मप्र में भाजपा नहीं घोषित करेगी सीएम कैंडिडेट, संगठन के दम पर लड़ेगी चुनाव!

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भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनावी रणभेरी बजने भर की देर है, लेकिन उससे पहले सियासी रणबांकुरे लंगोट कस के मैदान में ललकार रहे हैं और सेनापति हर मोर्चे पर अनुभव और जोश के हिसाब से सिपाहियों को तैनात कर रहे हैं। मप्र विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही दोनों प्रमुख दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में एक चेहरे पर चुनाव लड़ाए जाने की बात हो रही है, लेकिन आलाकमान ने अभी तक किसी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया है, लेकिन दिग्गज दावेदारों को अहम जिम्मेदारियां देकर संतुलन बनाने की कोशिश की है।
CM Candidate will not declare BJP in MP, elections will be contested on the organization!
वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी दल की बात करें तो सीधे तौर पर मुख्यमंत्री होने के नाते शिवराज सिंह बीजेपी का चेहरा हैं, लेकिन पिछले कुछ दौरों पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयानों से संशय की स्थिति बन रही है कि बीजेपी शिवराज की लोकप्रियता तो भुनाना चाहती है, लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर पेश नहीं करना चाह रही है क्योंकि शाह बार-बार बोल रहे हैं कि इस बार संगठन चुनाव लड़ेगा। हांलाकि, मौजूदा परिस्थितियां और कांग्रेस की चुनौती को देखते हुए ये रणनीतिक चाल हो सकती है, लेकिन शाह के बयानों को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि अगर बीजेपी चुनाव जीतती है तो क्या अगला मुख्यमंत्री कोई और होगा।

मप्र की सत्ता पर 2003 से काबिज बीजेपी को 2018 के चुनाव में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस एक तरह से करो या मरो की स्थिति में चुनाव लड़ रही है। दूसरी तरफ बीजेपी के लिए अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है। पिछले डेढ़ साल से प्रदेश में चुनावी माहौल चरम पर है। कांग्रेसी दिग्गज एकजुट होकर रणनीति बना रहे हैं और अंजाम दे रहे हैं तो बीजेपी के चाणक्य पिछले एक साल में तीन बार मप्र का दौरा कर चुके हैं।

पहला दौरा उन्होंने अगस्तर 2017 में किया था, जिसमें वो तीन दिन तक राजधानी भोपाल के प्रवास पर थे। वहीं दूसरा दौरा उन्होंने अप्रैल 2018 में किया था। हाल ही में शाह दिन भर के दौरे पर जबलपुर भी गये थे। उनके इन दौरों की बात करें तो इन दौरों में एक बात बार बार सुनने को मिली है और उन्होंने लगातार कहा है कि इस बार चुनाव संगठन लड़ेगा। जहां तक संगठन के चुनाव लड़ने की बात है तो बीजेपी या दूसरे राजनीतिक दलों में संगठन ही चुनाव लड़ता है, लेकिन कोई न कोई चेहरा आगे करता है। कई बार बिना चेहरा आगे किए भी राजनीतिक दल चुनाव लडते हैं।

शिवराज विरोधी माहौल का बचाव कर रही बीजेपी
हालांकि, मप्र में पिछले दो चुनावों से बीजेपी शिवराज सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ती आ रही है, लेकिन इस बार शाह बार-बार संगठन के चुनाव लड़ने की बात दोहरा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब क्या बीजेपी को शिवराज के चेहरे पर भरोसा नहीं रहा या सत्ता विरोधी लहर और शिवराज विरोधी माहौल के कारण बीजेपी बचाव की मुद्रा में है।

धूमिल होती जा रही शिवराज की किसान-पुत्र वाली छवि
बीजेपी सूत्रों की मानें तो बीजेपी को अब डर सताने लगा है कि लगातार 12 साल तक मुख्यमंत्री रहने के कारण शिवराज के खिलाफ असंतोष बढ़ा है। किसानों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है और लाख कोशिशों के बाद भी किसानों को खुश करने की कोशिश रंग नहीं ला रही है। शिवराज की किसान पुत्र की छवि को मंदसौर गोलीकांड, भावांतर योजना और फसल बीमा में किसानों को मिली राशि ने धूमिल कर दिया है, कर्मचारी वर्ग इसलिए नाराज है कि हर समय तरह तरह की घोषणाएं कर वाहवाही बटोरने वाले सीएम अब अपनी घोषणाओं को ही लागू नहीं कर पा रहे हैं। जिसके चलते जनता में उनकी छवि घोषणावीर की ज्यादा होती जा रही है।

घोटालों ने शिवराज के अस्तित्व को पहुंचाया नुकसान
व्यापमं, रेत खनन घोटाला और नर्मदा सेवा यात्रा में धांधली से भी उनकी अस्तित्व को गहरा धक्का पहुंचा है। लेकिन बीजेपी की मजबूरी ये है कि फिलहाल मप्र में उनके पास इतना बड़ा चेहरा कोई दूसरा नहीं है, जिसे शिवराज के विकल्प के तौर पर पेश कर सके। ऐसे में बीजेपी न तो शिवराज को एकदम पीछे धकेल रही है और न ही एक तरह से उन्हें अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश कर रही है। हालांकि जनआशीर्वाद यात्रा को लेकर माना जा रहा है कि एक बार फिर बीजेपी शिवराज के नाम पर वोट मांग रही है, पर सूत्रों की मानें तो कांग्रेसी दिग्गजों की अलग अलग मोर्चे पर चल रही यात्राओं के मुकाबले के लिए ये यात्रा निकाली जा रही है क्योंकि दिग्विजय,सिंधिया, अजय सिंह और कांग्रेस के कई नेता अलग-अलग तरह की यात्राएं और अभियान छेड़े हुए हैं।

एमपी में शिवराज बतौर सीएम उम्मीदवार घोषित हो चुके
इस सवाल के उठने के पीछे अमित शाह का बार बार दिया जाने वाला बयान है कि इस बार संगठन चुनाव लड़ेगा। एक तरफ ये भी माना जा रहा है कि संगठन में जोश भरने के लिए शाह ऐसा कह रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ ये भी माना जा रहा है कि बीजेपी संकेत देना चाहती है कि अगर शिवराज से नाराजगी है तो बीजेपी संगठन को आगे कर इस नाराजगी को कम कर सकती है। इस बारे में पार्टी के प्रवक्ता राहुल कोठारी कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जहां पर भी चुनाव के लिए जाते हैं, वहां पर एक ही बात कहते हैं। मप्र में सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज घोषित हो चुके हैं। पर संगठन के चेहरे की बात आती है तो एक बात आती है कि सब एकजुटता के साथ कमल के फूल को निशान मानकर चुनाव लड़ेंगे।

एमपी बीजेपी के रोल मॉडल व ब्रांड एम्बेसडर हैं शिवराज
कार्यकर्ता जब तीसरी-चौथी बार चुनाव में जाता है तो उसको कई बार जबाब देने पड़ते हैं। अगर संगठन और सिंबल की बात करते हैं तो कई बार एकजुटता भी ज्यादा प्रदर्शित होती है। साथ में शिवराज का चेहरा भी सामने है, शिवराज वैसे भी संगठन के ऐसे कार्यकर्ता हैं जोकि निश्चित रूप से हमारा चेहरा और रोल मॉडल के साथ ब्रांड एंबेसडर भी हैं और निश्चित रूप से संगठन भी शिवराज के चेहरे के साथ आगे बढ़ रहा है।