वैचारिक निर्धनता और अनिश्चितता के बियाबान में कांग्रेस

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राघवेंद्र सिंह

कांग्रेस वैचारिक अनिश्चितता के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। राजनीति में टाइमिंग का बड़ा महत्व होता है। इसके लिए सियासी समझ और सज्जनता के साथ एक अलग तरह का काइयाँपन जरूरी होता है। जो अक्सर प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेई जी में देखी व महसूस की जाती थी। यह बात अपने पिता राजीव गांधी की भांति सहजता के गुण को छोड़ दें तो राहुल बाबा में भी नजर नही आती।

धारा 370 को हटाने से लेकर रामजन्मभूमि के भूमिपूजन तक ये अनाड़ीपन और वैचारिक गरीबी बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है। राजीव जी और काफी हद तक सोनिया गांधी के साथ भी राजनीतिक अल्प ज्ञान के बावजूद उनके साथ देश को जानने वाले लोगों का एक थिंक टैंक हुआ करता था। जो समय-समय पर समाज और सियासत से जुड़े नाजुक मुद्दे पर बड़ी संजीदगी से अपनी राय रखता था। बाद में सीडब्ल्यूसी से लेकर ब्लॉक कांग्रेस तक उस पर काम किया जाता था। कांग्रेस नेताओं के हर एक्शन और रिएक्शन के अर्थ हुआ करते थे पूरा देश उस पर विपक्षी पार्टियों समेत गंभीरता से सोचता था मगर अब हालात बदल गए हैं सही बात भी गलत वक्त पर बोलने के कारण समूची कांग्रेसका कद गह फोन भी तो कर सकते घट गया है। लोग उसे पहले से कम गंभीरता से लेते हैं। कांग्रेस कमज़ोर होगी तो देश भले ही मज़बूत हो मगर लोकतंत्र ज़रूर कमज़ोर होगा।

पूरी बात समझने के लिए एक फ़िल्म का सीन याद आ रहा है । उसमें हीरो अमीर घर का था। साथ ही सीधा और शर्मीला होने की वजह से लोगो में घुलमिल नही पाता था। घर के लोगों ने उसकी झिझक तोड़ने के लिए एक पार्टी का आयोजन किया । हीरो को बताया गया कि मेहमानों से कैसे मिलना और किस तरह से सामाजिक सरोकार से जुड़ी बातचीत करनी है। मसलन आप कैसे हैं ? कोई लड़की या महिला रिश्तेदार और मित्र हो तो उनसे पूछें उनकी शादी हुई क्या और कितने बच्चे हैं? समारोह शुरू होता है और हीरो बातचीत करते हुए महिला मेहमानों से पूछते हैं ” आपके कितने बच्चे हैं , जवाब में बताया कि दो बच्चे हैं, इसपर हीरो का अगला सवाल था क्या आपकी शादी हुई…? ” ज़ाहिर है इसपर महिला ने नाराजगी जताई। मतलब शादी हुई तभी तो बच्चे हुए। इसके बाद हीरो सतर्क हो गए और उन्होंने सवालों को बदलकर पूछने का फैसला किया। दूसरा सीन में एक अविवाहित लड़की से वे पूछते हैं ” आपकी शादी हुई क्या? लड़की थोड़ा लजाते हुए कहती है नही, इसके बाद हीरो का अगला सवाल था आपके कितने बच्चे हैं? ” इसके बाद महफ़िल में तमाचे की जोरदार आवाज़ आती है और हीरो अपना गाल सहलाते हुए नज़र आते हैं। सीधापन और अनुभव का अभाव कुछ ऐसा ही नज़र आ रहा है। राजनीति में मौके की गंभीरता और प्रश्नों का महत्व अगर समझने में न आये तो अक्सर पार्टी और नेताओं के साथ अक्सर जम्हूरियत की महफ़िल में जनता की तरफ से पराजय के तमाचे पड़ते हैं जिनकी गूंज दूर तक और देर तक सुनाई पड़ती है।

