चिंता: घाटी में पुलिसकर्मी नौकरी छोड़ बन रहे आतंकवादी, डिपार्टमेंट की बढ़ी मुसीबत

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श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में पुलिसकर्मियों के नौकरी छोड़कर आतंकवादियों के साथ जाने की घटनाओं ने डिपार्टमेंट की चिंता बढ़ा दी है। पिछले 3 साल में 12 पुलिसकर्मी करीब 30 हथियारों के साथ भाग चुके हैं। हाल में स्पेशल पुलिस अधिकारी आदिल बशीर के भागने के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस तरह की घटनाओं पर चिंता जताते हुए एक आंतरिक रिपोर्ट तैयार की है। बशीर दक्षिणी कश्मीर की वाची विधानसभा से पीडीपी विधायक एजाज मीर के आधिकारिक आवास से 8 हथियार लेकर भागा था, जिसमें 7 एके47 राइफलें और एक पिस्टल थी। पुलिस के मुताबिक करीब 12 पुलिसकर्मी और 2 सैन्यकर्मी मिलिटेंट रैंक में शामिल हो चुके हैं और ये अपने साथ करीब 30 हथियार लेकर भागने में सफल रहे।
Concern: terrorists leaving the job of policemen in the valley, increased trouble of the department
पुलिस ने 5 अक्टूबर को 29 वर्षीय बीएसएफ कॉन्सटेबल शकीर वानी को एक और स्थानीय युवक के साथ हिजबुल मुजाहिदीन के साथ कथित रिश्तों के आरोप में गिरफ्तार किया था। पुलिस ने दावा किया कि वानी हिजबुल मुजाहिदीन का भूमिगत कार्यकर्ता है और वह आतंकियों को रसद सप्लाई में मदद करता है। पुलिस ने यह भी दावा किया कि उसे मिलिटेंट रैंक के लिए युवाओं की भर्ती की भी जिम्मेदारी दी गई थी। पुलिस की एक इंटरनल नोट में इस स्थिति को बेहद गंभीर बताया गया है।

नौकरी पुलिस की, काम आतंकवाद का
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कॉन्स्टेबल रशीद शिगन के नौकरी छोड़कर भागने के मामले में नए जानकारियों का पता लगाया है। पुलिस ने दावा किया कि रशीद हिजबुल मुजाहिदीन का एक सक्रिय सदस्य था और पुलिस में नौकरी के दौरान वह पिछले 18 महीनों में कम से 13 आतंकी हमलों में शामिल था।

किस चुनौती का सामना कर रहे पुलिसवाले
इस मामले से वाकिफ एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया, ‘पुलिसकर्मियों के लिए अपनी भावनाओं को प्रफेशन से दूर रखना मुश्किल है, खासकर जब कई बार वह व्यक्तिगत रूप से उस स्थिति का सामना कर चुका हो। भले ही जमीन पर इस समय पुलिस बनाम मिलिटेंट दिख रहा है, लेकिन पुलिसकर्मियों को भीतर भी एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।’

1993 में हुआ था पहला बड़ा विद्रोह
आपको बता दें कि जम्मू कश्मीर पुलिस को अपने पहले प्रमुख विद्रोह का सामना 1993 में करना पड़ा था, जब करीब 1,000 पुलिसकर्मियों ने सेना की हिरासत में अपने एक साथी की मौत के विरोध में पुलिस कंट्रोल रूम पर कब्जा कर लिया था। बाद में सेना और अर्धसैन्य बलों को बिल्डिंग खाली कराने के लिया बुलाया गया, जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने सरेंडर किया था।

आतंक-विरोधी अभियान में शामिल एक और सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘इस समय कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे किसी एसपीओ के लिए मिलिटेंट बनना कोई कट्टरपंथी विकल्प नहीं है क्योंकि वह पहले ही अपने काम की वजह से सामाजिक अलगाव का सामना कर रहा है।’ इस साल अभी तक 8 एसपीओ समेत 37 पुलिसकर्मियों की हत्या हो चुकी है, जिसके बाद सरकार ने इनको दिए जाने वाले मानदेय को 8,000 से बढ़ाकर 15,000 रुपये कर दिया है।