- यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के यूनाइटिड स्टेट स्टडी सेंटर ने इस हफ्ते 102 पेज की एक रिपोर्ट जारी की है।
- चीन के पास अब एशिया के आसपास अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठानों को नष्ट करने की क्षमता है।
- ऐसा चीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (पीएलएआरएफ) के शस्त्रागार के भीतर मौजूद पारंपरिक मिसाइलों के माध्यम से कर सकता है।
- चीन की रणनीति अब कुछ भी करके फिर से ताइवान को लेने की है, चाहे फिर इसके लिए उसे बल का इस्तेमाल करना पड़े और फिर किसी और तरीके का।
वर्ल्ड डेस्क
चीन की रणनीति अब कुछ भी करके फिर से ताइवान को लेने की है, चाहे फिर इसके लिए उसे बल का इस्तेमाल करना पड़े और फिर किसी और तरीके का। साथ ही चीनी सेना पीएलए भी इस प्रक्रिया में किसी भी अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप को रोकना चाहती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के यूनाइटिड स्टेट स्टडी सेंटर ने इस हफ्ते 102 पेज की एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘एवरेटिंग क्राइसिस: अमेरिकन रणनीति, सैन्य खर्च और इंडो-पैसिफिक में सामूहिक रक्षा’ है।
इसमें चेतावनी दी गई है कि चीन का सशस्त्र बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों में भारी निवेश चीन के काउंटर हस्तक्षेप के प्रयासों का केंद्र बिंदु है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है, “बीते 15 सालों में पीएलए ने बैलिस्टिक मिसाइल विकास कार्यक्रम के रूप में मिसाइलों और लांचरों की अपनी सूची की श्रेणी में व्यवस्थित रूप से वृद्धि और विस्तार किया है। अमेरिकी सरकार का कहना है कि ये दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक सक्रिय और विविध बैलिस्टिक मिसाइल विकास कार्यक्रम है।”
तकनीकी चोरी का भी आरोप
पेंटागन ने चीनी सेना को लेकर जारी इस रिपोर्ट में कहा था कि “विदेशी सैन्य और दोहरे उपयोग वाली तकनीक को पाने के लिए चीन कई तरीकों का इस्तेमाल करता है। इसके लिए विदेशी निवेश, साइबर चोरी, खुफिया सेवाओं का इस्तेमाल, कंप्यूटर तकनीक और अन्य अवैध तरीके शामिल हैं।”
सीएनएन में छपी रिपोर्ट के अनुसार “चीन विदेशी तकनीक को पाने के लिए आयात, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी अनुसंधान और विकास केंद्रों की स्थापना, अनुसंधान और शैक्षणिक पार्टनरशिप, टैलेंट की भर्ती, उद्योग एवं साइबर स्पेस का इस्तेमाल भी करता है।”