28 दिसम्बर 1885 में बनी कांग्रेस के पास दादाभाई नोरोज़ी से लेकर महात्मा गांधी , पंडित मदनमोहन मालवीय , सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, जवाहरलाल नेहरू, से लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल, कामराज निजलिंगप्पा, कमलापति त्रिपाठी अर्जुन सिंह जनार्दन द्विवेदी तक लंबी फेहरिस्त है। इनमें वैचारिक और जन मानस में स्वीकार्यता के मामले में एक से एक दिग्गज थे। लेकिन अब देश को समझने वाले और जनता से जुड़े मुद्दों के जानकारों की जो पौध है वह अभी शैशव काल में है। पूरा किला अकेले राहुल गांधी लड़ाने में लगे हैं। उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस हिंदी भाषी तीन राज्यों भाजपा के गढ़ रहे मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में सफल रही। लेकिन इन राज्यों का नेतृत्व राहुल गांधी के पसंदीदा नेताओं के बजाए क्रमश कमलनाथ और अशोक गहलोत कैसे बुजुर्ग नेताओं के हाथ में सौंप दिया गया। तुलनात्मक रूप से छात्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कमोवेश युवा और ज़्यादा बेहतर साबित हुए। इसलिए कांग्रेस छात्तीसगढ़ में सबसे बेहतर काम कर रही है ऐसा कहना अतिश्योक्ति नही होगी। लेकिन मध्यप्रदेश में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ने साइडलाइन किया नतीजा सामने है मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार और अशोक गहलोत की सरकार सचिन पायलट को हाशिए पर धकेल के कारण संकट में है। यह कॉन्ग्रेस सब कॉन्ग्रेस की अपरिपक्वता और राह राहुल गांधी के आ अध्यक्ष पद से से इस्तीफा और 1 साल बाद नए अध्यक्ष नहीं चुनना कांग्रेस की बड़ी कमजोरी को दिखाता है। यह कमजोरी कांग्रेस और देश दोनों के हित में नहीं है।

कांग्रेस के नेता शशि थरूर कहते हैं कि युवा नेता राहुल गांधी गैस का पद दोबारा संभालना चाहिए। यदि देश के तैयार नहीं होते हैं तो पार्टी को नए अध्यक्ष चुनने की दिशा में बनाना चाहिए। कुल मिलाकर अरुण का कहना यह है की अनिश्चितता का माहौल पार्टी के लिए ठीक नहीं है। उनका कहना यह भी है कि राहुल गांधी ने चीन रफेल के मुद्दे पर पार्टी का पक्ष के सामने ठीक कर रखा है। लेकिन थिंक टैंक के बारे में पार्टी के भीतर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं। कमजोर थिंक टैंक को लोग अब मजाक में सेप्टिक टैंक भी कहते हैं। दरअसल यह शब्दावली मुद्दों पर कांग्रेस की कमजोर पकड़ और कई बार जनता के बीच उसका हंसी का पात्र बनना भी बड़ा कारण है। धारा 370 हटाने के बाद कांग्रेस के स्टैंड को देश ने तरजीह नहीं दी। इसी तरह राम मंदिर की संजीदगी को कॉन्ग्रेस समझ नहीं पाई। उसके थिंक टैंक को नहीं पता कि राम भारत की आत्मा है। ऐसा नहीं होता तो महात्मा गांधी रघुपति राघव राजा राम का भजन न गाते और राजीव गांधी जैसे मिस्टर क्लीन प्रधानमंत्री अदालत के आदेश पर राम मंदिर जन्मभूमि का न खुलवाते। कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भारत की तासीर को समझने और मोदी युग के राष्ट्रवाद को आत्मसात कर उससे लड़ने की रणनीति नहीं बना पा रहा है।

कांग्रेस नेतृत्व का अनाड़ीपन पुलवामा के बाद सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगने, राफेल की कीमत पर विवाद, तीन तलाक धारा 370 हटाने का विरोध और भगवान राम को काल्पनिक बताने से लेकर भूमिपूजन पर सवाल से बहुत खुलकर उजागर हुआ है।
दिग्विजय सिंह जैसे नेता जरूर रोजगार के मुद्दे को उठा रहे हैं। उनका कहना है करोड़ों नौकरियां करने वाली मोदी सरकार ने करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया है। उन्होंने राम मंदिर भूमि पूजन गलत मुहूर्त को भी मुद्दा बनाया इसके लिए जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के विचार को भी इसमें शामिल किया।

भाजपा संगठन में टीम वीडी शर्मा बनी बीरबल की खिचड़ी
भाजपा में कोरोना के चलते प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा जाने टीम वीडी अभी नहीं बन पाई है। संगठन में काम करने की इच्छा रखने वाले यह दिन काटे नहीं कर पा रहे हैं। संगठन की तरफ से सूची तो तैयार है आम सहमति भी लगभग हो गई है लेकिन 26 विधानसभा के उपचुनाव और भाजपा में असंतोष टीम वीडी शर्मा के सबसे बड़ा रोड़ा है।