नई दिल्ली
देश में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से सरकार अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है। हर जिले और राज्य की मौजूदा स्थिति को देखते हुए आगे की राह बनाई जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से तीन मई के बाद जिलों को अलग-अलग जोन के हिसाब से बांटने का काम किया गया है।
देश के कई जिले रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बंटे हुए हैं। हालांकि इस बार उनके पैमानों को बदला गया है। मंत्रालय ने कोरोना मामलों की संख्या, डबलिंग रेट और परीक्षणों के हिसाब से जिलों की नई सूची तैयार की है। जिसमें बताया गया है कि कौन सा जिला किस जोन में आता है और वहां किस तरह की सख्ती बरती जाएगी।
केंद्रीय गृह सचिव प्रीति सूडान ने कहा, ‘सभी राज्यों से अनुरोध किया जाता है कि वे चिन्हित किए गए रेड और ऑरेंज जोन जिलों में कंटेनमेंट जोन और बफर जोन का परिसीमन करें और उन्हें सूचित करें। किसी जिले को तब ग्रीन जोन माना जाएगा जब वहां पिछले 21 दिनों में कोरोना का कोई भी नया मामला सामने नहीं आएगा।’ सूची में तीन मई के बाद 130 जिलों को रेड, 284 को ऑरेंज और 319 जिलों को ग्रीन जोन में शामिल किया गया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बंगलूरू, अहमदाबाद को अब भी रेड जोन में ही रखा है। इसके अलावा महाराष्ट्र के 14, दिल्ली के 11, तमिलनाडु के 12, उत्तर प्रदेश के 19, बंगाल के 10, गुजरात के नौ, मध्य प्रदेश के नौ, राजस्थान के आठ जिले रेड जोन में शामिल हैं।
सूडान ने कहा, ‘एक या अधिक नगर निगमों वाले, निगमों और जिले के अन्य क्षेत्रों को अलग-अलग इकाइयों के रूप में माना जा सकता है। यदि वे रेड या ऑरेंज जोन में आते हैं, यहां इनमें से एक या अधिक में पिछले 21 दिनों में कोई नया मामला दर्ज नहीं होता तो उन्हें आंचलिक वर्गीकरण में एक स्तर कम माना जा सकता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘बफर जोन में स्वास्थ्य सुविधाओं में आईएलआई/ एसएआरआई मामलों की निगरानी के माध्यम से मामलों की व्यापक निगरानी की जानी चाहिए। राज्यों से अनुरोध किया जाता है कि वे चिन्हित रेड और ऑरेंज जोन जिलों में कंटेनमेंट जोन और बफर जोन का परिसीमन करके उन्हें सूचित करें।’
कोरोना: उज्जैन में मृत्यु दर 17.5 फीसदी, पिछले सात दिनों में 17 लोगों की मौत
पूरा देश कोरोना वायरस महामारी की चपेट में है। भारत में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात और दिल्ली में इस वायरस का प्रकोप सबसे ज्यादा है। मध्यप्रदेश में अब तक 2660 लोग कोविड-19 की चपेट में आ चुके हैं। वहीं, सरकारी डाटा के अनुसार, राज्य के उज्जैन शहर में कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों की मृत्यु दर 17.51% है, जहां पिछले सात दिनों में 17 लोगों की मौत हुई है।
उज्जैन में 23 अप्रैल तक 76 कोरोना मरीजों में सात की मृत्यु हुई थी। वहीं, अब पिछले सात दिनों में हर चौथे मरीज ने इस बीमारी के कारण दम तोड़ा है। अपने महाकाल मंदिर के लिए प्रसिद्ध और हर 12 साल में चार कुंभ मेलों में से एक का आयोजन करने वाले उज्जैन में गुरुवार तक 137 कोरोना मामले सामने आए और 24 लोगों की मौत हुई। कोरोना वायरस से मध्यप्रदेश के सबसे प्रभावित शहर इंदौर में बुधवार तक मृत्यु दर 4.40% थी, वहीं भोपाल में यह दर 2.89% थी। मध्यप्रदेश में अभी तक कोरोना वायरस से 130 लोगों की मौत हुई है और राज्य की मृत्यु दर 4.88% है। मध्यप्रदेश में कोरोना से मृत्यु दर देश के मुकाबले ज्यादा है। वर्तमान में, पूरे भारत में कोरोना की मृत्यु दर 3.19% है।
अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने अब उज्जैन में एक निजी मेडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला को परीक्षण के लिए शामिल किया है क्योंकि रिपोर्ट मिलने में देरी जिले में उच्च मृत्यु दर के पीछे का एक कारण है।
उज्जैन में कोविड-19 का पहला मामला 25 मार्च को सामने आया था, जब एक महिला की मौत के बाद उसके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। यहां 31 मार्च तक कोरोना के केवल छह मामले सामने आए थे और दो लोगों की मौत हुई थी। वहीं, 15 अप्रैल तक शहर में कोविड-19 मरीजों की संख्या बढ़कर 30 हो गई और इस दौरान छह लोगों की मौत हुई। उज्जैन में 22 अप्रैल के बाद संक्रमितों और मृतकों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई।
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उज्जैन में स्थिति शुरू से ही चिंताजनक थी जब शहर के पहले मरीज के परिवार के पांच सदस्य संक्रमित पाए गए थे। उन्होंने कहा कि उज्जैन की स्थिति भी इंदौर जैसी ही थी। हॉटस्पॉट्स की जल्द पहचान की गई और प्रशासन को लगा कि स्थिति को लॉकडाउन और कर्फ्यू के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है।
अधिकारी ने कहा कि इसलिए सर्वेक्षण, स्क्रीनिंग और नमूनों के संग्रह पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। राज्य सरकार ने समस्या पर ध्यान नहीं दिया और यहां कोरोना की जांच के लिए किसी भी प्रयोगशाला को अपग्रेड नहीं किया।
उन्होंने कहा कि उज्जैन में प्रशासन ने इंदौर और भोपाल की प्रयोगशालाओं पर बहुत अधिक भरोसा किया, जिनपर पहले ही बहुत बोझ था। इसका परिणाम यह हुआ कि रिपोर्ट आने में 10 से 15 दिनों तक समय लग रहा था। बीच में, प्रशासन ने पुणे, अहमदाबाद और कुछ अन्य केंद्रों की प्रयोगशालाओं में नमूने भी भेजे, लेकिन इसमें मदद नहीं मिली।