प्रदेश में कांग्रेस-बीएसपी का गठबंधन भाजपा के लिए बन सकता है मुसीबत, कटेंगे दलित वोट

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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ पार्टी आला कमान से कह चुके हैं कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबले में मददगार होगा। 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बीएसपी को मिले वोट मिला दिए जाएं तो यह बीजेपी के वोटशेयर के करीब है।
Congress-BSP alliance can become trouble for BJP in the state, Katenge will vote for Dalit vote
कांग्रेस को उम्मीद है कि 15 सालों का सत्ताविरोधी रुझान और इस बार पार्टी की एकजुटता बाकी कसर पूरा कर देगी। मध्य प्रदेश में यह भी हो सकता है कि बीएसपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक होकर लड़ें। इस तरह का परिदृश्य पहले ही यूपी में दिख चुका है और काम कर चुका है। समाजवादी पार्टी विपक्ष को ताकत दे सकती है क्योंकि मध्य प्रदेश में ठीकठाक यादव आबादी है।

बीएसपी ने अपनी बदौलत 2008 और 2013 के चुनावों में क्रमश: 9 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 7 सीटों और 6 प्रतिशत वोटशेयर के साथ 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जहां बीजेपी का मुख्य फोकस अन्य पिछड़े वर्ग पर है, वहीं कांग्रेस का लक्ष्य दलितों और दूसरी जातियों का दिल जीतना है।

2002 के बाद से बीजेपी के सभी मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से रहे हैं। उमा भारती का ताल्लुक जहां लोधी समुदाय से है, वहीं उनके बाद सीएम बनने वाले बाबू लाल गौर यादव समुदाय से हैं। बीजेपी ने 2017 के सिंहस्थ कुंभ के दौरान दलित संतों तक पहुंचकर इस समुदाय से नजदीकी बढ़ाई है। कांग्रेस अगर बीएसपी से गठबंधन करती है तो बहुत संभव है कि बीजेपी के हाथ से दलित वोट छिटक जाएं।

अग्रिम मोर्चे पर दिग्विजय नहीं
मध्य प्रदेश के 3 कांग्रेसी दिग्गजों- दिग्विजय सिंह, कमल नाथ औ ज्योतिरादित्य सिंधिया- में से बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी दिग्विजय सिंह से रही है जो सूबे में भगवा लहर से पहले 10 सालों तक मुख्यमंत्री रहे हैं। उनकी टिप्पणियों पर हमेशा बीजेपी की तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। हाल ही में राज्यभर में पदयात्रा करने वाले दिग्विजय सिंह कांग्रेस के इकलौते ऐसे नेता हैं जिनका पूरे राज्य में प्रभाव है। हालांकि जिस तरह कांग्रेस दिग्विजय सिंह को पृष्ठभूमि में रख रही है, उसे देखते हुए बीजेपी राहत की सांस ले सकती है। कांग्रेस की चुनाव सामग्रियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और बताया जा रहा है कि उन पर दिग्विजय सिंह का कोई जिक्र नहीं है।

चुनौतियों के बाद भी शिवराज सबसे कद्दावर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व बहुत पसंद नहीं करता, इसके बाद भी वह सूबे में मजबूत बने हुए हैं। बीजेपी का कोई भी दूसरा राज्य-स्तर का नेता उनके लिए चुनौती के तौर पर नहीं उभरा है। नरेंद्र सिंह तोमर सबसे ज्यादा स्वीकृति वाला चेहरा हो सकते हैं लेकिन उनकी जाति इस राह में बाधा है। तोमर ठाकुर जाति से आते हैं जबकि बीजेपी मध्य प्रदेश में पिछड़ा कार्ड खेलती आई है। इसका मतलब है कि तोमर को केंद्रीय मंत्री के तौर पर ही संतोष करना पड़ेगा। बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में व्यस्त हैं।

विजयवर्गीय ने मंदसौर में ट्रैक्टर रैली की थी लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया कि अगर बीजेपी फिर जीतती है तो चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे। हालांकि, रविवार से चौहान ने वोटरों तक पहुंचने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है, जिसे खुद बीजेपी मुखिया अमित शाह ने रवाना किया।

बीजेपी के लिए आरएसएस एक बड़ा प्लस पॉइंट
आरएसएस की हमेशा से ही पूरे मध्य प्रदेश में मजबूत उपस्थिति रही है और इसने बीजेपी को चुनाव जीतने में मदद की है। पार्टी द्वारा लिए गए सभी बड़े और महत्वपूर्ण फैसलों पर भी संघ की छाप होती है। इससे अच्छी तरह वाकिफ शिवराज सिंह चौहान ने हमेशा संघ नेताओं से अच्छे रिश्ते बनाकर रखे हैं। तोमर के बाद चौहान ही संघ के बड़े नेताओं के पसंदीदा हैं। यही एक बड़ी वजह है कि कई बीजेपी नेताओं ने अक्सर चौहान को सीएम पद से हटाने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मांग की है लेकिन वह अपने पद पर बने रहे।

किसानों की दुर्गति ने व्यापम मुद्दे को ढका
व्यापम मुद्दे पर चौहान सरकार कड़ी आलोचनाओं का सामना कर रही थी। हालांकि किसानों की दुर्गति और बेरोजगारी का मुद्दा जनाक्रोश की मुख्य वजह बनकर उभरी है और व्यापम के भ्रष्टाचार का मुद्दा अब पृष्ठभूमि में जा चुका है।