प्रदेश में भाजपा के लिए चिंता का विषय बने कम वोटों से जीते हुए प्रत्याशी

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भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा दुविधा में है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में उन विधायकों को दोबारा मैदान में उतारा जाए या नहीं जो पिछले चुनाव में पांच हजार से कम वोटों से जीते थे। पार्टी की सोच है कि यदि ये प्रत्याशी एंटी इंकम्बेंसी का शिकार हुए तो परिणाम प्रभावित हो सकता है। इसकी वजह ये है कि सर्वे में भी कई विधायकों की हालत ठीक नहीं बताई गई है।
Contestant candidate for the BJP in the state won less votes
पार्टी नेताओं की मानें तो इनमें से कुछ को लोकसभा या अन्य जिला पंचायत, नगर निगम के महापौर अथवा निगममंडल में एडजेस्ट करने का आश्वासन दिया जा सकता है। इनमें से जिन कद्दावर नेताओं के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी सामने आई है, उनके बेटा-बेटी या नजदीकी को टिकट दिया जा सकता है। पांच हजार से कम वोटों से जीतने वालों में 21 विधायक और मंत्री शामिल हैं।

कैबिनेट मंत्री माया सिंह, सूर्यकांत मीना व गौरीशंकर बिसेन जैसे वरिष्ठ मंत्री भी इस दायरे में हैं। वहीं पूर्व मंत्री गोपीलाल जाटव, मानवेंद्र सिंह, रंजना बघेल, मोती कश्यप और अंचल सोनकर ऐसे नेता है कि इनको जातिगत या भौगोलिक समीकरणों के लिहाज से मैदान में उतारना जरूरी है। पार्टी में मंथन जारी है, जैसे कुछ को पड़ोस की सीट पर शिफ्ट कर दिया जाए या उनकी सहमति से नया प्रत्याशी तय कर लिया जाए।

क्या हैं चुनौतियां : कहीं दिग्गज को पछाड़ा तो कहीं जातिगत समीकरण
पार्टी के सामने चुनौतियां ये हैं कि पारुल साहू 141 वोटों से जीती तो हैं, लेकिन उन्होंने गोविंद सिंह राजपूत जैसे ताकतवर नेता को हराया है। ऐसे ही कारण अन्य सीटों पर भी हैं। गोपीलाल जाटव भले ही कम वोटों से जीते हों लेकिन जातिगत समीकरणों के तहत वे पार्टी की मजबूरी हैं। केदारनाथ शुक्ला विंध्य में पार्टी के बड़े चेहरे हैं। सीधी जिले से इकलौते भाजपा विधायक हैं। रंजना बघेल एकमात्र आदिवासी नेता हैं जो धार से लेकर झाबुआ तक जातिगत समीकरणों में संतुलन बिठा रही हैं।

अंचल सोनकर और मानवेंद्र सिंह दोनों ही मंत्री रहे हैं।
सिंह तो कांग्रेस छोड़े थे तो निर्दलीय जीत गए थे। चौधरी मुकेश सिंह चतुवेर्दी भी मात्र 1273 वोट से जीते थे उनके स्थान पर पार्टी चौधरी राकेशसिंह चतुवेर्दी को लड़वाने पर विचार कर रही है। राकेश सिंह कांग्रेस विधायक दल के उपनेता रहे हैं और पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। ऐसे हालात में पार्टी विकल्प तलाश रही है कि क्या किया जाए। जिन नेताओं की सर्वे में रिपोर्ट खराब आई है उनके बारे में सीट बदलने पर भी विचार चल रहा है।

हर सीट के लिए जिताऊ प्रत्याशी की तलाश
भाजपा की रणनीति ये है कि हर सीट के लिए जिताऊ प्रत्याशी तलाशा जाए। इसी दृष्टि से पार्टी पिछले चुनाव में कम वोटों के अंतर से जीतने वाले और ज्यादा वोटों के अंतर से हारने वाले प्रत्याशियों को फिर उतारने से पहले पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहती है। यही वजह है कि सूर्यकांत मीना, माया सिंह को अन्यत्र एडजेस्ट करने पर पार्टी विचार कर रही है।

वहीं गौरीशंकर बिसेन को भी मनाया जा रहा है कि वे स्वयं न लड़कर अपनी बेटी मौसम को चुनाव में उतारें। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह ने भी कई बार इस बात को दोहराया है कि पार्टी इस बार सिर्फ जिताऊ और टिकाऊ प्रत्याशी पर ही दांव लगाएगी। इसी वजह से पार्टी लगातार वोटर्स की नब्ज टटोलते हुए सर्वे करवा रही है।