशन के पूर्व प्रेजिडेंट अजय शर्मा ने बताया कि दिवाली ट्रेड के लिहाज से यह साल हालिया वर्षों में सबसे खराब रहने वाला है। दो साल पहले चाइनीज आइटमों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद इम्पोर्ट में उतनी कमी नहीं आई थी, जितनी इस साल रुपये में ऐतिहासिक गिरावट और चाइनीज उत्पादों पर लगातार टैरिफ बढ़ाए जाने से आई है।
लड़ियों के हब लक्ष्मी मार्केट के इम्पोर्टर प्रदीप कोचर ने बताया, ‘पिछली दिवाली के बाद से चाइनीज एलईडी लाइट्स पर बेसिक कस्टम ड्यूटी दोगुनी हो चुकी है, जबकि काउंटरवेलिंग ड्यूटी, सेस और अन्य चार्जेज के साथ इम्पोर्ट कॉस्ट कम से कम दोगुनी बढ़ी है। उस पर से रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 15% तक गिर चुका है। इससे चाइना से बहुत कम माल आया है और दाम भी 35-40% ज्यादा हैं।’ उन्होंने बताया कि मार्च के बाद से कई चाइनीज इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक आइटमों पर ड्यूटी में तीन दौर का इजाफा हो चुका है। इसके अलावा कॉपर सहित मेटल के दामों में तेजी से भी इलेक्ट्रिकल सामान उतने सस्ते नहीं रह गए हैं।
इम्पोर्टर्स का कहना है कि डीजीएफटी और कस्टम के लेवल पर क्लियरंस नॉर्म्स टाइट होने से जो माल एक महीने में आ जाता था, उसकी डिलीवरी में दो महीने का समय लग रहा है। डीआरआई की छानबीन भी बढ़ी है। चाइनीज इम्पोर्ट पर बंदिशों के चलते घरेलू मैन्युफैक्चरर्स के उत्पाद भी महंगे हुए हैं।
ई-कॉमर्स कंपनियों ने कई देसी ब्रैंड्स के साथ डील कर फेस्टिव आॅफर्स में बड़ी छूट देने की पेशकश की है। पहली बार इसमें इलेक्ट्रिकल अप्लायंसेज और लाइटिंग को भी शामिल किया गया है। इससे भी लोकल बाजारों की सेल्स को झटका लगा है। इस साल बाजारों में सामाजिक संगठनों की ओर से चाइना के बहिष्कार को लेकर कोई मुहिम नहीं दिख रही है। खुद ट्रेडर भी ऊंची लागत के चलते उसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।